
परसपुर/गोण्डा 7 नवंबर। परसपुर थाना का भौरीगंज मोड़ हो या करनैलगंज का अस्पताल मोड दोनों जगह पर पर हाल ही में देखने को मिला एक भयावह दृश्य, क्षेत्र में डग्गामार बसों के बढ़ते खतरे को उजागर करता है। एक बस को यात्रियों से भरी हुई देखा गया, जिसमें सवारियां बस की छत तक पर बैठी थीं। यह स्थिति दर्शाती है कि परिवहन के नियमों की धज्जियाँ उड़ाते हुए, यात्री सुरक्षा को नजरअंदाज कर दिया गया है। जिस बस की तस्वीर देखी जा सकती है, उसमें छत पर बैठे यात्रियों के सिर के ऊपर से हाई वोल्टेज बिजली के तार गुजर रहे थे, जिससे किसी भी क्षण एक गंभीर दुर्घटना हो सकती थी।
ऐसी घटनाएँ केवल दुर्घटना के खतरे को नहीं दर्शातीं, बल्कि यह भी सवाल उठाती हैं कि किसके संरक्षण में ऐसी डग्गामार बसें चल रही हैं। स्थानीय निवासियों के अनुसार, यह समस्या बहुत पुरानी है और इन बसों की सुरक्षा मानकों की अनदेखी के बावजूद, प्रशासन इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है।
डग्गामार बसों का संचालन और प्रशासन की भूमिका
सूत्रों का कहना है कि इस प्रकार की बसें केवल ड्राइवर और कंडक्टर की जिम्मेदारी नहीं होतीं, बल्कि इस धंधे में थाना स्तर के अधिकारी भी शामिल होते हैं। बताया जाता है कि इन बसों के लिए हर थाना क्षेत्र में “प्रसाद” (रिश्वत) का लेनदेन होता है, जिससे अधिकारियों की मौन सहमति मिल जाती है। ऐसा लगता है कि इस “प्रसाद” की वजह से ही कानून के नियमों को ढकते हुए, ये बसें निर्बाध रूप से सड़कों पर दौड़ती रहती हैं।
इस मिलीभगत का परिणाम यह है कि बिना सुरक्षा उपकरणों, क्षमता से अधिक सवारियां और छत पर यात्रियों को बिठाकर चलने वाली इन बसों को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया जाता। प्रसाद के इस सिलसिले ने यात्रियों की जान को एक व्यापार बना दिया है, जिसमें उनकी सुरक्षा को नजरअंदाज किया जाता है।
यात्री सुरक्षा पर गंभीर सवाल
यात्री सुरक्षा के लिहाज से यह एक गंभीर मामला है। छत पर बैठे यात्रियों के लिए केवल ऊँचाई से गिरने का खतरा ही नहीं, बल्कि बिजली के तारों के नजदीक से गुजरने का भी भय है। यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें एक छोटी सी चूक से किसी भी यात्री की जान जा सकती है। यदि छत पर बैठा कोई यात्री बिजली के तारों से टकराता है, तो इसका खामियाजा केवल यात्री नहीं, बल्कि बस के अंदर बैठे अन्य लोग भी भुगत सकते हैं।
यह प्रश्न उठता है कि आखिर ऐसे हालात के लिए जिम्मेदार कौन है? क्या प्रशासन इस बात का जवाब दे सकता है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए वे क्या कदम उठा रहे हैं? यात्रियों की सुरक्षा के साथ इस तरह का खिलवाड़ यह दर्शाता है कि नियमों का पालन सिर्फ कागजों तक सीमित है।
स्थानीय नागरिकों की नाराजगी और प्रशासन की निष्क्रियता
भौरीगंज मोड़ के आसपास के स्थानीय नागरिकों ने इस समस्या पर कई बार आवाज उठाई है। उन्होंने बताया कि डग्गामार बसें जगह-जगह रुकती हैं, सड़क पर ट्रैफिक को बाधित करती हैं और सवारियां चढ़ाने-उतारने के दौरान दुर्घटनाओं का खतरा पैदा करती हैं। एक स्थानीय दुकानदार ने कहा, “यह बसें रोजाना यहां से गुजरती हैं, और इनकी वजह से ट्रैफिक जाम की स्थिति भी बनती है। कई बार शिकायत करने के बावजूद, अधिकारी बस इसे अनदेखा कर देते हैं।”
स्थानीय निवासियों की यह नाराजगी वाजिब है। कई बार शिकायत करने के बावजूद प्रशासन के निष्क्रिय रहने से लोगों में निराशा बढ़ रही है। लोग यह भी सवाल कर रहे हैं कि क्या प्रशासन को सिर्फ “प्रसाद” के रूप में मिलने वाले अवैध लाभ की चिंता है, न कि जनता की सुरक्षा की?
