
लखनऊ विजय प्रताप पांडे 22 अक्टूबर उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है, लेकिन इसके बावजूद ठेकेदारों और सरकारी अधिकारियों के गठजोड़ ने जनप्रतिनिधियों और मुख्यमंत्री की छवि पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस संदर्भ में गोंडा जिले का हाल कुछ ऐसा ही है, जहां सरकारी निर्माण कार्यों में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और बंदरबांट की खबरें सामने आ रही हैं। यह स्थिति न केवल विधायकों और सांसदों की छवि को नुकसान पहुंचा रही है, बल्कि मुख्यमंत्री की ईमानदार छवि पर भी सवाल उठने लगे हैं।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ईमानदारी और सुधार के प्रयास
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जब सत्ता संभाली, तो उन्होंने राज्य में भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई। उन्होंने स्पष्ट निर्देश दिए कि किसी भी जनप्रतिनिधि, चाहे वह सांसद हो या विधायक, को सरकारी ठेकों और टेंडर प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। इसके लिए ई-टेंडरिंग की प्रक्रिया लागू की गई, ताकि पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके और कोई भी ठेकेदार निष्पक्ष तरीके से टेंडर डाल सके। इसका उद्देश्य यह था कि छोटे और योग्य ठेकेदारों को भी अवसर मिलें और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाई जा सके।
मुख्यमंत्री की यह नीति उनकी ईमानदार छवि को दर्शाती है। उनके शासनकाल में भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने के लिए कई बड़े कदम उठाए गए हैं। योगी आदित्यनाथ ने यह सुनिश्चित किया कि राज्य में विकास कार्य बिना किसी राजनीतिक हस्तक्षेप के हो और ठेकों की प्रक्रिया निष्पक्ष रहे।
गोंडा में ठेकेदार और निर्माण एजेंसियों के अधिकारियों का गठजोड़हालांकि, गोंडा जिले में ठेकेदार और अधिकारियों के गठजोड़ ने मुख्यमंत्री के इन निर्देशों को धता बता दिया है। चाहे वह लोक निर्माण विभाग हो, ग्रामीण अभियंत्रण सेवा (आरईएस) हो, या फिर अन्य कोई निर्माण एजेंसी, सभी जगह ठेकेदारों और अधिकारियों की मिलीभगत देखने को मिल रही है। जिले में केवल दो या तीन ठेकेदारों की फर्में ही अधिकांश सरकारी ठेकों को हासिल कर रही हैं, जिससे बाकी ठेकेदारों के लिए कोई अवसर नहीं बचता।
इस स्थिति के चलते नए ठेकेदारों के लिए टेंडर प्रक्रिया में भाग लेना एक मुश्किल काम बन गया है। सूत्रों के अनुसार, जब भी कोई नया ठेकेदार टेंडर डालता है, तो उसे डराया-धमकाया जाता है। यदि वह धमकियों के आगे नहीं झुकता, तो टेंडर रद्द कर दिया जाता है या फिर टेंडर प्रक्रिया में अनियमितता कर उसे बाहर कर दिया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया को ऐसे घुमा दिया जाता है, मानो विधायक या सांसद की मंशा ऐसी हो।
विधायकों और सांसदों की छवि पर आघात
यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि विधायकों और सांसदों को ठेकेदारी में हस्तक्षेप करने की क्या जरूरत है? वे तो जनता के प्रतिनिधि हैं और उनका मुख्य कार्य जनसेवा है। लेकिन अधिकारियों और ठेकेदारों की नापाक चालों ने विधायकों और सांसदों की छवि को धूमिल करने का काम किया है।
अधिकारियों और ठेकेदारों के इस गठजोड़ ने विधायकों को बदनाम करने की योजना बना रखी है, जिससे जनप्रतिनिधियों की ईमानदारी पर सवाल उठने लगे हैं। इसका सबसे बड़ा नुकसान यह हो रहा है कि आम जनता का विश्वास अपने चुने हुए जनप्रतिनिधियों पर से उठता जा रहा है।
