
आज का भारत आर्थिक प्रगति की दौड़ में जितनी तेज़ी से आगे बढ़ रहा है, उतनी ही तेजी से वह ऋण के जाल में फंसता जा रहा है। आधे से ज्यादा आबादी कर्ज की मार झेल रही है—चाहे वह बाइक का हो, घर में रखे माइक्रोवेव का, हाथ में पहनी सोने की अंगूठी का, चमचमाती कार का, या यहां तक कि जिस घर में वह कार खड़ी हो, उसी घर का भी। यही नहीं, जिस मोबाइल या लैपटॉप पर हम यह खबर पढ़ रहे हैं, वह भी संभवतः ऋण पर ही लिया गया हो।
माइक्रोफाइनेंस कंपनियों, बैंकों, और विभिन्न वित्तीय संस्थानों ने ऋण को इतनी आसानी से उपलब्ध करा दिया है कि लोग अपनी सबसे छोटी आवश्यकताओं को भी उधार के पैसों से पूरा कर रहे हैं। पहले कर्ज को एक आखिरी विकल्प के रूप में देखा जाता था, लेकिन आज यह लगभग आदत बन चुका है। अधिकतर लोगों के लिए अब अपनी आय में से बचत करना प्राथमिकता नहीं है, बल्कि बैंक या वित्तीय संस्थान से ऋण लेकर किस्तों में चुकाना एक नया चलन बन गया है।
लोन पर निर्भरता का प्रभाव
कर्ज लेने की इस संस्कृति का असर लोगों की जीवनशैली पर पड़ रहा है। पहले लोग अपनी जरूरतों को प्राथमिकता के हिसाब से खर्च करते थे। वे छोटी से छोटी आवश्यकता के लिए भी लोन नहीं लेते थे। लेकिन आज, युवा पीढ़ी से लेकर बुजुर्ग तक कर्ज में फंसे हुए हैं। जो चीजें कभी विलासिता मानी जाती थीं, वे आज लोन के कारण जरूरतों की तरह खरीदी जा रही हैं।
ऋण की सुविधा को बढ़ावा देने में माइक्रोफाइनेंस कंपनियों और बैंकों का बड़ा हाथ है। कंपनियों द्वारा लोगों को कर्ज लेने की लत ऐसी लगी है कि अब यह जुए और शराब की लत से भी खतरनाक बन गई है। लोग अपने सिबिल स्कोर को अच्छा बनाए रखने के लिए बड़ी ब्याज दरों पर ऋण लेते रहते हैं, ताकि भविष्य में फिर से लोन लेने में उन्हें परेशानी न हो। सिबिल स्कोर को बनाए रखने के लिए लोग समय पर कर्ज की किस्तें चुकाते रहते हैं, भले ही उन्हें इसके लिए अपनी आमदनी का बड़ा हिस्सा खर्च करना पड़े।
उपभोक्ता वस्तुओं के लिए कर्ज का बढ़ता चलन
कभी-कभी यह सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि आखिर लोन पर मोबाइल, बाइक, या टीवी जैसी चीजें लेना क्या वास्तव में आवश्यक है? क्या ऐसी वस्तुओं के लिए कर्ज लेने की प्रथा को बंद नहीं किया जाना चाहिए? मोबाइल फोन, टीवी, माइक्रोवेव, और यहां तक कि घरेलू उपकरणों के लिए भी लोन लेना एक आम चलन बन गया है।
लोगों के इस लोन पर निर्भरता के कारण, कई घरों में वित्तीय अस्थिरता और तनाव की स्थिति पैदा हो गई है। घर के सदस्यों में पैसों को लेकर विवाद होना आम हो गया है, क्योंकि हर महीने की EMI का बोझ परिवार पर भारी पड़ता है। कई बार व्यक्ति अपनी प्राथमिक जरूरतों को भी नजरअंदाज करने लगता है ताकि वह कर्ज की किस्तें चुका सके। यह स्थिति न केवल उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, बल्कि उनके रिश्तों पर भी असर डालती है।
कर्ज की सुलभता और ब्याज दरों का असर
