
बस्ती 28 अक्टूबर। जिले के भानपुर तहसील के अंतर्गत ग्राम पंचायत आजगैवा जंगल में चकबंदी प्रक्रिया ठप पड़ गई है, और इसके कारण स्थानीय ग्रामीणों में आक्रोश है। उनका कहना है कि भू माफियाओं और जिला प्रशासन की मिलीभगत से उनके गांव की चकबंदी प्रक्रिया को रोका जा रहा है। ग्राम प्रधान मधुबाला चौधरी के नेतृत्व में गांव के लोग अनिश्चितकालीन धरने पर बैठ गए हैं और उनकी मांग है कि जब तक चकबंदी प्रक्रिया शुरू नहीं की जाती, वे धरना जारी रखेंगे।
यह मामला तब सामने आया जब यह पता चला कि गांव के चकबंदी प्रक्रिया के लिए जरूरी बंदोबस्त रिकॉर्ड से महत्वपूर्ण पन्ने गायब हैं। इनमें CH 40, 41, और 45 नंबर के पन्ने शामिल हैं, जिनके बिना चकबंदी प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ सकती। ग्राम प्रधान मधुबाला चौधरी और ग्रामीणों का आरोप है कि जिला प्रशासन और भू माफिया के गठजोड़ के कारण यह रिकॉर्ड गायब हुआ है, ताकि उनकी जमीन पर कब्जा किया जा सके।
चकबंदी ना होने के कारण ग्रामीणों की परेशानियाँ
ग्राम प्रधान ने बताया कि चकबंदी के अभाव में गांव में कोई उचित सड़क, नाली, या सिंचाई के लिए व्यवस्था नहीं है। किसानों के लिए अपने खेतों तक पहुँच पाना मुश्किल हो रहा है और खेतों की सिंचाई में भी दिक्कतें आ रही हैं। ग्राम प्रधान ने जिला प्रशासन से कई बार प्रार्थना पत्र देकर चकबंदी प्रक्रिया शुरू करने का अनुरोध किया, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं हुई।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलकर भी उन्होंने इस मामले को उठाया था, जिसके बाद मुख्यमंत्री ने चकबंदी कराने के निर्देश दिए थे। इसके बावजूद भी जिला प्रशासन ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया और चकबंदी की प्रक्रिया शुरू नहीं की गई। अब स्थिति यह है कि आवश्यक दस्तावेज रिकॉर्ड रूम से गायब हो गए हैं, जिससे चकबंदी विभाग के पास कोई आधार ही नहीं बचा है कि वे इस प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकें।
1400 बीघा सरकारी जमीन पर कब्जा
ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि भू माफियाओं ने 1400 बीघा सरकारी जमीन पर फर्जी पट्टों के माध्यम से कब्जा कर लिया है। यह जमीन सरकारी थी और उसका पट्टा करवाकर भू माफियाओं ने उसे अलग-अलग व्यक्तियों के नाम पर दर्ज करवा लिया। जब यह मामला तत्कालीन जिलाधिकारी बस्ती रोशन जैकब के सामने आया, तो उन्होंने इसकी जांच कराई और इसे फर्जी पाया। उन्होंने तुरंत पट्टों को निरस्त करने का आदेश दिया, लेकिन भू माफियाओं के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई।
ग्राम प्रधान और ग्रामीणों ने प्रशासन पर आरोप लगाया है कि भू माफियाओं की पहुंच सत्ता के गलियारों तक है, जिसके कारण उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती। तहसील के कर्मचारियों पर भी आरोप है कि उन्होंने भू माफियाओं के साथ मिलीभगत करके इन फर्जी पट्टों को मंजूरी दी। ग्राम प्रधान ने कहा कि बार-बार आवेदन देने के बावजूद न तो भू माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई हो रही है और न ही उन तहसील कर्मचारियों पर कोई कदम उठाया जा रहा है, जिन्होंने इस अवैध कार्य में सहयोग दिया।
रिकॉर्ड गायब होने से उठे सवाल
चकबंदी विभाग जब आजगैवा जंगल ग्राम पंचायत का रिकॉर्ड मांगने के लिए रिकॉर्ड रूम गया, तो वहां यह जानकारी मिली कि CH 40, 41, और 45 के पन्ने रिकॉर्ड से गायब हैं। इस घटना ने गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। रिकॉर्ड का गायब होना यह संकेत देता है कि इस मामले में भू माफियाओं की एक बड़ी साजिश है, जिसमें प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।
