
नई दिल्ली (विजय प्रताप पांडे) 3 नवंबर। भारतीय राजनीति में हर चुनाव का अपना एक अलग रंग, स्वरूप और विचारधारा होती है। हर बार सत्ताधारी और विपक्षी दल अपने-अपने नारों और विचारों के माध्यम से जनता को रिझाने और उनके बीच अपनी पैठ बनाने का प्रयास करते हैं। हाल के राजनीतिक घटनाक्रमों में उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच दो विरोधाभासी नारों ने चुनावी फिज़ा में हलचल मचा दी है। एक ओर भाजपा का नारा ‘बटेंगे तो कटेंगे’ लोगों को बाँटने और डर की भावना से एकजुट होने का संदेश दे रहा है, तो दूसरी ओर सपा का ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे’ का नारा समाज में एकता, सौहार्द और सकारात्मकता का संदेश दे रहा है। इस लेख में हम इन नारों की पृष्ठभूमि, इनके सामाजिक और राजनीतिक प्रभावों और इनके माध्यम से पार्टी रणनीतियों का विश्लेषण करेंगे।
भाजपा के ‘बटेंगे तो कटेंगे’ नारे की पृष्ठभूमि
भाजपा का नारा ‘बटेंगे तो कटेंगे’ सबसे पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा बांग्लादेश में हिंदू समुदाय पर हो रही हिंसा के संदर्भ में इस्तेमाल किया गया था। भाजपा के अनुसार, यह नारा हिंदू एकता और देश की अखंडता का प्रतीक है, जो समाज को यह संदेश देने का प्रयास करता है कि यदि हम विभाजित हो गए तो हमारी अस्मिता और संस्कृति खतरे में पड़ सकती है। इसके बाद यह नारा महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों और यूपी के उपचुनावों में भी प्रमुखता से इस्तेमाल किया गया। इस नारे के माध्यम से भाजपा ने जनता को यह चेताने का प्रयास किया कि विभिन्न जातीय और धार्मिक समूहों के बीच विभाजन उनके अस्तित्व को खतरे में डाल सकता है।
आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबले ने हाल ही में हिंदू एकता पर जोर देते हुए इस नारे को आगे बढ़ाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इसे समर्थन देते हुए एक रैली में हिंदू एकता की बात की, जिसे लेकर भाजपा का मतदाताओं पर एक खास प्रभाव पड़ा। भाजपा की रणनीति यह है कि देश की बहुसंख्यक आबादी को एकजुट कर उनके अंदर अपनी संस्कृति, धर्म और अस्मिता को लेकर एक जागरूकता पैदा की जाए, जिससे भाजपा के समर्थकों का एक मजबूत आधार बन सके।
सपा का ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे’ नारा और उसकी राजनीतिक रणनीति
भाजपा के इस नारे का जवाब देते हुए समाजवादी पार्टी (सपा) ने ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे’ का नारा दिया, जिसका उद्देश्य समाज के पिछड़े, दलित, और अल्पसंख्यक वर्गों को एकजुट करना है। सपा ने भाजपा के नारे को नकारात्मकता और विभाजनकारी मानसिकता का प्रतीक बताया और इसे भाजपा की विफलताओं और असफलताओं से उपजा हुआ करार दिया। सपा प्रमुख अखिलेश यादव का मानना है कि भाजपा का यह नारा भय की राजनीति का उदाहरण है, जबकि सपा का नारा एकता और भाईचारे का प्रतीक है, जो समाज में सकारात्मक ऊर्जा फैलाने का काम करेगा।
‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे’ नारा विशेष रूप से उन वर्गों पर केंद्रित है जो भाजपा की नीतियों से असंतुष्ट रहे हैं और जिन्हें सपा अपने समर्थकों में शामिल करना चाहती है। सपा की रणनीति यह है कि इन वर्गों को एकजुट कर उन्हें भाजपा के खिलाफ खड़ा किया जाए ताकि चुनावों में अधिकतम सीटें हासिल की जा सकें। इस नारे का उद्देश्य केवल सत्ता हासिल करना नहीं है, बल्कि समाज में विभाजन और नफरत को खत्म कर एक समरसता और सद्भाव की भावना को बढ़ावा देना भी है। सपा के पदाधिकारी सुधीर पंवार के अनुसार, यह नारा जनता को जागरूक करने और उनकी एकजुटता का प्रतीक है।
नकारात्मक और सकारात्मक राजनीति का मुकाबला
भाजपा और सपा के नारों की तुलना करते समय यह स्पष्ट होता है कि भाजपा का नारा विभाजनकारी और नकारात्मक राजनीति का संकेत देता है। ‘बटेंगे तो कटेंगे’ नारा लोगों के बीच एक प्रकार की असुरक्षा और डर को बढ़ावा देता है, जिससे यह संदेश जाता है कि अलग-अलग होकर वे अपनी ताकत खो देंगे। वहीं दूसरी ओर, सपा का नारा ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे’ सकारात्मक और एकजुटता की भावना को प्रोत्साहित करता है। यह नारा समाज में सौहार्द और सामंजस्य स्थापित करने का प्रयास करता है, जिससे समाज में शांति और सहिष्णुता बनी रहे।
अखिलेश यादव का मानना है कि भाजपा का यह नकारात्मक नारा समाज में भय और हिंसा को प्रोत्साहित करता है, जबकि सपा का नारा समाज में विश्वास और भाईचारे का वातावरण बनाता है। सपा प्रमुख ने इस बात को प्रमुखता से रेखांकित किया है कि समाज का विकास और देश की उन्नति तभी संभव है जब लोगों के बीच एकता होगी।
सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव
इन नारों का समाज पर एक महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। भाजपा के नारे का उद्देश्य हिंदुत्व की भावना को उभारना और बहुसंख्यक समुदाय को एकजुट करना है, जबकि सपा का नारा समाज के विभिन्न वर्गों को एक मंच पर लाने का प्रयास है। भाजपा का नारा सांप्रदायिक विभाजन को भड़का सकता है और इससे समाज में तनाव और हिंसा बढ़ सकती है। वहीं सपा का नारा समरसता और समानता की भावना को मजबूत करने का प्रयास करता है, जो समाज में सकारात्मकता और भाईचारे को बढ़ावा देता है।
चुनावी रणनीति में नारों की भूमिका
आगामी लोकसभा चुनावों को देखते हुए दोनों पार्टियां इन नारों का व्यापक प्रचार कर रही हैं। भाजपा के ‘बटेंगे तो कटेंगे’ नारे के माध्यम से पार्टी मतदाताओं के बीच यह संदेश देना चाहती है कि वह उनकी संस्कृति, धर्म और पहचान की रक्षक है, जबकि सपा का ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे’ नारा समाज में एकता और समानता की भावना को बढ़ावा देता है।
इन नारों का उपयोग कर पार्टियां मतदाताओं के मानस को प्रभावित करने का प्रयास कर रही हैं। भाजपा का नारा जहाँ धार्मिक भावनाओं को उभारता है, वहीं सपा का नारा जातीय और सामाजिक एकता की बात करता है।
प्रभात भारत विशेष
इस लेख में हमने भाजपा के ‘बटेंगे तो कटेंगे’ और सपा के ‘जुड़ेंगे तो जीतेंगे’ नारों की तुलना और उनके सामाजिक-राजनीतिक प्रभावों का विश्लेषण किया। यह स्पष्ट होता है कि जहाँ भाजपा का नारा भय और विभाजन का प्रतीक है, वहीं सपा का नारा एकता और भाईचारे का संदेश देता है। जनता को यह समझने की जरूरत है कि नकारात्मक और सकारात्मक राजनीति में अंतर क्या है और उनके समाज पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है।
अंततः, यह जनता पर निर्भर करता है कि वह किस प्रकार के राजनीतिक संदेश को अपनाती है और किसे नकारती है।