गोंडा, लखीमपुर खीरी, बहराइच, अयोध्या जैसे छोटे-छोटे जनपदों में फैला है मेडिकल माफिया का जाल
लखनऊ 25 अक्टूबर। बद्दी और सोलन जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में दवा माफिया का नियंत्रण दिन-प्रतिदिन मजबूत होता जा रहा है। यहां निर्मित नकली और घटिया गुणवत्ता की दवाएं न केवल हिमाचल प्रदेश बल्कि पूरे भारत में गंभीर स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर रही हैं। केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) और स्टेट ड्रग कंट्रोलर द्वारा किए गए सैंपल परीक्षणों में यह सामने आया है कि इन क्षेत्रों में कई कंपनियां दवाओं के गुणवत्ता मानकों का पालन नहीं कर रही हैं। इनका संचालन बड़े पैमाने पर होता है और ये दवाएं देश के विभिन्न हिस्सों में आसानी से पहुंचाई जाती हैं।
बद्दी और सोलन: नकली दवाओं का केंद्र
बद्दी और सोलन में कई फार्मास्युटिकल कंपनियां दवाओं का निर्माण कर रही हैं। इनमें से कई कंपनियां थर्ड-पार्टी मैन्युफैक्चरिंग के जरिए नकली और घटिया गुणवत्ता की दवाएं बना रही हैं। हिमाचल प्रदेश की भौगोलिक स्थिति, सस्ती जमीन, और कम कर दरों ने इसे दवा निर्माण का एक बड़ा केंद्र बना दिया है।
हाल ही में सीडीएससीओ द्वारा 49 दवाओं के सैंपल जांचे गए, जिनमें से 20 सैंपल फेल पाए गए। इसके अतिरिक्त, स्टेट ड्रग कंट्रोलर द्वारा परीक्षण किए गए 18 सैंपलों में से 3 भी मानकों पर खरे नहीं उतरे। इन आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि यहां दवा माफिया का प्रभाव कितना व्यापक है। इन दवाओं में हार्ट अटैक, ब्लड शुगर और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों की दवाएं भी शामिल हैं। ऐसे में ये नकली और असुरक्षित दवाएं पूरे देश में मरीजों की जान के लिए गंभीर खतरा हैं।

हिमाचल प्रदेश में घटिया गुणवत्ता की दवाओं का निर्माण
हिमाचल प्रदेश के बद्दी, सोलन, और सिरमौर जिलों में दवा कंपनियां मानकों के अनुसार दवाएं नहीं बना रही हैं। यहां से बनी दवाओं में निम्न गुणवत्ता और मानकों से कम सक्रिय तत्व पाए जा रहे हैं, जो मरीजों को उचित लाभ नहीं पहुंचा पाते हैं। सीडीएससीओ और राज्य ड्रग कंट्रोलर के मुताबिक, कुल 23 दवाएं मानकों पर खरी नहीं उतरीं, जिनमें से 12 सोलन, 10 सिरमौर और एक कांगड़ा में निर्मित थीं।
इनमें सिरमौर की पुष्कर फार्मा कंपनी की प्रसव में काम आने वाली ऑक्सीटोसिन, बद्दी की मर्टिन एवं ब्राउन कंपनी की हार्ट अटैक की दवा कैल्शियम ग्लूकोनेट, और पांवटा साहिब की जी लैबोट्री कंपनी में बनी निमोनिया की सेफ्ट्रिएक्सोन जैसी दवाएं शामिल हैं। इन दवाओं का असफल होना गंभीर चिंताओं को जन्म देता है, क्योंकि ये जीवनरक्षक दवाएं हैं।
थर्ड-पार्टी मैन्युफैक्चरिंग: मुनाफा कमाने का जरिया
बद्दी और सोलन में बड़ी संख्या में कंपनियां थर्ड-पार्टी मैन्युफैक्चरिंग करती हैं। इसका मतलब है कि ये कंपनियां अन्य ब्रांड्स या मेडिकल स्टोर्स के लिए दवाएं बनाती हैं, जो बाद में उन ब्रांड्स के नाम से बाजार में बेची जाती हैं। थर्ड-पार्टी मैन्युफैक्चरिंग में लागत कम होती है, जिससे कंपनियों को अधिक मुनाफा होता है।
इस तरह की मैन्युफैक्चरिंग प्रक्रिया में अक्सर गुणवत्ता नियंत्रण की अनदेखी की जाती है। इसका परिणाम यह होता है कि दवाएं मानकों पर खरी नहीं उतरतीं और वे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती हैं। इस प्रणाली के चलते बद्दी और सोलन से बनी नकली दवाएं देशभर के मेडिकल स्टोर्स में पहुंचाई जा रही हैं।
उत्तर प्रदेश में नकली दवाओं का प्रभाव
उत्तर प्रदेश के छोटे शहरों में भी बद्दी और सोलन से नकली दवाएं पहुंच रही हैं। गोंडा, बस्ती, बलरामपुर, अयोध्या, लखीमपुर खीरी, बहराइच, संत कबीर नगर, महाराजगंज, सीतापुर, जालौन, झांसी, सोनभद्र, मिर्जापुर, जौनपुर जैसे कई जनपदों में कई नर्सिंग होम और मेडिकल स्टोर्स हैं जो हिमाचल प्रदेश से सस्ते दामों पर दवाएं खरीदते हैं और उन्हें स्थानीय मरीजों को बेचते हैं। ऐसी दवाओं में अक्सर सक्रिय तत्वों की मात्रा मानकों से कम होती है, जिससे वे प्रभावी नहीं होतीं और मरीज की स्थिति में सुधार नहीं हो पाता।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि मरीज इसी फॉर्मूले की दवा किसी ब्रांडेड कंपनी से खरीदते हैं, तो उनकी लागत भी काम होगी, और गुणवत्ता भी सुनिश्चित होगी। दूसरी ओर, थर्ड-पार्टी मैन्युफैक्चरिंग के जरिए बनाई गई ये दवाएं महंगी होती हैं, क्योंकि इन पर कोई मूल्य का निर्धारण नहीं होता जो मर्जी आई वह एमआरपी में प्रिंट कर दिया और इनमें मानकों की अनदेखी होने की संभावना भी अधिक रहती है।
