गोंडा में एक पुलिस अधिकारी तैनात हैं मैं अक्सर इंटरव्यू के लिए उनके पास आता जाता रहता हूं उनकी हंसी पर बस एक कविता लिखने का मन किया है जो लिखा हूं आप लोग भी पढ़िए और मजा लीजिए यह एक हास्य व्यंग है और उनके बारे में भी दो शब्द है……..
गोंडा के इस अधिकारी का अनोखा रिवाज़,
ना मुस्कुराहट में कोई धरा, ना कोई अंदाज़।
हंसी का वो लहजा बस छुपा रखा,
जिसे देख सका है हर कोई, पर पहचाना न गया।
जैसे मुख्य सचिव के सामने बस उतनी मुस्कान,
जितनी अर्दली की झुकी-सी जान।
बड़ी ही नपी-तुली, मापी-सी हंसी,
जैसे किसी गहरे राज़ की बसी।
बातें जो हों कड़कती धूप की तरह,
जहां चेहरे पे बस संजीदा हलचल बरकरार,
सामने वालों को महसूस कराती हर बार,
जैसे हंसी के वो दीदार से रहें बेख़बर।
जिन आंखों में ठहरी एक सख़्ती, एक फ़ैसला,
उनमें हंसी ढूंढने का कोई करे गुमां न,
जैसे पत्थर की लकीर, यूंही चुपचाप बहती,
उनके लहजे में हर बात सीधी, हर बात सटीक।
कभी जब हों वो, और सामने दफ़्तर का दरबार,
तो चेहरे पर नज़र आती है बारीक़ हंसी की धार।
अर्दली से आगे भी न बढ़े वो मुस्कान,
जैसे कोई रचना, जिसमें न हो एक भी फ़िज़ूल का बयान।
गोंडा का ये अधिकारी, अपनी राह पे अडिग,
हंसी की वो लकीर, जैसे हो किसी फ़लसफे की ख़लिश।
वो अधिकारी, जो खड़ा है हर मोर्चे पे अटल,
उसकी हंसी में है बस एक संजीदा जल।
इस शहर के लोगों ने उसे यूं देखा है,
जहां मुस्कुराहट से न सजा वो चेहरा है,
वो हंसी से परे, है बस कर्तव्य का धनी,
गोंडा के उस अधिकारी की ये कहानी, जो अनकही।

