
नई दिल्ली, 2 दिसंबर। जुलाई-सितंबर 2024 की तिमाही के लिए जारी किए गए जीडीपी आंकड़े भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति पर गहरी चिंता उत्पन्न करते हैं। इन आंकड़ों ने न केवल विकास दर में गिरावट को उजागर किया, बल्कि यह भी बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “मेक इन इंडिया” अभियान का वादा आज भी अधूरा है। जीडीपी विकास दर में भारी गिरावट और विनिर्माण क्षेत्र की धीमी प्रगति ने भारत को उसकी अर्थव्यवस्था के प्रमुख स्तंभों की पुनर्समीक्षा करने पर मजबूर कर दिया है।
विनिर्माण क्षेत्र, जो किसी भी अर्थव्यवस्था की रीढ़ होता है, जुलाई-सितंबर 2024 तिमाही में केवल 2.2% की दर से बढ़ा। यह 2014 में शुरू किए गए मेक इन इंडिया अभियान के वादों के बिल्कुल विपरीत है, जिसका उद्देश्य भारत को एक प्रमुख विनिर्माण केंद्र और निर्यातक के रूप में स्थापित करना था। निर्यात वृद्धि भी केवल 2.8% तक सिमट गई है, जो इस योजना की प्रगति पर गंभीर सवाल खड़े करती है।
विनिर्माण क्षेत्र की गिरावट और रोजगार पर प्रभाव
कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने हाल ही में जारी इन आंकड़ों को लेकर सरकार पर तीखा हमला किया। उन्होंने कहा कि मेक इन इंडिया के दस साल बाद भी भारत का विनिर्माण क्षेत्र स्थिर या पिछड़ता हुआ नजर आता है। सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान 2011-12 में 18.1% था, जो 2022-23 तक गिरकर 14.3% हो गया। इस गिरावट ने न केवल अर्थव्यवस्था की प्रगति पर असर डाला है, बल्कि रोजगार की स्थिति को भी गंभीर बना दिया है।
2017 में जहां विनिर्माण क्षेत्र में कार्यरत श्रमिकों की संख्या 51.3 मिलियन थी, 2022-23 तक यह घटकर केवल 35.65 मिलियन रह गई। यह आंकड़ा इस बात का स्पष्ट संकेत है कि मेक इन इंडिया अपने सबसे बड़े वादे—रोजगार सृजन—को पूरा करने में विफल रहा है।
निर्यात के मोर्चे पर निराशा
प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में मेक इन इंडिया का एक प्रमुख लक्ष्य भारत को एक वैश्विक निर्यात केंद्र के रूप में स्थापित करना था। लेकिन 2024 तक की स्थिति इस वादे से बिल्कुल अलग है। वस्त्र जैसे पारंपरिक रोजगार-प्रधान क्षेत्रों में निर्यात में गिरावट ने भारत को बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देशों से पीछे कर दिया है।
- 2013-14 में भारत का वस्त्र निर्यात 15 बिलियन डॉलर था।
- 2023-24 में यह गिरकर 14.5 बिलियन डॉलर रह गया।
इस गिरावट के कारण रोजगार पर और अधिक दबाव पड़ा है, क्योंकि वस्त्र उद्योग ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर रोजगार का स्रोत है। वैश्विक व्यापार में भारत का हिस्सा स्थिर बना हुआ है, लेकिन निर्यात का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में योगदान घटा है।
चीन से आयात का दबाव
मेक इन इंडिया के तहत घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कर कटौती और उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहनों की घोषणा की गई थी। लेकिन सच्चाई यह है कि चीन से सस्ते आयात ने भारतीय विनिर्माण उद्योग पर गहरा प्रहार किया है।
- गुजरात के स्टेनलेस स्टील उद्योग का उदाहरण इस समस्या को स्पष्ट करता है।
- यहां चीन से आयातित सस्ती वस्तुओं के कारण एक तिहाई एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग) बंद हो गए हैं।
