
लखनऊ, 3 दिसंबर। उत्तर प्रदेश में मस्जिद के सर्वेक्षण को लेकर हुए विवाद ने राज्य में राजनीति को गरमा दिया है। 24 नवंबर को हुई इस घटना में फायरिंग और पथराव के कारण पांच लोगों की मौत हो गई और करीब 20 लोग घायल हुए, जिनमें से अधिकांश पुलिसकर्मी हैं। इसके बाद इलाके में तनाव का माहौल है और भारी पुलिस बल तैनात किया गया है। इस घटना को लेकर समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया अखिलेश यादव और सांसद राम गोपाल यादव ने केंद्र और राज्य सरकार पर तीखे हमले किए हैं।
सपा प्रमुख ने साधा भाजपा पर निशाना
सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इस घटना को भाजपा की “सुनियोजित रणनीति” करार देते हुए कहा कि इस तरह की घटनाओं से आम जनता का ध्यान बुनियादी मुद्दों से भटकाने की कोशिश की जा रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि संभल की घटना भाजपा की सोची-समझी साजिश है। जिस दिन से संसद सत्र शुरू हुआ है, समाजवादी पार्टी ने इस मुद्दे को उठाने की कोशिश की है। हालांकि सदन नहीं चल सका, लेकिन हमारी मांग अब भी वही है।
उन्होंने स्थानीय अधिकारियों पर भाजपा के एजेंडे को आगे बढ़ाने का आरोप लगाते हुए कहा कि वहां के अधिकारी इस तरह से काम कर रहे हैं जैसे वे सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ता हों। अखिलेश ने भाजपा पर देश की सौहार्द्रता और भाईचारे को नष्ट करने की साजिश रचने का आरोप भी लगाया।
“देश की एकता खतरे में”
अखिलेश यादव ने यह भी कहा कि जो लोग धार्मिक स्थलों की खुदाई और सर्वेक्षण में लगे हैं, वे देश की एकता और सांस्कृतिक सौहार्द्रता को खतरे में डाल रहे हैं। उन्होंने कहा, जो लोग हर जगह खुदाई करना चाहते हैं, वे एक दिन इस देश के भाईचारे और सौहार्द्रता को खो देंगे।”
बांग्लादेश मुद्दे पर भी टिप्पणी
बांग्लादेश में हिंदू संतों के अपमान पर पूछे गए एक सवाल का जवाब देते हुए अखिलेश यादव ने केंद्र सरकार की कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि भारत सरकार को इस मुद्दे पर गंभीरता से सोचना चाहिए। अगर वे हमारे संतों का सम्मान नहीं कर सकते, तो यह उनकी कमजोर नीति का परिणाम है।
राम गोपाल यादव ने सुप्रीम कोर्ट से की अपील
सपा सांसद राम गोपाल यादव ने संभल हिंसा और मस्जिदों के सर्वेक्षण को लेकर उठाए जा रहे कदमों को “देशभर में अशांति पैदा करने की साजिश” बताया। उन्होंने कहा कि इस तरह के सर्वेक्षणों का उद्देश्य केवल साम्प्रदायिक तनाव बढ़ाना है। सुप्रीम कोर्ट को इस मामले का संज्ञान लेना चाहिए और ऐसे आदेश देने वाले जजों पर कार्रवाई करनी चाहिए।
संभल हिंसा: घटना का विवरण
संभल में 24 नवंबर को मस्जिद के सर्वेक्षण को लेकर विवाद तब बढ़ गया जब सर्वेक्षण टीम ने स्थानीय मस्जिद के भीतर प्रवेश करने की कोशिश की। स्थानीय लोगों ने इसका विरोध किया और देखते ही देखते यह विरोध हिंसक झड़प में बदल गया। पथराव और गोलीबारी की घटनाओं में पांच लोगों की मौत हो गई और लगभग 20 लोग घायल हो गए।
घायलों में बड़ी संख्या में पुलिसकर्मी शामिल हैं। घटना के तुरंत बाद प्रशासन ने इलाके में भारी पुलिस बल तैनात कर दिया और कानून-व्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए कड़े कदम उठाए। जिला प्रशासन ने स्थानीय लोगों से शांति बनाए रखने की अपील की है।
स्थानीय प्रशासन की प्रतिक्रिया
संभल के जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक ने घटना के बाद प्रेस वार्ता की। उन्होंने कहा कि स्थिति को काबू में कर लिया गया है और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। प्रशासन ने इलाके में कर्फ्यू जैसी पाबंदियां लगा दी हैं और सोशल मीडिया पर भड़काऊ संदेश फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की चेतावनी दी है।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप का दौर
इस घटना के बाद उत्तर प्रदेश की राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप तेज हो गया है। सपा, भाजपा और अन्य विपक्षी दलों के बीच बयानबाज़ी जारी है। भाजपा ने सपा पर हिंसा को बढ़ावा देने का आरोप लगाया, जबकि सपा ने भाजपा को “सांप्रदायिक ध्रुवीकरण” का जिम्मेदार ठहराया।
भविष्य की राजनीति पर असर
संभल हिंसा न केवल स्थानीय स्तर पर बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में भी बड़ा मुद्दा बन सकती है। संसद के आगामी सत्र में विपक्ष इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाने की तैयारी कर रहा है। दूसरी ओर, भाजपा इसे “कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए उठाया गया कदम” बता रही है।
सामाजिक सौहार्द्रता की परीक्षा
संभल हिंसा और इसके बाद की राजनीतिक प्रतिक्रियाएं भारत की सामाजिक सौहार्द्रता और धर्मनिरपेक्षता की परीक्षा हैं। यह घटना इस बात का संकेत है कि आने वाले समय में धार्मिक और सांप्रदायिक मुद्दे राजनीति का मुख्य केंद्र बन सकते हैं।
प्रभात भारत विशेष
संभल की घटना ने देशभर में धार्मिक और राजनीतिक तनाव को फिर से उजागर कर दिया है। जहां सपा और अन्य विपक्षी दल इसे भाजपा की साजिश बता रहे हैं, वहीं भाजपा इसे “कानून-व्यवस्था बनाए रखने का प्रयास” कह रही है। अब देखना यह है कि प्रशासन और न्यायपालिका इस मामले को किस तरह से संभालते हैं और यह घटना आगामी चुनावों और सामाजिक सौहार्द्रता पर क्या प्रभाव डालती है।