
गोंडा 26 अक्टूबर। उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख कृषि प्रधान जिला, जहां ज्यादातर किसान अपनी आजीविका के लिए खेती पर निर्भर हैं। खेती की उपज बढ़ाने के लिए सिंचाई का बेहतर साधन होना बेहद जरूरी है, और इसी जरूरत को देखते हुए भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार ने ‘निशुल्क बोरिंग’ योजना की शुरुआत की है, ताकि किसानों को सिंचाई के लिए अतिरिक्त सहायता मिल सके। इस योजना का उद्देश्य किसानों को मुफ्त में बोरिंग की सुविधा प्रदान करना है, जिससे वे अपने खेतों में पानी की व्यवस्था कर सकें और फसल उत्पादन में बढ़ोतरी कर सकें। परंतु यह योजना गोंडा में अपनी वास्तविकता से कोसों दूर दिखाई दे रही है, क्योंकि यहां किसानों को योजना के नाम पर एक बड़ा छलावा ही नजर आ रहा है।
हमने गोंडा के कुछ प्रमुख विकासखंडों का दौरा किया और वहाँ के किसानों से बातचीत की, जिन्होंने निशुल्क बोरिंग योजना के तहत बोरिंग कराई थी। किसानों के अनुभव ने योजना की जमीनी हकीकत और उसमें व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर किया। किसानों का कहना है कि उन्हें इस योजना में ना केवल घटिया गुणवत्ता का सामना करना पड़ रहा है, बल्कि अधिकारियों और सफेदपोशों की मिलीभगत से किसानों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
निशुल्क बोरिंग योजना: नाम निशुल्क, पर कीमत किसानों की मेहनत
कागजों पर यह योजना किसानों को निशुल्क बोरिंग की सुविधा देने का वादा करती है, परंतु वास्तविकता में यह एक छलावे से कम नहीं है। किसानों ने बताया कि योजना में इस्तेमाल होने वाले पाइप की गुणवत्ता बेहद खराब है, जिससे बोरिंग की उम्र एक साल भी पूरी नहीं होती। गोंडा के तरबगंज विकासखंड के एक किसान ने बताया, “हमें बोरिंग के लिए पाइप निशुल्क दिए गए थे, लेकिन वे इतने घटिया थे कि एक साल भी नहीं चले। हमें खुद जाकर दूसरी पाइप खरीदनी पड़ी और तब जाकर हमारी बोरिंग ठीक से काम कर पाई।”
नवाबगंज के एक अन्य किसान ने भी इसी तरह की शिकायत की। उनका कहना था, “हमने जैसे ही सरकारी पाइप लगाकर बोरिंग शुरू की, कुछ महीनों में ही पाइप टूट गई। हमें दुकान से नई पाइप लेकर बोरिंग करानी पड़ी। अब अगर पैसा देकर ही हमें सही पाइप लेनी है, तो फिर यह निशुल्क योजना किस काम की है?”