चीन से आयातित वस्तुओं की गुणवत्ता और कीमत के कारण भारतीय उत्पाद प्रतिस्पर्धा में पिछड़ रहे हैं। कई उद्योगों में उत्पादन लागत को कम करने के प्रयासों के बावजूद, चीन के उत्पाद बाजार पर हावी हैं।
विफल नीतियां और निजी निवेश की कमी
विशेषज्ञों का मानना है कि मेक इन इंडिया योजना के तहत निजी निवेश आकर्षित करने में सरकार बुरी तरह विफल रही है। हालांकि कर कटौती और अन्य प्रोत्साहनों की घोषणाएं की गईं, लेकिन इनका असर जमीनी स्तर पर नजर नहीं आया। बड़े उद्योगों ने मेक इन इंडिया के तहत निवेश करने से परहेज किया, क्योंकि नीति निर्माण में पारदर्शिता की कमी रही।
जयराम रमेश ने इस योजना की विफलता को “मेक-बिलीव इन इंडिया” करार दिया। उन्होंने कहा कि यह अभियान प्रचार से अधिक कुछ नहीं है। इसके विपरीत, उन्होंने 2005-2015 के दशक को भारत के निर्यात के लिए एक स्वर्णिम युग बताया। उस समय भारत का वैश्विक व्यापार में हिस्सा तेजी से बढ़ा, जो मुख्यतः डॉ. मनमोहन सिंह की नीतियों का परिणाम था।
भविष्य की राह: समाधान क्या हो सकते हैं?
भारत को अपनी विनिर्माण क्षमता और निर्यात वृद्धि को पुनर्जीवित करने के लिए नीतिगत बदलावों की सख्त जरूरत है।
1. स्थानीय उद्योगों को संरक्षण
भारत को चीन से आयातित सस्ती वस्तुओं पर निर्भरता कम करनी होगी। इसके लिए आयात पर शुल्क बढ़ाना और घरेलू उद्योगों को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए प्रोत्साहन देना जरूरी है।
2. तकनीकी सुधार और निवेश
उत्पादन प्रक्रियाओं में तकनीकी सुधार के साथ-साथ अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) पर जोर देना होगा। इससे उत्पादों की गुणवत्ता और प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ेगी।
3. एमएसएमई का सशक्तिकरण
छोटे और मध्यम उद्योग (एमएसएमई) भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। उन्हें वित्तीय सहायता, आसान ऋण और वैश्विक बाजारों तक पहुंच प्रदान करनी होगी।
4. विदेशी निवेश को आकर्षित करना
विदेशी निवेशकों का विश्वास जीतने के लिए पारदर्शी और स्थिर नीतियों की जरूरत है। साथ ही, निवेशकों के लिए प्रक्रियाओं को सरल और तेज बनाना होगा।
5. रोजगार-प्रधान क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना
वस्त्र, चमड़ा, फर्नीचर और अन्य रोजगार-प्रधान क्षेत्रों को पुनर्जीवित करना होगा। इन क्षेत्रों में निर्यात को बढ़ावा देने के लिए विशेष नीतियां बनानी होंगी।
मेक इन इंडिया योजना अपने आरंभ से ही एक महत्वाकांक्षी प्रयास रही है, लेकिन इसके क्रियान्वयन में सरकार असफल रही है। दस साल बाद भी, यह योजना न तो रोजगार सृजन में सफल हो पाई और न ही भारत को एक वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित कर पाई।
आज भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह इन विफलताओं से सबक ले और अपनी नीतियों को वास्तविकता के अनुरूप बनाए। मेक इन इंडिया को केवल एक प्रचार अभियान से आगे बढ़ाकर ठोस आर्थिक सुधारों का आधार बनाना होगा। यदि समय रहते यह कदम नहीं उठाए गए, तो भारत के आर्थिक विकास को भारी नुकसान हो सकता है।
मेक इन इंडिया का सपना साकार करने के लिए सरकार को अब जमीनी सच्चाई पर काम करना होगा। तभी यह योजना भारत के विकास का आधार बन सकेगी, अन्यथा यह केवल एक अधूरा वादा बनकर रह जाएगी।