नई दिल्ली, (विजय कुमार)। आज के दौर में, भारत जैसे बड़े लोकतंत्र में सोशल मीडिया और इंस्टेंट मैसेजिंग ऐप्स केवल संवाद के साधन नहीं रह गए हैं। ये एक ऐसा माध्यम बन चुके हैं, जो सूचनाओं के प्रसारण, विचारों के आदान-प्रदान, और राय बनाने में गहरा प्रभाव डालता है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, ट्विटर जैसे अमेरिकी टेक्नोलॉजी दिग्गज भारत के डिजिटल स्पेस में छाए हुए हैं, जिनसे देश की संप्रभुता और लोकतंत्र के लिए कई चुनौतियां खड़ी हो सकती हैं। यदि जल्द ही भारत अपने सोशल नेटवर्क और इंस्टेंट मैसेजिंग प्लेटफॉर्म का निर्माण नहीं करता है, तो यह संभव है कि भविष्य में विदेशी शक्तियाँ हमारे चुनावी निर्णयों में हस्तक्षेप कर सकेंगी।
आइए देखें कि भारत के नागरिकों के जीवन पर सोशल मीडिया और मैसेजिंग ऐप्स का क्या प्रभाव पड़ता है, और यह भी कि भारतीय प्लेटफॉर्म्स का निर्माण क्यों जरूरी है।
सोशल नेटवर्किंग और मैसेजिंग ऐप्स का प्रभाव: हर मोबाइल धारक से लेकर समाज तक
भारत में लगभग हर एंड्रॉयड मोबाइल धारक किसी न किसी सोशल मीडिया या मैसेजिंग प्लेटफॉर्म का हिस्सा है। चाहे वह व्हाट्सएप हो, फेसबुक हो, या इंस्टाग्राम, देश का हर कोना इन प्लेटफॉर्म्स से जुड़ा हुआ है। ग्रामीण क्षेत्रों में भी जहाँ अन्य तकनीकी सेवाओं की पहुंच सीमित है, वहाँ भी मोबाइल इंटरनेट और सोशल मीडिया ने एक नई क्रांति पैदा की है। इसका मुख्य कारण यह है कि भारत में मोबाइल और इंटरनेट की पहुंच व्यापक है और कम लागत पर उपलब्ध है।
सोशल नेटवर्किंग प्लेटफार्मों ने न केवल लोगों को अपनी राय व्यक्त करने का एक साधन दिया है, बल्कि ये प्लेटफार्म अब हमारे समाज, राजनीति और व्यक्तिगत विचारों को भी आकार देने लगे हैं। उदाहरण के लिए, कोई भी नया विचार, नीति या राजनीतिक आंदोलन सोशल मीडिया के माध्यम से तुरंत जनता के बीच पहुँच सकता है। इससे लोगों के विचारों और प्राथमिकताओं में तेजी से बदलाव देखा जा सकता है।
सोशल मीडिया का राजनीतिक प्रभाव और चुनावी परिणामों पर इसका असर
भारत जैसे बड़े लोकतंत्र में चुनावों पर सोशल मीडिया का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। राजनीतिक पार्टियां इन प्लेटफॉर्म्स का उपयोग अपने प्रचार के लिए करती हैं, और इनमें फैले विचार और मुद्दे लोगों की राय को प्रभावित करते हैं। हालांकि, अगर ये प्लेटफॉर्म विदेशी नियंत्रण में हैं, तो इसमें एक बड़ी समस्या हो सकती है। हाल ही के वर्षों में विभिन्न देशों में यह देखा गया है कि चुनावी अभियानों में सोशल मीडिया का दुरुपयोग हो सकता है। अमेरिका, ब्राज़ील, और यूके जैसे देशों में यह देखा गया कि गलत सूचनाओं और दुष्प्रचार के माध्यम से चुनावी नतीजों को प्रभावित करने की कोशिश की गई।
भारत में भी यह आशंका है कि यदि सोशल नेटवर्किंग प्लेटफार्म विदेशी नियंत्रण में रहे तो भविष्य में चुनावी प्रक्रियाओं पर बाहरी हस्तक्षेप बढ़ सकता है। यह एक गंभीर मुद्दा है, क्योंकि सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स की पहुँच अब केवल युवाओं तक ही सीमित नहीं है। गाँव और छोटे शहरों में भी लोग इन प्लेटफार्म्स का उपयोग करते हैं और इनके द्वारा प्रसारित जानकारी को सत्य मान लेते हैं। ऐसी स्थिति में, बाहरी ताकतों द्वारा प्रसारित कोई भी असत्य या भ्रामक जानकारी सीधे तौर पर जनता की राय और चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकती है।
मेक इन इंडिया का महत्व और गुणवत्ता का प्रश्न
