
लखनऊ 10 नवंबर। उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग द्वारा हाल ही में प्रस्तावित नीतियों ने देशभर में महिलाओं की सुरक्षा, अधिकार और स्वतंत्रता के संदर्भ में एक नई बहस को जन्म दिया है। आयोग ने सुरक्षा के नाम पर महिलाओं के लिए पुरुष कर्मचारियों से सेवाएं लेने पर कुछ कड़े प्रतिबंधों की सिफारिश की है। इन सिफारिशों के अंतर्गत, पुरुष दर्जियों को महिलाओं के माप लेने से रोकना, महिला जिम ग्राहकों के लिए पुरुष प्रशिक्षकों की जगह महिला प्रशिक्षकों की अनिवार्यता, और हेयरड्रेसर के रूप में पुरुषों के महिलाओं के बाल काटने पर रोक जैसे कई मुद्दे शामिल हैं। ये प्रस्ताव सुरक्षा और असुरक्षित परिस्थितियों से महिलाओं को बचाने के नाम पर किए जा रहे हैं, लेकिन समाज में महिलाओं की स्वतंत्रता और उनके चुनाव पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ सकता है।
प्रस्तावों की पृष्ठभूमि और उद्देश्य
उत्तर प्रदेश महिला आयोग की प्रमुख बबीता चौहान के अनुसार, प्रस्तावों का उद्देश्य महिलाओं को असहज स्थितियों और असुरक्षित स्पर्श से बचाना है। उनका मानना है कि जिम, सैलून और अन्य सेवाओं में महिलाओं के साथ काम करने वाले पुरुष कर्मचारियों द्वारा किसी भी “बुरे इरादे” को रोकने के लिए ये उपाय जरूरी हैं। चौहान के अनुसार, हर जिम प्रशिक्षक का पुलिस सत्यापन होगा, और यदि कोई महिला किसी पुरुष प्रशिक्षक के साथ ट्रेनिंग लेना चाहती है, तो उसे अपनी लिखित सहमति देनी होगी।
लखनऊ में 28 अक्टूबर को हुई बैठक में प्रस्तावों पर चर्चा के दौरान आयोग के सदस्यों ने सार्वजनिक और व्यवसायिक स्थानों पर महिलाओं की सुरक्षा बढ़ाने के लिए इन उपायों पर चर्चा की। आयोग की सदस्य मनीषा अहलावत ने बताया कि इन प्रस्तावों की व्यवहार्यता पर अभी विचार किया जा रहा है। एक बार स्वीकृति मिलने पर इन्हें नीति के रूप में कार्यान्वयन के लिए सरकार को भेजा जाएगा। इस बीच, शामली जिले में जिला परिवीक्षा अधिकारी हामिद हुसैन ने कुछ सिफारिशों को पहले ही लागू करने का आदेश दिया है, जिसमें महिला जिम और योग केंद्रों में महिला प्रशिक्षकों की अनिवार्यता और सीसीटीवी कैमरों का उपयोग शामिल है।
महिला स्वतंत्रता पर प्रभाव: एक वैचारिक बहस
आयोग के इन प्रस्तावों पर समाज के विभिन्न वर्गों से मिलाजुला प्रतिक्रियाएं आई हैं। कुछ लोगों का मानना है कि यह सुरक्षा उपाय महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल बनाने में सहायक होंगे। लेकिन, आलोचकों का मानना है कि यह महिला स्वतंत्रता को सीमित करने और उनके व्यक्तिगत चुनावों पर रोक लगाने का प्रयास है। वे तर्क देते हैं कि यह निर्णय महिलाओं के जीवन में उनकी पसंद और स्वतंत्रता को सीमित कर सकता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि लिंग-विशिष्ट सेवाओं का निर्माण और प्रतिबंधात्मक नीतियाँ अनजाने में समाज में एक अलगाव का निर्माण कर सकती हैं। कुछ महिला अधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि इन दिशा-निर्देशों से महिलाओं की एजेंसी और उनके निर्णय लेने की स्वतंत्रता कम हो सकती है। यदि महिलाएँ एक पुरुष दर्जी या प्रशिक्षक के साथ काम करने में सहज महसूस करती हैं, तो यह उनके अधिकार का उल्लंघन हो सकता है।
पूर्व के विवाद और महिला आयोग के प्रति आलोचना
