गोंडा में चल रहे एक घूस कांड पर एक प्रस्तुति है
गोंडा की मिट्टी में एक खेल हुआ,
जहां ईमान का सौदा महंगे में हुआ।
सौ करोड़ का रिश्वत का कारोबार,
हर ख्वाब का बिकता दिखा बाजार।
फाइलों के पन्ने जो थमे पड़े थे,
वो नोटों की गर्मी से खुद ही मुड़े थे।
कामयाबी के जलवे दिखाए गए,
हर दिल को झूठे बहलाए गए।
लोगों ने भी खुशी से हाथ बढ़ाया,
नकद देकर हर काम बनाया।
“काम हो जाए, यह है जरूरी,”
हर शख्स ने समझी यही मजबूरी।
पर पर्दे के पीछे कहानी जो चली,
वो लालच की आग में जलकर गली।
हिस्सेदारी पर शुरू हुआ झगड़ा,
अब छुप नहीं सकता ये घोटाला बड़ा।
नेताओं के घरों में चिराग जले,
सुनहरी ख्वाबों में वो भी फले।
पर नीयत की परतें अब खुलने लगीं,
सच की लहरें सब कुछ बहाने लगीं।
कौन था जिम्मेदार, ये सवाल उठा,
किसका हिस्सा कितना, ये फसाद बढ़ा।
रिश्ते हुए खाक, दोस्त बन गए दुश्मन,
हर जुबां पर बस है ये एक गुमां।
“घूस का दरबार” अब कांप रहा है,
सच का सूरज चमकने को तैयार है।
मुल्क की सूरत बदलने लगी,
सियासत की परछाईं मचलने लगी।
हर दर पे सवालात पूछे जा रहे हैं,
जिन्हें देने पड़े जवाबात अब छुपा रहे हैं।
पैसों के इस खेल ने दिखा दिया,
कैसे ईमानदारी का कद गिरा दिया।
अब इंतजार है, इंसाफ की घड़ी का,
किसी बहाने से नहीं, सच्चाई की कड़ी का।
घूस के गढ़ को मिटाना होगा,
गोंडा को फिर से बसाना होगा।
ये वाकया एक नसीहत है सबके लिए,
ईमान न बिके, ये इबारत है दिल के लिए।
सौ करोड़ का खेल चाहे जितना चमके,
सच का नूर हर अंधेरे को थामे।
गोंडा की दास्तां यही कह रही है,
सच की सदा हर तरफ गूंज रही है।
हर कदम पर अब उम्मीदें उभरें,
लालच की बेड़ियां टूटकर बिखरें।