भारत में “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” जैसे अभियानों का उद्देश्य देश में गुणवत्तापूर्ण उत्पादों का निर्माण करना और आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना है। लेकिन जब बात सोशल नेटवर्किंग और इंस्टेंट मैसेजिंग ऐप्स की आती है, तो “मेक इन इंडिया” की असल चुनौती यह होती है कि हमें केवल एक प्लेटफॉर्म बनाना नहीं है बल्कि उसकी गुणवत्ता और उपयोगिता को भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खरा उतारना है। कई लोग इस अभियान का समर्थन करते हैं, परन्तु कुछ ऐसे लोग भी हैं जो गुणवत्ता की अनदेखी करते हैं और दोयम दर्जे के उत्पाद पेश करते हैं। इस स्थिति में यह जरूरी है कि “मेक इन इंडिया” का असली मतलब केवल ‘भारत में बना हुआ’ नहीं बल्कि ‘उच्च गुणवत्ता का और सुरक्षित’ हो।
उदाहरण के लिए, हाल ही में लॉन्च हुए कुछ भारतीय ऐप्स जैसे कि कू (Koo) और सांदेस को पर्याप्त समर्थन तो मिला है, लेकिन उनकी उपयोगिता और फीचर्स में अभी भी सुधार की आवश्यकता है। यदि ये ऐप्स और प्लेटफॉर्म विदेशी प्लेटफार्म्स का उचित विकल्प बनना चाहते हैं, तो उन्हें वैश्विक मानकों के हिसाब से बनाना आवश्यक है।
एफडीआई और डेटा सुरक्षा: एक अन्य चुनौती
भारत में एफडीआई (विदेशी प्रत्यक्ष निवेश) बढ़ने के कारण विदेशी टेक कंपनियों का प्रभाव भी बढ़ता जा रहा है। यह भारतीय उपभोक्ताओं के लिए कुछ हद तक फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि इससे रोजगार और तकनीकी ज्ञान की उपलब्धता में वृद्धि होती है। लेकिन इसके साथ ही एक गंभीर समस्या यह भी है कि इन विदेशी कंपनियों के पास भारतीय उपभोक्ताओं का डेटा होता है, जिसे वे अपने हिसाब से उपयोग कर सकती हैं।
डेटा सुरक्षा के इस मुद्दे के कारण यह आवश्यक हो गया है कि भारत में ऐसे सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म्स का निर्माण किया जाए, जिनके डेटा स्टोरेज और गोपनीयता नीतियाँ पूरी तरह से भारतीय कानूनों के तहत संचालित हों। यह देश की संप्रभुता और जनता की गोपनीयता की रक्षा के लिए आवश्यक है। यदि भारत के पास अपने प्लेटफार्म होंगे, तो न केवल हमारा डेटा सुरक्षित रहेगा बल्कि बाहरी नियंत्रण का खतरा भी कम होगा।
भारतीय सोशल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म का निर्माण क्यों अनिवार्य है?
भारत में डिजिटल स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए एक मजबूत और सुरक्षित सोशल नेटवर्क प्लेटफॉर्म और इंस्टेंट मैसेजिंग ऐप का निर्माण आवश्यक है। इससे देश के नागरिकों के पास अपनी स्वतंत्रता और गोपनीयता की रक्षा का साधन होगा।
वर्तमान में, भारतीय टेक्नोलॉजी इंडस्ट्री के पास पर्याप्त कौशल और संसाधन हैं, लेकिन उनका सही दिशा में उपयोग करने की आवश्यकता है। सरकार और निजी क्षेत्र को मिलकर एक ठोस नीति बनानी चाहिए, जिसमें भारतीय सोशल मीडिया और मैसेजिंग ऐप्स को विकास के लिए आर्थिक सहायता और तकनीकी विशेषज्ञता प्रदान की जा सके।
प्रभात भारत विशेष “एक आत्मनिर्भर भारत की दिशा में कदम”
भारत के पास डिजिटल आत्मनिर्भरता प्राप्त करने का यह एक सुनहरा अवसर है। इसके लिए आवश्यक है कि हम गुणवत्तापूर्ण, सुरक्षित और उपयोगकर्ता-अनुकूल सोशल नेटवर्किंग और मैसेजिंग प्लेटफार्म्स का निर्माण करें, जो विदेशी प्लेटफार्म्स का वास्तविक विकल्प बन सकें।
इस दिशा में सरकार को भी ऐसी नीतियाँ लागू करनी होंगी जो भारतीय कंपनियों को प्रोत्साहित करें और विदेशी कंपनियों के डेटा संग्रहण और उपयोग पर कड़ी निगरानी रखें।
यदि भारत इस लक्ष्य को हासिल करता है, तो यह न केवल देश के आर्थिक और राजनीतिक हितों की रक्षा करेगा बल्कि भारतीय समाज और लोकतंत्र के स्वतंत्रता की दिशा में भी एक बड़ा कदम होगा।