माइक्रोफाइनेंस कंपनियों और अन्य वित्तीय संस्थानों ने ऋण को इतनी आसानी से सुलभ बना दिया है कि लोगों को यह समझ ही नहीं आता कि वे कितनी बड़ी ब्याज दरों पर ऋण ले रहे हैं। पहले लोन पर ब्याज दरें आमतौर पर 12-15% तक होती थीं, लेकिन आज ये दरें 24% से भी ज्यादा हो गई हैं। इतना ही नहीं, कुछ ऋणदाताओं ने तो अनियमित ब्याज दरें वसूलना भी शुरू कर दिया है, जिससे गरीब और मध्यम वर्ग के लोग वित्तीय संकट में घिरते जा रहे हैं।
बाजार की प्रतिस्पर्धा के चलते ऋणदाताओं ने आसान किस्तों की पेशकश की है, जिससे लोगों को लगे कि वे बड़ी रकम का भुगतान छोटे-छोटे किश्तों में आसानी से कर सकते हैं। लेकिन यह छोटी-छोटी किश्तों का बोझ उनके आर्थिक जीवन को मुश्किल बना देता है।
जीवन स्तर पर लोन का प्रभाव
बढ़ते कर्ज का प्रभाव न केवल आर्थिक स्थिति पर, बल्कि व्यक्ति के संपूर्ण जीवन स्तर पर भी पड़ता है। कई लोग तो इस बोझ को झेल नहीं पाते और आत्महत्या जैसे कठोर कदम उठा लेते हैं। वे मानसिक तनाव में रहने लगते हैं और उनका पूरा जीवन केवल कर्ज चुकाने में ही बीत जाता है।
हाल के वर्षों में कर्ज में डूबे लोगों के बीच आत्महत्या की घटनाएं बढ़ गई हैं। युवाओं में बढ़ते कर्ज का दबाव उन्हें मानसिक रोगों की ओर भी धकेल रहा है। अवसाद, चिंता, और अनिद्रा जैसी समस्याएं अब आम हो गई हैं। कर्ज में फंसे लोग अपनी जीवनशैली को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहे हैं। इसके अलावा, उनकी शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं भी बढ़ रही हैं, जो एक संजीदा मुद्दा है।
सरकार की जिम्मेदारी और सुझाव
कर्ज की बढ़ती समस्या को रोकने के लिए सरकार को सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उपभोक्ता वस्तुओं के लिए ऋण केवल आवश्यकताओं के आधार पर दिया जाए। इसके अलावा, उच्च ब्याज दरों पर भी नियंत्रण होना चाहिए ताकि लोग बिना किसी परेशानी के ऋण प्राप्त कर सकें।
सरकार को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि युवाओं को ऋण लेने के खतरों के प्रति जागरूक किया जाए। उन्हें यह समझाया जाए कि किस प्रकार से ऋण लेना उनकी आर्थिक स्थिति को प्रभावित कर सकता है।
वित्तीय शिक्षा का महत्व
लोगों को कर्ज के बारे में शिक्षित करना बहुत जरूरी है। वित्तीय शिक्षा से लोग यह समझ पाएंगे कि किस प्रकार से कर्ज लेना और उसे सही तरीके से चुकाना चाहिए। उन्हें समझना होगा कि केवल आवश्यकताओं के आधार पर ही कर्ज लेना चाहिए, न कि विलासिता की वस्तुओं के लिए।
वित्तीय शिक्षा से लोग अपने खर्चों का सही प्रबंधन करना सीख सकते हैं। इससे वे अपनी आमदनी में से बचत करने की आदत डाल सकते हैं और अपनी जरूरतों के लिए खुद से धन जुटा सकते हैं।
प्रभात भारत विशेष
कर्ज में फंसी भारतीय आबादी के लिए यह एक बड़ा खतरा बन गया है। माइक्रोफाइनेंस कंपनियों और बैंकों ने ऋण को इतनी आसानी से उपलब्ध करा दिया है कि लोग अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के लिए भी कर्ज लेने लगे हैं। यह लत इतनी गंभीर हो चुकी है कि कई लोग अपने कर्ज के बोझ से तंग आकर आत्महत्या तक कर रहे हैं।
अब समय आ गया है कि हम इस कर्ज के दुष्चक्र से बाहर निकलें और अपनी वित्तीय स्थिति को सुधारें। हमें अपने खर्चों का प्रबंधन करना सीखना होगा और केवल आवश्यकताओं के आधार पर ही कर्ज लेना चाहिए।