गोंडा 17 नवंबर। जिले की स्वास्थ्य सेवाओं का जो तंत्र बना है, वह सरकारी योजनाओं और नीतियों को कमजोर करते हुए गरीब और जरूरतमंदों को लूटने का एक साधन बन चुका है। ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूती देने के लिए नियुक्त आशा बहुएं अब प्राइवेट नर्सिंग होम संचालकों के साथ मिलकर एक व्यापक नेटवर्क का हिस्सा बन चुकी हैं। यह नेटवर्क न केवल सरकारी योजनाओं को विफल कर रहा है, बल्कि समाज के सबसे कमजोर वर्गों का आर्थिक शोषण भी कर रहा है।
आशा बहुओं की नियुक्ति और उनकी जिम्मेदारियां
आशा बहुओं की नियुक्ति का मुख्य उद्देश्य मातृ और शिशु मृत्यु दर को कम करना था। उनके कामों में गर्भवती महिलाओं का पंजीकरण, टीकाकरण, संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देना और मां-बच्चे की स्वास्थ्य जांच सुनिश्चित करना शामिल है।
इन जिम्मेदारियों के साथ, आशा बहुओं को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) पर गर्भवती महिलाओं को लाना और सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाना होता है। लेकिन गोंडा के ग्रामीण इलाकों में स्थिति कुछ अलग है।
वास्तविकता: जिम्मेदारियों से भटकाव
आशा बहुएं अपने अधिकार क्षेत्र के गर्भवती महिलाओं का पंजीकरण तो करती हैं, लेकिन यह प्रक्रिया सरकारी अस्पतालों तक सीमित नहीं रहती। अक्सर वे मरीजों को प्राइवेट नर्सिंग होम तक ले जाती हैं, जहां बेहतर इलाज का झांसा देकर मरीजों का आर्थिक शोषण किया जाता है।
इन मरीजों को रेफर करने का यह खेल कई बार उनकी सहमति के बिना होता है। आशा बहुओं की यह भूमिका सरकारी योजनाओं के उद्देश्यों के विपरीत है।
रेफरल का खेल: प्राइवेट नर्सिंग होम का जाल
गोंडा जिले के परसपुर और मनकापुर जैसे क्षेत्रों में प्राइवेट नर्सिंग होम तेजी से बढ़े हैं। सूत्रों के अनुसार, ये नर्सिंग होम आशा बहुओं को प्रति मरीज ₹10,000 तक का इंसेंटिव देते हैं। यह रकम मरीजों से वसूले गए भारी-भरकम बिलों से निकाल ली जाती है।
हाल ही में वायरल हुए चैट संदेशों ने इस पूरे तंत्र का पर्दाफाश किया। इन चैट्स में आशा बहुओं और अस्पताल संचालकों के बीच लेन-देन की बातचीत थी। यह चैट साबित करती है कि सरकारी अस्पतालों से रेफरल के जरिए मरीजों को जानबूझकर प्राइवेट नर्सिंग होम भेजा जाता है।
गोंडा महिला अस्पताल: रेफरल का केंद्र
गोंडा महिला अस्पताल, जो जिले का मुख्य सरकारी अस्पताल है, इस रेफरल तंत्र का एक बड़ा केंद्र बन गया है। मरीजों और उनके परिवारों का आरोप है कि यहां के स्टाफ और डॉक्टर मरीजों को सरकारी अस्पताल में इलाज के बजाय प्राइवेट नर्सिंग होम जाने पर मजबूर करते हैं।
दुर्व्यवहार की शिकायतें
मरीजों के परिवारों ने शिकायत की है कि इलाज के नाम पर उन्हें अनावश्यक जांचें और दवाएं लेने को कहा जाता है। सरकारी अस्पताल में बुनियादी सुविधाओं की कमी और स्टाफ का व्यवहार मरीजों को प्राइवेट अस्पताल जाने के लिए बाध्य करता है।
आशा बहुओं की ताकत और पंचायत पर प्रभाव
आशा बहुएं गांवों में स्वास्थ्य सेवाओं की कड़ी मानी जाती हैं। लेकिन अब वे पंचायत स्तर पर भी प्रभावशाली बन गई हैं। उनकी नियुक्ति ग्राम प्रधान के प्रस्ताव पर होती है, लेकिन कुछ मामलों में वे प्रधान से भी अधिक शक्तिशाली दिखती हैं।