दवा माफिया के मुनाफे का खेल
बद्दी और सोलन में दवा माफिया नकली दवाओं के कारोबार से अरबों रुपये कमा रहे हैं। इन माफियाओं का नेटवर्क बहुत मजबूत है, जो नकली और घटिया दवाओं की आपूर्ति पूरे देश में करते हैं। इनके पास अत्याधुनिक तकनीक और संसाधन होते हैं, जिससे वे इन दवाओं को असली जैसी दिखने वाली पैकेजिंग में बनाकर बेचते हैं। नकली दवाओं के उत्पादन और वितरण के इस विशाल नेटवर्क के कारण मरीजों का स्वास्थ्य खतरे में पड़ जाता है और उन्हें इलाज का सही लाभ नहीं मिल पाता।
दवा माफिया के खिलाफ कार्रवाई करना कठिन होता है क्योंकि इनके पास उच्च स्तरीय संपर्क और संसाधन होते हैं। ये लोग कानूनी कार्रवाई से बचने के लिए जाली दस्तावेज और कानूनी प्रक्रियाओं में धोखाधड़ी का सहारा लेते हैं। वहीं, स्थानीय अधिकारियों और स्वास्थ्य संस्थानों पर इन माफियाओं का दबाव बना रहता है।
सीडीएससीओ और स्टेट ड्रग कंट्रोलर की भूमिका
केंद्रीय औषध मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) और स्टेट ड्रग कंट्रोलर ने नकली दवाओं पर रोक लगाने की दिशा में कुछ सख्त कदम उठाए हैं। हाल ही में, मानकों पर खरी न उतरने वाली कंपनियों को नोटिस जारी किए गए हैं और उनके लाइसेंस रद्द कर दिए गए हैं। इसके अलावा, दवाओं का स्टॉक वापस मंगवाने का भी आदेश दिया गया है।
इन उपायों से नकली दवाओं के प्रसार को रोकने का प्रयास किया जा रहा है। हालांकि, यह समस्या इतनी व्यापक है कि केवल लाइसेंस रद्द करने और नोटिस जारी करने से इसे पूरी तरह से नियंत्रित करना कठिन है। इस मुद्दे पर सरकार और स्वास्थ्य संस्थानों को मिलकर काम करने की आवश्यकता है, ताकि देशभर में लोगों को सुरक्षित और प्रभावी दवाएं मिल सकें।
समाधान और आगे की राह
बद्दी और सोलन में दवा माफिया के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए आवश्यक है कि सरकार और स्वास्थ्य विभाग इस समस्या पर सख्ती से नजर रखें। इसके लिए कुछ ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, जैसे कि:
1. सख्त निगरानी: सीडीएससीओ और राज्य ड्रग कंट्रोलर को बद्दी और सोलन में निर्मित दवाओं पर नियमित जांच और निगरानी रखनी चाहिए।
2. थर्ड-पार्टी मैन्युफैक्चरिंग पर नियंत्रण: थर्ड-पार्टी मैन्युफैक्चरिंग की प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता है। कंपनियों को गुणवत्ता नियंत्रण के मानकों का पालन करना अनिवार्य बनाना चाहिए।
3. उपभोक्ता जागरूकता: मरीजों को यह समझाने की आवश्यकता है कि ब्रांडेड दवाएं क्यों बेहतर हैं और नकली दवाओं से होने वाले नुकसान के बारे में जागरूकता फैलानी चाहिए।
4. कानूनी कार्रवाई: नकली दवाओं के कारोबार में शामिल लोगों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए। इससे दवा माफिया पर लगाम लगाई जा सकेगी।
5. स्थानीय संस्थानों की भूमिका: गोंडा जैसे छोटे शहरों में नकली दवाओं के प्रसार को रोकने के लिए स्थानीय स्वास्थ्य संस्थानों और मेडिकल स्टोर्स को प्रशिक्षित और जागरूक करना जरूरी है। उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे मानकों के अनुरूप दवाएं ही अपने स्टॉक में रखें।
बद्दी और सोलन में दवा माफिया का नियंत्रण बढ़ता जा रहा है, जिससे देशभर में नकली दवाओं का प्रसार हो रहा है। ये दवाएं मरीजों की जान को खतरे में डाल रही हैं और देश की स्वास्थ्य प्रणाली को कमजोर कर रही हैं। हिमाचल प्रदेश में बनी दवाओं का मानकों पर खरा न उतरना एक गंभीर समस्या है। नकली और घटिया गुणवत्ता वाली दवाओं के इस व्यापार को रोकने के लिए सरकार, स्वास्थ्य विभाग और जनता को मिलकर ठोस कदम उठाने की जरूरत है।