ग्रामीणों का कहना है कि यह एक सोची-समझी चाल है, जिससे कि चकबंदी प्रक्रिया को रोका जा सके और भू माफियाओं को लाभ मिल सके। रिकॉर्ड का गायब होना प्रशासन की निष्क्रियता और भू माफियाओं के बढ़ते प्रभाव को दिखाता है। ग्रामीणों की मांग है कि रिकॉर्ड तुरंत वापस लाया जाए और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो वे धरना जारी रखेंगे और न्याय के लिए संघर्ष करेंगे।
धरने पर बैठे ग्रामीणों की मांगें
ग्राम प्रधान मधुबाला चौधरी और ग्रामीणों ने प्रशासन से अपनी कुछ मुख्य मांगें रखी हैं:
1. चकबंदी प्रक्रिया तुरंत शुरू की जाए: ग्रामीण चाहते हैं कि उनके गांव की चकबंदी प्रक्रिया शीघ्र शुरू की जाए ताकि किसानों को अपने खेतों तक पहुँचने में सुविधा हो सके और उनके खेती के कामों में कोई रुकावट न आए।
2. रिकॉर्ड की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए: रिकॉर्ड रूम से गायब हुए महत्वपूर्ण दस्तावेजों को वापस लाया जाए ताकि चकबंदी प्रक्रिया को बिना किसी बाधा के अंजाम दिया जा सके।
3. दोषियों पर कार्रवाई हो: उन तहसील कर्मचारियों और भू माफियाओं पर सख्त कार्रवाई की जाए जिन्होंने इस फर्जी पट्टे के काम में सहयोग दिया।
4. भू माफियाओं पर सख्त कदम उठाए जाएं: जिन भू माफियाओं ने 1400 बीघा सरकारी जमीन पर कब्जा किया है, उनके खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई हो और जमीन को वापस सरकारी कब्जे में लिया जाए।
उप जिलाधिकारी की प्रतिक्रिया
जब इस मामले पर उप जिलाधिकारी भानपुर से बात की गई, तो उन्होंने ग्राम प्रधान मधुबाला चौधरी पर आरोप लगाया कि वे अपनी राजनीति चमकाने के लिए धरना करवा रही हैं। उप जिलाधिकारी ने कहा कि ग्राम प्रधान की मुख्य चिंता अपनी प्रधान पद को लेकर है और उन्होंने यह भी कहा कि यदि चकबंदी नहीं हुई, तो उनकी प्रधानी खतरे में पड़ जाएगी। उप जिलाधिकारी के इस बयान से ग्रामीणों में नाराजगी है और उनका मानना है कि प्रशासन उनकी समस्याओं को हल करने के बजाय उन पर राजनीतिक आरोप लगा रहा है।
धरने का माहौल और ग्रामीणों की एकजुटता
ग्राम पंचायत आजगैवा जंगल में पंचायत भवन के सामने धरना स्थल पर ग्रामीणों की भीड़ लगातार बढ़ रही है। महिलाओं, बच्चों, बुजुर्गों समेत हर आयु वर्ग के लोग इस धरने में शामिल हो रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि वे इस धरने से तब तक नहीं हटेंगे जब तक कि उनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं।
गांव के कई लोग अपनी जमीन की रक्षा के लिए इस धरने में शामिल हुए हैं। उनका कहना है कि यह उनकी पुश्तैनी जमीन है और वे इसे भू माफियाओं के कब्जे में जाने नहीं देंगे। इस धरने ने ग्रामीणों में एकजुटता और अपने हक के लिए लड़ने की प्रेरणा पैदा की है।
ग्राम पंचायत आजगैवा जंगल की चकबंदी प्रक्रिया का रुकना और रिकॉर्ड के गायब होने का मामला गंभीर है। ग्रामीणों का आरोप है कि भू माफियाओं की वजह से उनकी जमीन पर खतरा मंडरा रहा है, और प्रशासन उनकी समस्याओं को हल करने में नाकाम रहा है। इस मामले में सरकार और प्रशासन को तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए, ताकि ग्रामीणों का विश्वास बना रहे और वे अपने हक के लिए सुरक्षित महसूस कर सकें।
चकबंदी के अभाव में गांव के किसान कई परेशानियों का सामना कर रहे हैं, जो उनके दैनिक जीवन को प्रभावित कर रहा है। इस पूरे प्रकरण में प्रशासन की निष्क्रियता ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। इस घटना ने यह सिद्ध कर दिया है कि यदि समय पर उचित कदम नहीं उठाए गए, तो ग्रामीणों के हक और जमीन पर भू माफियाओं का कब्जा होता रहेगा।