सरकारी लाभ के नाम पर भ्रष्टाचार: सफेदपोशों और अधिकारियों की मिलीभगत
किसानों की शिकायतों से यह स्पष्ट होता है कि इस योजना में सफेदपोश और अधिकारियों की मिलीभगत है, जो घटिया सामग्री की आपूर्ति कर किसानों का शोषण कर रहे हैं। निशुल्क बोरिंग योजना में मिलने वाले पाइप की सप्लाई के ठेके कुछ खास सफेदपोशों के पास हैं, जो अधिकारियों के साथ मिलकर खराब गुणवत्ता का सामान किसानों तक पहुंचा रहे हैं। इसके चलते किसानों को न सिर्फ परेशानी हो रही है, बल्कि उन्हें आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ रहा है।
एक किसान ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि ठेकेदारों ने अपने ठेके को सुरक्षित रखने के लिए अधिकारियों के साथ साठगांठ कर रखी है। इन सफेदपोशों और अधिकारियों की मिलीभगत का नतीजा यह है कि किसानों को घटिया सामग्री थमा दी जाती है। यदि कोई किसान विरोध करता है, तो उसकी शिकायत को नजरअंदाज कर दिया जाता है, और उसकी समस्याओं का समाधान नहीं किया जाता।
सरकारी योजनाओं का असली मकसद और किसानों के साथ हो रहा खिलवाड़
सरकारी योजनाओं का उद्देश्य होता है कि समाज के कमजोर वर्गों को लाभ पहुंचाया जाए, लेकिन जब इन योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच पाता, तो यह योजना सिर्फ कागजों पर सफल दिखती है। गोंडा के विकासखंडों में किसानों के साथ जो हो रहा है, वह सरकारी लाभ का मजाक बन गया है। किसानों को बोरिंग की जरूरत होती है, लेकिन घटिया गुणवत्ता के कारण उनकी समस्याएं और बढ़ रही हैं।
गोंडा के बेलसर विकासखंड के एक बुजुर्ग किसान जगदीश प्रसाद ने बताया, “हमने सरकार की निशुल्क बोरिंग योजना का लाभ लेने की कोशिश की, लेकिन हमें जो पाइप दिए गए, वे बेकार निकले। हमें खुद से पैसे खर्च करके बेहतर गुणवत्ता की पाइप खरीदनी पड़ी। सरकार अगर सच में हमारी मदद करना चाहती है, तो उसे अच्छे सामान की आपूर्ति सुनिश्चित करनी चाहिए।”
बढ़ते भ्रष्टाचार के कारणों की जांच और समाधान की जरूरत
गोंडा के विकासखंडों में चल रहे इस प्रकार के भ्रष्टाचार को रोकने के लिए सरकार को ठोस कदम उठाने होंगे। ऐसे मामलों की जांच होनी चाहिए और दोषियों को सजा मिलनी चाहिए, ताकि भविष्य में किसानों को इस तरह के छलावे का सामना न करना पड़े। प्रशासनिक स्तर पर पारदर्शिता और निगरानी की व्यवस्था मजबूत करने की आवश्यकता है, ताकि योजनाओं का लाभ वास्तव में जरूरतमंदों तक पहुंचे।
सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जो सामान किसानों को उपलब्ध कराया जा रहा है, वह उच्च गुणवत्ता का हो और उसके मानक का परीक्षण भी किया जाए। इसके अलावा, यदि किसी योजना में भ्रष्टाचार का मामला सामने आता है, तो उस पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
किसानों की समस्याओं का समाधान: क्या है विकल्प?
किसानों को इन समस्याओं से निजात दिलाने के लिए सरकार को कई सुधारात्मक कदम उठाने की आवश्यकता है। सबसे पहले, सरकारी ठेकों की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाई जाए और उच्च गुणवत्ता के सामान की आपूर्ति सुनिश्चित की जाए। इसके अलावा, यदि किसानों को सही सामान नहीं मिलता है, तो उनकी शिकायतों का समय पर निवारण किया जाना चाहिए।
सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बोरिंग योजना में इस्तेमाल होने वाले पाइप की गुणवत्ता का परीक्षण किसी मान्यता प्राप्त एजेंसी द्वारा किया जाए। इसके अलावा, किसानों को समय पर सहायता प्रदान करने के लिए एक हेल्पलाइन शुरू की जानी चाहिए, जहां वे अपनी समस्याओं की शिकायत कर सकें।
प्रभात भारत विशेष
गोंडा में निशुल्क बोरिंग योजना का जो उद्देश्य था, वह आज भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ता दिखाई दे रहा है। सफेदपोशों और अधिकारियों की मिलीभगत के कारण यह योजना किसानों के लिए एक छलावे में बदल गई है। किसानों को सरकारी योजनाओं का वास्तविक लाभ दिलाने के लिए सरकार को इस तरह के भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़े कदम उठाने चाहिए।
किसानों के लिए निशुल्क बोरिंग की सुविधा एक सपने की तरह थी, लेकिन घटिया सामग्री और भ्रष्टाचार ने इसे एक छलावा बना दिया है। जरूरत है कि सरकार इस दिशा में ध्यान दे और किसानों को उचित गुणवत्ता का सामान उपलब्ध कराए। केवल तभी यह योजना सफल हो पाएगी और गोंडा के किसानों को इसका वास्तविक लाभ मिलेगा।