
गोंडा 1 दिसंबर। जिले की बजाज चीनी मिल की कुंदरकी यूनिट में उस समय हड़कंप मच गया जब वहां कार्यरत कर्मचारी गजेंद्र सिंह ने कथित रूप से ढाई सौ से अधिक रक्तचाप नियंत्रित करने वाली गोलियां खा लीं। गंभीर हालत में उन्हें आनन-फानन में गोंडा मेडिकल कॉलेज ले जाया गया, जहां से बेहतर इलाज के लिए लखनऊ रेफर कर दिया गया। हालांकि, लखनऊ पहुंचने के बाद गजेंद्र सिंह की मृत्यु हो गई।
गजेंद्र सिंह की इस दुखद मौत ने न केवल उनके परिवार को गहरा आघात दिया है, बल्कि मिल प्रशासन पर गंभीर सवाल भी खड़े किए हैं। मृतक के परिजनों का आरोप है कि मिल प्रशासन की प्रताड़ना से तंग आकर गजेंद्र ने यह कदम उठाया, जबकि मिल प्रशासन इसे नकारते हुए उनकी मानसिक स्थिति और स्वास्थ्य समस्याओं को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा रहा है।
गजेंद्र सिंह की स्थिति और घटनाक्रम
गजेंद्र सिंह बजाज चीनी मिल की कुंदरकी यूनिट में काम करते थे। जानकारी के अनुसार, घटना से दो दिन पहले से ही वे मिल नहीं आ रहे थे। घटना वाले दिन गजेंद्र ने अचानक मिल पहुंचकर हंगामा शुरू कर दिया, जिसके बाद पुलिस को बुलाया गया।
मिल प्रशासन का कहना है कि गजेंद्र मानसिक रूप से अस्थिर थे और उनका लंबे समय से इलाज चल रहा था। गजेंद्र के इलाज की जानकारी उनकी पत्नी रूबी ने भी पुष्टि की। वहीं दूसरी ओर, गजेंद्र के परिजन मिल प्रशासन पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं।
परिवार का आरोप: प्रताड़ना ने ली जान
गजेंद्र सिंह की पत्नी रूबी का कहना है कि उनका पति पिछले कुछ समय से तनाव में था। उन्होंने आरोप लगाया कि मिल प्रशासन द्वारा किए जा रहे शोषण और मानसिक प्रताड़ना के कारण गजेंद्र ने यह घातक कदम उठाया।
रूबी के अनुसार, “गजेंद्र लखनऊ में डॉक्टर से इलाज करवा रहे थे और दवा भी वहीं से लाते थे। घटना वाले दिन उन्होंने भारी मात्रा में गोलियां खा लीं। मिल प्रशासन का व्यवहार उनके लिए असहनीय हो गया था। यह आत्महत्या प्रताड़ना का परिणाम है।”
गजेंद्र के अन्य परिजन भी रूबी के इस बयान का समर्थन करते हुए मिल प्रशासन पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं।
मिल प्रशासन का पक्ष
चीनी मिल प्रशासन ने इन आरोपों को निराधार बताते हुए गजेंद्र की मानसिक स्थिति और स्वास्थ्य समस्याओं को ही उनकी मौत का कारण बताया। मिल के गेस्ट एचआर मैनेजर एन.के. शुक्ला ने कहा, “गजेंद्र सिंह का काफी समय से इलाज चल रहा था। उनकी पत्नी ने खुद यह स्वीकार किया है। वे मानसिक रूप से परेशान रहते थे और दो दिन से मिल नहीं आए थे। घटना वाले दिन भी उन्होंने हंगामा किया था, जिसके बाद पुलिस को बुलाना पड़ा।” मिल में किसी भी तरह की प्रताड़ना संभव ही नहीं है पूरा मिल परिसर सीसीटीवी कैमरे की निगरानी में है और सभी जगह पर वॉइस रिकॉर्डर भी लगे हुए हैं
उन्होंने यह भी कहा कि मिल प्रशासन गजेंद्र सिंह के परिवार के साथ खड़ा है और हर संभव मदद करेगा।
पुलिस की कार्रवाई
घटना की सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और गजेंद्र सिंह को अस्पताल ले जाने की प्रक्रिया में सहयोग किया। पुलिस ने मामले में प्राथमिक जांच शुरू कर दी है। हालांकि, अभी तक पुलिस ने इस घटना को आत्महत्या के तौर पर दर्ज किया है।
पुलिस का कहना है कि गजेंद्र के परिवार और मिल प्रशासन दोनों के बयानों को ध्यान में रखते हुए मामले की गहनता से जांच की जाएगी।
आत्महत्या के पीछे का कारण: मानसिक स्वास्थ्य या कार्यस्थल का दबाव?
यह घटना कई महत्वपूर्ण सवाल उठाती है। क्या गजेंद्र सिंह की मौत के पीछे उनकी मानसिक स्थिति और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं थीं, या वाकई मिल प्रशासन द्वारा की गई प्रताड़ना ने उन्हें यह कदम उठाने पर मजबूर किया?
मनोवैज्ञानिक विशेषज्ञों का कहना है कि मानसिक तनाव और स्वास्थ्य समस्याएं व्यक्ति को ऐसे खतरनाक कदम उठाने के लिए प्रेरित कर सकती हैं। कार्यस्थल पर शोषण या प्रताड़ना इन समस्याओं को और बढ़ा सकती है।
कानूनी पहलू और प्रशासन की भूमिका
गजेंद्र सिंह की मौत का मामला कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य और कर्मचारियों के साथ व्यवहार के संदर्भ में गंभीर प्रश्न खड़ा करता है। श्रम कानूनों के अनुसार, किसी भी कर्मचारी के मानसिक स्वास्थ्य और कार्यस्थल की स्थितियों की जिम्मेदारी कंपनी की होती है।
अगर जांच में मिल प्रशासन पर लगाए गए आरोप सही साबित होते हैं, तो यह मामला न केवल कानूनी कार्रवाई का आधार बनेगा, बल्कि मिल की साख पर भी गहरा असर डालेगा।
गजेंद्र सिंह की कहानी: एक परिवार के सपने अधूरे
गजेंद्र सिंह की इस दुखद मौत ने उनके परिवार को गहरे संकट में डाल दिया है। उनकी पत्नी और बच्चों के लिए यह न केवल भावनात्मक आघात है, बल्कि आर्थिक असुरक्षा का कारण भी बन गया है।
रूबी का कहना है, “गजेंद्र बहुत मेहनती और पारिवारिक व्यक्ति थे। उन्होंने हमारे लिए हमेशा संघर्ष किया, लेकिन मिल प्रशासन ने उन्हें इतनी परेशानी दी कि वे टूट गए।”
प्रभात भारत विशेष
इस मामले में सत्य क्या है, यह पुलिस और प्रशासन की जांच के बाद ही स्पष्ट हो पाएगा। लेकिन यह घटना इस बात की गंभीरता को रेखांकित करती है कि कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य और कर्मचारियों के साथ व्यवहार को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
गजेंद्र सिंह की मौत एक त्रासदी है, जो समाज और प्रशासन दोनों के लिए एक चेतावनी है कि मानसिक स्वास्थ्य और कार्यस्थल की परिस्थितियों को हल्के में नहीं लें।