यह पहली बार नहीं है जब उत्तर प्रदेश महिला आयोग ने विवादास्पद टिप्पणियों और प्रस्तावों के कारण ध्यान खींचा है। जून 2021 में, आयोग की सदस्य मीना कुमारी ने सुझाव दिया था कि लड़कियों को मोबाइल फोन नहीं दिए जाने चाहिए, क्योंकि इससे उन पर यौन हमलों और बलात्कार का खतरा हो सकता है। उन्होंने कहा था कि लड़कियाँ फोन का उपयोग करके लड़कों से बात करती हैं और बाद में उनके साथ भाग जाती हैं। इस बयान पर कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कड़ी प्रतिक्रिया दी और इसे महिला सशक्तिकरण के खिलाफ बताया।
दलित नेता राजकुमार नागरथ ने इस टिप्पणी को “शर्मनाक” बताया और कहा कि ऐसी मानसिकता रखने वालों का महिला आयोग में स्थान नहीं होना चाहिए। उन्होंने कहा कि लड़कियों पर अनावश्यक प्रतिबंध लगाकर उनके अधिकारों और स्वतंत्रता पर अंकुश लगाना सही नहीं है। उनके अनुसार, मोबाइल फोन न केवल एक संचार माध्यम है, बल्कि लड़कियों के लिए शिक्षा और कैरियर में प्रगति के साधन के रूप में भी काम करता है।
अन्य विवादास्पद नीतियाँ और सुरक्षा उपायों के अनपेक्षित प्रभाव
महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर किए गए कुछ अन्य उपाय भी विवादों के घेरे में रहे हैं। 2022 में, उत्तर प्रदेश सरकार ने महिलाओं के काम के घंटे सीमित करने का आदेश जारी किया, जिसमें शाम 7 बजे से सुबह 6 बजे तक महिलाओं को बिना लिखित सहमति के काम करने की अनुमति नहीं थी। हालांकि इस आदेश का उद्देश्य महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना था, लेकिन इसके परिणामस्वरूप देर रात काम करने वाली भूमिकाओं में महिलाओं के अवसर सीमित हो गए, जिससे लिंग आधारित भेदभाव और गहरा हो गया।
इसके अतिरिक्त, मंदिरों में लागू किए गए ड्रेस कोड ने भी कई सवाल खड़े किए हैं। मई 2023 में, मुजफ्फरनगर के श्री बालाजी महाराज मंदिर ने महिलाओं और लड़कियों के छोटे कपड़ों पर प्रतिबंध लगाने के लिए नोटिस जारी किया। इस तरह के नियम, जो विशेष रूप से महिलाओं के पहनावे को लक्षित करते हैं, सामाजिक और सांस्कृतिक तौर पर महिलाओं के अधिकारों पर सवाल खड़े करते हैं। इसे भारतीय संस्कृति के संरक्षण के नाम पर लागू किया गया, लेकिन इससे महिलाओं की व्यक्तिगत पसंद को सीमित करने का मुद्दा उभर कर सामने आया।
प्रभात भारत विशेष
उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग के हालिया प्रस्तावों ने समाज में महिलाओं की सुरक्षा और स्वतंत्रता के बीच संतुलन की आवश्यकता को उजागर किया है। एक ओर जहाँ ये प्रस्ताव महिलाओं को सुरक्षित माहौल प्रदान करने का दावा करते हैं, वहीं दूसरी ओर, यह उनकी स्वायत्तता और व्यक्तिगत निर्णयों पर सवाल खड़े करते हैं। सुरक्षा सुनिश्चित करने के प्रयास में महिलाओं की स्वतंत्रता और अधिकारों को सीमित करना शायद समस्या का स्थायी समाधान नहीं है।
महिलाओं की सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए हमें एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है जो उन्हें सुरक्षित महसूस कराते हुए स्वतंत्रता और चुनाव का अधिकार भी प्रदान करे। सुरक्षा उपाय और नीतियाँ इस तरह से लागू की जानी चाहिए कि वे महिलाओं की स्वतंत्रता को बढ़ावा दें, न कि उनके अधिकारों और चुनावों को सीमित करें। इसके साथ ही, ऐसे नीतिगत बदलाव समाज में महिलाओं के प्रति सोच में सकारात्मक बदलाव ला सकते हैं, जिससे एक बेहतर और सुरक्षित समाज का निर्माण संभव हो सकेगा।