
गोंडा 29 अक्टूबर। एक सुपर ऑपरेशन गैंग अपने हुनर में माहिर है। पुलिस के किसी ‘स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप’ (एसओजी) की तरह (लेकिन एस ओ जी नहीं) दिखने वाला यह गिरोह अपने ही नियम-कायदों से चलता है, जहां कानून की पकड़ में आने वाले किस्मत वाले होते हैं, और छूटने वाले उनके अपने बंदे। यह गैंग न केवल कानून व्यवस्था बनाए रखता है, बल्कि एक खास तरह की ‘वसूली’ का भी जिम्मा उठाता है। आज आपको एक ऐसी कहानी सुनाते हैं, जिसमें हंसी और गुस्सा दोनों एक साथ आएंगे।
सुपर ऑपरेशन की सटीक योजना – ‘दस को उठाओ, दो को पढ़ाओ, आठ को छोड़ दो’
गोंडा के इस सुपर ऑपरेशन गैंग का एक सीधा फॉर्मूला है – “दस को उठाओ, दो को पढ़ाओ, और आठ को छोड़ दो।” इसका मतलब ये है कि दस लोगों को किसी न किसी बहाने से ले जाओ, दो को जोरदार झाड़-फटकार लगाओ और बाकी आठ को ‘बख्शीश’ लेकर छोड़ दो। यहां ‘बख्शीश’ शब्द का खास महत्व है क्योंकि यही इनकी आय का मुख्य स्रोत है।
सुबह होते ही इनके ‘ऑपरेशन’ की गूंज हर गली-मोहल्ले में फैल जाती है। लोग एक-दूसरे को पूछते हैं, “आज किसे उठा लिया?” और जवाब में हमेशा हंसी-हंसी में ही कहा जाता है, “अरे, आज तो मोहल्ले के भोलू को ले गए, सुनने में आया है कि उसे छोड़ने की रेट 5000 से शुरू हुई है!”
सुपर ऑपरेशन गैंग का ‘सूचना तंत्र’
गोंडा के हर कोने-कोने में इनका जाल बिछा हुआ है। यहां तक कि किसी छोटे-मोटे अपराध की खबर भी इन्हें सबसे पहले मिलती है। मोहल्ले के नुक्कड़ पर कौन आया, किसके पास कौन सी गाड़ी है, कौन किससे मिलने जा रहा है, इन सबकी ‘फाइल’ इनके पास पहले से तैयार होती है।
एक बार तो एक दुकानदार ने बताया, “अरे भैया, ऐसा है कि ये लोग तो हमारे यहां के रोज के हिसाब-किताब से भी ज़्यादा हमारी दिनचर्या जानते हैं। मेरी दुकान पर कितने ग्राहक आते हैं, कौन कितनी बार आता है, सबका हिसाब इनकी ‘मेमोरी’ में होता है।”
साहब का ‘साहबी अंदाज़’ और मास्टरमाइंड का मास्टर प्लान
इस गैंग का मुखिया यानी साहब अपने आप में एक ‘करिश्माई’ व्यक्तित्व है। उसकी जानकारी, उसके ऑपरेशन के तरीके, और उसकी ‘वसूली’ की तकनीकें पूरे जिले में मशहूर हैं। साहब का ‘महीना’ हर जगह चलता है, चाहे वह कोई ठेलेवाला हो, छोटा दुकानदार हो, या फिर बड़ा व्यापारी। अब कोई गलती से भी बिना साहब की जानकारी के काम कर ले, तो समझो उसी दिन उसकी शामत आ जाती है।
जिले के छोटे-बड़े अपराधियों से इनका संपर्क ऐसा है कि अपराध से पहले ही उन्हें सूचना मिल जाती है। इसके पीछे उनकी समझ, चालाकी, और एक विशेष ‘ऑपरेशन स्किल’ है जिसे हर कोई जानता है लेकिन खुलकर कहने से डरता है।
“बिना रिश्वत तो यहां पत्ता भी नहीं हिलता” – हर जगह ‘कनेक्शन’
गोंडा में तो ऐसा लगता है कि बिना सुपर ऑपरेशन गैंग की अनुमति के कोई पत्ता भी नहीं हिलता। हर छोटे से छोटे गैर कानूनी काम के लिए इनकी मर्जी चाहिए। अगर किसी को नया व्यापार शुरू करना है, तो सुपर ऑपरेशन गैंग की ‘मंजूरी’ लेनी पड़ती है। यहां तक कि अब तो भाग कर शादी-ब्याह के मामलों में भी लोग उनसे सलाह लेते हैं।
साहब का एक जाना-पहचाना डायलॉग है, “हम जो कहेंगे वही होगा, और जो नहीं मानता वो अगले दिन ‘ऑपरेशन’ में फंस जाएगा।” इस डायलॉग के बाद हर कोई समझ जाता है कि उन्हें साहब की बात माननी होगी, चाहे जैसे भी हो।
“ऑपरेशन में फंसाने का तड़का – डर और दबदबा बनाए रखने का फॉर्मूला”
इस गैंग का ‘ऑपरेशन’ करने का तरीका भी अनोखा है। पहले तो वे किसी को बिना वजह उठाते हैं, फिर उसे ‘ऑपरेशन’ के नाम पर डराते-धमकाते हैं। बाद में उसे छोड़ने के लिए एक बड़ी रकम वसूली जाती है। उनके इस ‘ऑपरेशन’ का खास मकसद है लोगों में डर बनाए रखना ताकि वे अपनी मनमानी कर सकें।
कई बार ऐसा होता है कि किसी के खिलाफ कोई शिकायत नहीं होती, फिर भी उसे ‘ऑपरेशन’ में फंसा लिया जाता है। यह तरीका उनके दबदबे को बनाए रखने में सहायक होता है। लोग डर के मारे कुछ कह नहीं पाते और उन्हें जो कहना होता है, कह देते हैं।
सुपर ऑपरेशन गैंग की ‘मंथली वसूली’
अब सबसे मजेदार बात यह है कि यह गैंग हर महीने अपने सभी ‘ग्राहकों’ से एक निश्चित रकम वसूलता है। चाहे वह कोई व्यापारी हो, छोटा दुकानदार हो, या फिर कोई आम नागरिक। सभी को एक तय रकम देनी पड़ती है ताकि उनकी ‘सुरक्षा’ बनी रहे।
यह ‘मंथली वसूली’ एक प्रकार की ‘प्रोटेक्शन फीस’ है। जो भी इस फीस को अदा करता है, उसे सुपर ऑपरेशन गैंग की ओर से विशेष ‘सुरक्षा’ मिलती है।
सुपर ऑपरेशन गैंग का भविष्य
यह सुपर ऑपरेशन गैंग अपने अंदाज और तरीकों में माहिर है। गोंडा में इसका दबदबा कायम है, और लोगों के बीच इसकी कहानी सुनने में बहुत मजा आता है। लेकिन जिस तरह से यह गैंग अपने ‘ऑपरेशन’ और ‘कलेक्शन’ का खेल खेल रहा है, उससे यह साफ है कि एक दिन इसका अंत भी निश्चित है।
हास्य व्यंग