
लखनऊ 28 नवंबर। उत्तर प्रदेश में विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण के प्रस्ताव ने एक बड़ा विवाद खड़ा कर दिया है। उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद अभियंता संघ ने वाराणसी और आगरा विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण के खिलाफ एकजुट होकर संघर्ष करने का निर्णय लिया है। संघ ने उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (यूपीपीसीएल) प्रबंधन के तर्कों को खारिज करते हुए इसे जनहित और कर्मचारियों के अधिकारों के खिलाफ बताया है।
अभियंता संघ ने आरोप लगाया कि घाटे को निजीकरण का आधार बनाना न केवल भ्रामक है, बल्कि इसके पीछे वास्तविक उद्देश्य सार्वजनिक सेवाओं को मुनाफे के लिए निजी हाथों में सौंपना है। संघ का कहना है कि यदि यह प्रस्ताव लागू होता है तो हजारों कर्मचारी और अधिकारी प्रभावित होंगे, और इससे उत्तर प्रदेश की बिजली आपूर्ति प्रणाली को भी नुकसान होगा।
संघ का रुख: घाटे का तर्क भ्रामक
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत परिषद अभियंता संघ की केंद्रीय कार्यकारिणी ने सर्वसम्मति से यूपीपीसीएल के घाटे के तर्क को खारिज किया। संघ ने कहा कि राज्य की विद्युत व्यवस्था में सुधार के लिए अभियंताओं ने हमेशा प्रबंधन को सहयोग दिया है।
संघ के अनुसार, यूपीपीसीएल ने यह तर्क दिया है कि वाराणसी और आगरा डिस्कॉम घाटे में चल रहे हैं, जिसके कारण इन्हें निजी हाथों में देना आवश्यक है। अभियंता संघ ने इसे सिरे से खारिज करते हुए कहा कि निजीकरण से घाटा कम नहीं होगा बल्कि सेवा की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। संघ का कहना है कि यदि घाटे को कम करने के लिए प्रभावी रणनीति अपनाई जाए तो सार्वजनिक क्षेत्र के निगम भी लाभदायक हो सकते हैं।
निजीकरण से हजारों नौकरियां खतरे में
संघ का कहना है कि निजीकरण का सीधा असर कर्मचारियों पर पड़ेगा। वर्तमान में आगरा डिस्कॉम में 10,411 और वाराणसी डिस्कॉम में 17,189 कर्मचारी कार्यरत हैं। यदि ये निगम निजी हाथों में चले जाते हैं, तो लगभग 27,600 कर्मचारी बेरोजगार हो जाएंगे।
इसके अतिरिक्त, निजीकरण के कारण 1,523 इंजीनियरिंग पद समाप्त हो जाएंगे। इससे सहायक अभियंता, अधिशासी अभियंता, अधीक्षण अभियंता और मुख्य अभियंताओं पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा। संघ के अनुसार सात मुख्य अभियंता (स्तर-1) के पद समाप्त हो सकते हैं। 33 मुख्य अभियंता (स्तर-2) को पदावनत किया जाएगा। 144 अधीक्षण अभियंता और 507 अधिशासी अभियंता भी प्रभावित होंगे।
संघ का कहना है कि यह न केवल कर्मचारियों की आजीविका पर हमला है, बल्कि विद्युत वितरण प्रणाली की दक्षता को भी खतरे में डालता है।
सेवा शर्तों को लेकर असहमति
संघ ने यूपीपीसीएल द्वारा दी जा रही सेवा शर्तों के बारे में भी सवाल उठाए। उनका कहना है कि निगम का दावा है कि निजीकरण के बाद कर्मचारियों की नौकरी और अन्य सुविधाएं प्रभावित नहीं होंगी, लेकिन अनुभव बताते हैं कि निजी कंपनियां मुनाफा कमाने के लिए छंटनी और सेवा शर्तों में कटौती का सहारा लेती हैं।
अभियंता संघ ने यूपीपीसीएल प्रबंधन पर कर्मचारियों को भ्रमित करने का आरोप लगाया और कहा कि निजीकरण के बाद सेवा शर्तों की गारंटी देना असंभव है। उन्होंने चेतावनी दी कि निजीकरण के इस कदम से न केवल कर्मचारियों का मनोबल गिरेगा, बल्कि नई भर्तियों के अवसर भी सीमित हो जाएंगे।
