नई दिल्ली 4 दिसंबर। विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने लोकसभा में भारत-चीन सीमा विवाद और द्विपक्षीय संबंधों पर एक विस्तृत बयान दिया। उन्होंने बताया कि 2020 के बाद से दोनों देशों के बीच संबंध असामान्य हो गए थे, जब चीन के आक्रामक रवैये से सीमा क्षेत्रों में शांति और स्थिरता भंग हो गई थी। उन्होंने हालिया कूटनीतिक प्रयासों और समझौतों का जिक्र किया, जो संबंधों में सुधार की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकते हैं।
सीमा विवाद की पृष्ठभूमि
विदेश मंत्री ने जानकारी दी कि चीन 1962 के युद्ध और उससे पहले की घटनाओं के चलते अक्साई चिन क्षेत्र में भारत के 38,000 वर्ग किमी क्षेत्र पर अवैध कब्जा बनाए हुए है। इसके अलावा, 1963 में पाकिस्तान ने 5,180 वर्ग किमी भारतीय भूमि चीन को अवैध रूप से सौंप दी थी। उन्होंने यह भी बताया कि भारत और चीन के बीच कई दशकों से सीमा विवाद सुलझाने के लिए वार्ताएं चल रही हैं, लेकिन कई क्षेत्रों में वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर आम सहमति नहीं बन पाई है।
2020 के बाद बढ़ा तनाव
डॉ. जयशंकर ने कहा कि 2020 में पूर्वी लद्दाख में चीनी सेना द्वारा बड़ी संख्या में सैनिकों की तैनाती और गश्ती गतिविधियों को बाधित करने से हालात बिगड़े। इसके परिणामस्वरूप जून 2020 में गलवान घाटी में हिंसक झड़पें हुईं, जिसमें 45 वर्षों में पहली बार दोनों पक्षों को गंभीर नुकसान झेलना पड़ा।
उन्होंने बताया कि भारत ने त्वरित और प्रभावी काउंटर-डिप्लॉयमेंट किया, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि देश अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने में सक्षम है।
शांति और स्थिरता के लिए कूटनीतिक प्रयास
डॉ. जयशंकर ने कहा कि 1988 से लेकर 2020 तक भारत-चीन के संबंधों में कई महत्वपूर्ण समझौते हुए, जिनका उद्देश्य सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखना था। इनमें 1993 और 1996 के शांति समझौते, 2005 की राजनीतिक दिशा-निर्देश पर सहमति, और 2013 की सीमा रक्षा सहयोग समझौता शामिल हैं।
2020 के बाद, भारत ने कूटनीतिक और सैन्य स्तर पर कई वार्ताओं का आयोजन किया। इनमें वर्किंग मैकेनिज्म फॉर कंसल्टेशन एंड कोऑर्डिनेशन (WMCC) और सीनियर हायरस्ट मिलिट्री कमांडर्स (SHMC) की 17 और 21 बैठकें शामिल हैं।
21 अक्टूबर 2024 का ऐतिहासिक समझौता
विदेश मंत्री ने 21 अक्टूबर 2024 को डेपसांग और डेमचोक क्षेत्रों में हुए नए समझौते पर जानकारी दी। यह समझौता लंबे समय से इन क्षेत्रों में गश्ती गतिविधियों में आ रही बाधाओं को दूर करने और स्थानीय समुदायों के पारंपरिक अधिकारों को बहाल करने के लिए किया गया। उन्होंने बताया कि इस समझौते के तहत गश्ती गतिविधियां फिर से शुरू हो चुकी हैं और स्थानीय लोगों को उनके पारंपरिक चरागाह क्षेत्रों तक पहुंच प्रदान की गई है।
इस समझौते के बाद 23 अक्टूबर को कज़ान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच वार्ता हुई। दोनों नेताओं ने इस समझौते का स्वागत करते हुए विदेश मंत्रियों को निर्देश दिया कि वे द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर और पुनर्निर्मित करने की दिशा में काम करें।
सीमा सुरक्षा और बुनियादी ढांचा विकास
डॉ. जयशंकर ने जोर देकर कहा कि भारत ने पिछले दशक में सीमा पर बुनियादी ढांचे के विकास में उल्लेखनीय प्रगति की है। सीमा सड़क संगठन (BRO) का बजट तीन गुना बढ़ा है, जिससे सड़क नेटवर्क, पुलों और सुरंगों के निर्माण में तेज़ी आई है। उन्होंने अटल टनल, उमलिंगला पास रोड, और सेला व नेचिपु सुरंगों जैसे महत्वपूर्ण परियोजनाओं का उल्लेख किया।
राष्ट्रीय सुरक्षा और भविष्य की दिशा
डॉ. जयशंकर ने स्पष्ट किया कि भारत-चीन संबंधों में सुधार शांति और स्थिरता पर निर्भर करेगा। उन्होंने कहा कि अब, जब पूर्वी लद्दाख में सभी विवादित क्षेत्रों में सफलतापूर्वक सैनिकों का विस्थापन हो चुका है, आगे के चरणों में डी-एस्केलेशन और सीमा प्रबंधन पर चर्चा होगी।
2020 से 2024 तक की प्रगति
विदेश मंत्री ने पिछले चार वर्षों के दौरान हुई प्रगति का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत ने 2020 में गलवान से, 2021 में गोगरा और 2022 में हॉट स्प्रिंग्स क्षेत्रों में सफलतापूर्वक विवाद सुलझाया।
आगे की रणनीति
डॉ. जयशंकर ने बताया कि नवंबर 2024 में रियो डी जनेरियो में जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान उनकी चीनी समकक्ष वांग यी के साथ एक बैठक हुई। इसके अलावा, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी नवंबर 2024 में वियंतियाने में चीनी रक्षा मंत्री डोंग जुन से मुलाकात की। इन बैठकों में विश्वास बहाली और डी-एस्केलेशन पर जोर दिया गया।
प्रभात भारत विशेष
डॉ. जयशंकर ने कहा कि सरकार सीमा विवाद के समाधान और द्विपक्षीय संबंधों में संतुलन लाने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने विश्वास जताया कि संसद के सभी सदस्य इस जटिल मुद्दे को हल करने में सरकार का समर्थन करेंगे।
यह बयान भारत-चीन संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ को चिह्नित करता है, जहां दोनों पक्ष शांति और स्थिरता की बहाली के लिए प्रतिबद्ध हैं। हालांकि, यह देखना बाकी है कि भविष्य में इन समझौतों का प्रभाव द्विपक्षीय संबंधों पर कितना सकारात्मक पड़ता है।