आशा बहुओं ने प्राइवेट नर्सिंग होम संचालकों के साथ मिलकर एक ऐसा तंत्र खड़ा कर लिया है, जिससे वे मरीजों और उनके परिवारों को अपनी शर्तों पर संचालित कर सकती हैं।
अवैध नर्सिंग होम: गरीबों का शोषण
गोंडा जिले में अवैध नर्सिंग होम कुकुरमुत्तों की तरह फैल गए हैं। ये अस्पताल न केवल स्वास्थ्य मानकों की अनदेखी करते हैं, बल्कि गरीब और जरूरतमंद मरीजों का भीषण शोषण भी करते हैं।
खराब गुणवत्ता और अधिक शुल्क
इन अस्पतालों में इलाज की गुणवत्ता बेहद खराब है, लेकिन मरीजों से भारी शुल्क वसूला जाता है। आंकड़ों के अनुसार, इन नर्सिंग होम का फेलियर रेट 60% से अधिक है। इसके बावजूद मरीजों को यहां ले जाना जारी है।
सरकारी योजनाएं: असलियत और असफलता
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम), जननी सुरक्षा योजना और प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना जैसी सरकारी योजनाएं गरीबों और वंचितों को स्वास्थ्य सेवाएं देने के उद्देश्य से बनाई गई हैं।
लेकिन गोंडा जिले में इन योजनाओं का लाभ वास्तविक जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच पा रहा है। आशा बहुएं और नर्सिंग होम संचालकों का गठजोड़ इन योजनाओं के उद्देश्यों को विफल कर रहा है।
समाधान और प्रशासन की जिम्मेदारी
गोंडा जिले में स्वास्थ्य तंत्र को सुधारने के लिए प्रशासन को तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।
1. रेफरल प्रणाली की जांच
सरकारी अस्पतालों से किए जा रहे हर रेफरल केस की गहन जांच होनी चाहिए। रेफरल में शामिल डॉक्टरों और स्टाफ की जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए।
2. आशा बहुओं की निगरानी
आशा बहुओं के कार्यों की नियमित समीक्षा होनी चाहिए। उनके बैंक खातों और मरीजों के साथ किए गए व्यवहार की भी जांच होनी चाहिए।
3. अवैध नर्सिंग होम पर कार्रवाई
जिले में चल रहे सभी अवैध नर्सिंग होम की पहचान कर उन पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
4. सरकारी अस्पतालों में सुधार
सरकारी अस्पतालों में बुनियादी सुविधाओं, डॉक्टरों की संख्या और उपकरणों में सुधार किया जाना चाहिए ताकि मरीजों को बेहतर इलाज मिल सके।
5. जागरूकता अभियान
गांवों में मरीजों और उनके परिवारों को सरकारी योजनाओं और स्वास्थ्य सेवाओं के बारे में जागरूक करना बेहद जरूरी है।
प्रभात भारत विशेष
गोंडा जिले में आशा बहुओं और प्राइवेट नर्सिंग होम का गठजोड़ गरीब और जरूरतमंद मरीजों के लिए स्वास्थ्य सेवा को एक महंगे व्यापार में बदल रहा है।
सरकार की योजनाओं और नीतियों का लाभ तब तक नहीं मिलेगा, जब तक इस भ्रष्ट तंत्र को खत्म नहीं किया जाएगा। प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग को चाहिए कि वे मिलकर इस समस्या का समाधान करें और ग्रामीण इलाकों में सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं सुनिश्चित करें।
जब तक आशा बहुओं के तंत्र और प्राइवेट नर्सिंग होम के गठजोड़ पर रोक नहीं लगती, तब तक गरीबों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना एक सपना ही रहेगा।