विद्युत आपूर्ति पर प्रभाव
अभियंता संघ का कहना है कि निजीकरण का असर सिर्फ कर्मचारियों पर ही नहीं, बल्कि विद्युत आपूर्ति की गुणवत्ता पर भी पड़ेगा। उनका तर्क है कि निजी कंपनियां मुनाफे पर केंद्रित होती हैं और उनके लिए उपभोक्ताओं के हित प्राथमिकता में नहीं होते।
संघ ने चेतावनी दी कि निजीकरण के बाद ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली आपूर्ति और वितरण की स्थिति खराब हो सकती है, बिजली की दरें बढ़ सकती हैं, जिससे उपभोक्ताओं पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा। निजी कंपनियां केवल लाभप्रद क्षेत्रों पर ध्यान देंगी, जिससे कई क्षेत्रों में बिजली आपूर्ति असमान हो सकती है।
आंदोलन की रणनीति
अभियंता संघ ने इस प्रस्ताव के खिलाफ आंदोलन चलाने का निर्णय लिया है। उन्होंने कहा कि वे जनजागरण अभियान शुरू करेंगे ताकि आम जनता को निजीकरण के दुष्प्रभावों के बारे में जानकारी दी जा सके। इसके साथ ही, संघ ने कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए कानूनी कदम उठाने की भी तैयारी की है।
संघ के नेताओं का कहना है कि वे सभी संभव विकल्पों पर विचार कर रहे हैं, जिसमें बड़े पैमाने पर प्रदर्शन, हड़ताल और जनप्रतिनिधियों से संपर्क करना शामिल है। उन्होंने कहा, “यह सिर्फ कर्मचारियों की लड़ाई नहीं है, बल्कि पूरे राज्य के उपभोक्ताओं और विद्युत आपूर्ति की स्थिरता के लिए है।”
अन्य राज्यों के अनुभव
संघ ने देश के अन्य राज्यों में निजीकरण के अनुभवों का हवाला देते हुए कहा कि निजीकरण से न तो सेवा में सुधार हुआ है और न ही उपभोक्ताओं को लाभ मिला है। उन्होंने दिल्ली और ओडिशा का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां बिजली की दरें बढ़ी हैं और सेवा की गुणवत्ता पर भी सवाल उठे हैं।
उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में निजीकरण के परिणाम और भी गंभीर हो सकते हैं। संघ का कहना है कि राज्य सरकार को घाटे को कम करने के लिए निजीकरण से बेहतर विकल्प तलाशने चाहिए।
सरकार और प्रबंधन से अपील
संघ ने राज्य सरकार और यूपीपीसीएल प्रबंधन से अपील की है कि वे निजीकरण के इस कदम पर पुनर्विचार करें। उन्होंने कहा कि कर्मचारियों और उपभोक्ताओं की भावनाओं का सम्मान करते हुए सार्वजनिक क्षेत्र की मजबूती के लिए सुधारात्मक कदम उठाए जाने चाहिए।
संघ ने कहा, “यदि सरकार और प्रबंधन कर्मचारियों के साथ मिलकर काम करें, तो घाटा कम किया जा सकता है। निजीकरण इसका समाधान नहीं है
प्रभात भारत विशेष
वाराणसी और आगरा डिस्कॉम के निजीकरण के खिलाफ अभियंता संघ का विरोध केवल कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक बड़े मुद्दे को दर्शाता है। यह मामला सार्वजनिक क्षेत्र और निजीकरण की बहस का केंद्र बन गया है।
अभियंता संघ के इस अभियान से यह स्पष्ट है कि उत्तर प्रदेश में निजीकरण का रास्ता आसान नहीं होगा। संघ की चेतावनी और आंदोलन की तैयारी राज्य सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती पेश कर सकती है। अब देखना यह है कि सरकार और यूपीपीसीएल प्रबंधन इस विवाद को सुलझाने के लिए क्या कदम उठाते हैं।