कई सवाल, पर जवाबदेही नहीं
उत्तर प्रदेश में यातायात नियमों का पालन करवाने की जिम्मेदारी पुलिस और परिवहन विभाग की है, लेकिन यह घटना दर्शाती है कि ये विभाग खुद ही नियमों का उल्लंघन करवा रहे हैं। सवाल यह है कि इस प्रकार की अवैध डग्गामार बसें कैसे संचालित हो रही हैं? क्या सरकार और प्रशासन को नहीं पता कि इन बसों की क्षमता से अधिक सवारी भरकर लोगों की जान खतरे में डाली जा रही है?
इस प्रकार की घटनाएँ एक बड़ी समस्या की ओर इशारा करती हैं कि प्रशासन इन अवैध बसों को अपने निजी लाभ के लिए संरक्षण दे रहा है। परिवहन विभाग और पुलिस की जिम्मेदारी है कि वे यात्री सुरक्षा को प्राथमिकता में रखें, लेकिन भ्रष्टाचार के चलते यह प्राथमिकता केवल शब्दों तक सीमित रह जाती है।
अवैध परिवहन और सरकार के निर्देशों की अनदेखी
उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में यातायात नियमों को सख्ती से लागू करने के निर्देश दिए थे, लेकिन परसपुर जैसे क्षेत्रों में इन निर्देशों की अवहेलना साफ तौर पर देखी जा सकती है। यदि सरकार के निर्देशों को सही मायने में लागू किया जाता, तो ऐसी अवैध बसों पर तुरंत रोक लगाई जाती और यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित होती।
यह सवाल उठता है कि आखिर सरकार के निर्देशों का पालन न करने वाले अधिकारी कौन हैं? क्या उन्हें किसी प्रकार का संरक्षण प्राप्त है? क्या आम जनता की सुरक्षा उनके लिए कोई मायने नहीं रखती?
प्रस्तावित समाधान और सुझाव
इस गंभीर स्थिति में प्रशासन को तुरंत एक्शन लेना चाहिए और डग्गामार बसों के खिलाफ ठोस कदम उठाने चाहिए। इस प्रकार के अवैध परिवहन से निपटने के लिए कुछ सुझाव निम्नलिखित हैं:
1. सख्त निगरानी और नियमित जांच: सभी थाना क्षेत्रों में डग्गामार बसों की पहचान कर उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। इसके लिए नियमित रूप से जांच अभियान चलाया जाना चाहिए।
2. सवारियों के बैठने की सीमा का पालन: बसों में क्षमता से अधिक सवारी न चढ़ाई जाए और छत पर बैठने की अनुमति न हो। इससे दुर्घटनाओं के खतरे को कम किया जा सकता है।
3. स्थानीय शिकायतों का निवारण: स्थानीय निवासियों द्वारा की गई शिकायतों को प्राथमिकता के आधार पर सुना जाए और इन समस्याओं का त्वरित समाधान निकाला जाए।
4. अवैध परिवहन के खिलाफ जनजागरूकता अभियान: नागरिकों को भी अवैध परिवहन से होने वाले खतरों के प्रति जागरूक किया जाए ताकि वे स्वयं भी सुरक्षित यात्रा कर सकें।
5. प्रशासनिक उत्तरदायित्व: अवैध बसों को अनुमति देने वाले प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए और उनकी जिम्मेदारी तय की जाए।
प्रभात भारत विशेष
परसपुर और कर्नलगंज क्षेत्र की यह घटना केवल एक उदाहरण है कि कैसे प्रशासनिक उदासीनता और भ्रष्टाचार के चलते यात्रियों की सुरक्षा को अनदेखा किया जा रहा है। सरकार और प्रशासन को इस प्रकार की घटनाओं पर तुरंत संज्ञान लेते हुए कार्रवाई करनी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसे हादसे न हों। यात्रियों की जान से खिलवाड़ करना किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं है, और इस दिशा में गंभीर कदम उठाना अत्यंत आवश्यक है।