निर्माण एजेंसियों की साख पर बट्टा
गोंडा में निर्माण कार्यों की स्थिति बेहद खराब है। अधिकांश सरकारी निर्माण कार्य धीमी गति से चल रहे हैं, और जिन कार्यों का ठेका दिया जा रहा है, उनमें गुणवत्ता की कमी साफ नजर आ रही है। इसका कारण यह है कि ठेकेदार और अधिकारियों की मिलीभगत से गुणवत्तापूर्ण काम की बजाय अधिक मुनाफा कमाने पर ध्यान दिया जा रहा है।
निर्माण एजेंसियों के अधिकारी, जो सरकारी कार्यों की देखरेख के लिए जिम्मेदार होते हैं, वे खुद ठेकेदारों के साथ मिलकर भ्रष्टाचार में लिप्त हो रहे हैं। इससे सरकार की नीतियों पर भी सवाल उठने लगे हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ईमानदार छवि पर भी इस भ्रष्टाचार का असर हो रहा है, क्योंकि उनकी सरकार में भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कदम उठाने के बावजूद ऐसे गठजोड़ सामने आ रहे हैं।
ठेकेदारों का दबदबा: ई-टेंडरिंग की प्रक्रिया पर सवाल
मुख्यमंत्री ने ठेकेदारी में पारदर्शिता लाने के लिए ई-टेंडरिंग की प्रक्रिया शुरू की थी, जिसका उद्देश्य था कि कोई भी ठेकेदार निष्पक्ष रूप से टेंडर डाल सके और कम मूल्य का टेंडर डालने वाले या योग्य ठेकेदार को काम मिल सके। लेकिन गोंडा में यह प्रक्रिया भी ध्वस्त होती नजर आ रही है। ठेकेदारों का एक समूह पूरे जिले में दबदबा बनाए हुए है और अन्य ठेकेदारों को टेंडर प्रक्रिया से बाहर कर दिया जाता है।
ई-टेंडरिंग का मूल उद्देश्य निष्पक्षता और पारदर्शिता था, लेकिन अधिकारियों और ठेकेदारों के इस गठजोड़ ने इसे भी कमजोर कर दिया है। इससे छोटे और नए ठेकेदारों के लिए कोई जगह नहीं बची है और भ्रष्टाचार का बोलबाला बढ़ता जा रहा है।
टेंडर प्रक्रिया में धांधली: डराने-धमकाने की घटनाएं
सूत्रों की माने तो गोंडा में नए ठेकेदारों के लिए काम करना एक चुनौती बन गया है। जब भी कोई नया ठेकेदार टेंडर डालने की कोशिश करता है, तो उसे डराया-धमकाया जाता है। ठेकेदारों का यह दबदबा केवल एक ठेके तक सीमित नहीं है, बल्कि हर बड़े सरकारी निर्माण कार्य में यही स्थिति है।
यदि कोई ठेकेदार इन धमकियों के आगे झुकने से इनकार करता है, तो टेंडर ही रद्द कर दिया जाता है और अधिकारियों द्वारा पूरी प्रक्रिया को इस तरह से घुमा दिया जाता है कि मानो विधायक या सांसद ने हस्तक्षेप किया हो। इस तरह से अधिकारियों ने विधायकों और सांसदों की छवि खराब करने की साजिश रच रखी है, जबकि वास्तव में इन जनप्रतिनिधियों का इससे कोई लेना-देना नहीं होता।
मुख्यमंत्री की ईमानदारी पर उठते सवाल
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ईमानदारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त रुख के बावजूद गोंडा जैसे जिलों में ठेकेदारों और अधिकारियों का गठजोड़ उनकी सरकार की छवि को धूमिल कर रहा है। उनकी नीतियों और सुधारों के बावजूद, जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार थमने का नाम नहीं ले रहा है।
मुख्यमंत्री के निर्देशों के बावजूद, गोंडा में सरकारी निर्माण कार्यों में अनियमितताएं और भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रहे हैं। इससे न केवल उनकी साख पर बट्टा लग रहा है, बल्कि आम जनता में यह संदेश जा रहा है कि सरकार भ्रष्टाचार को रोकने में असमर्थ है।
सुधार की आवश्यकता: भ्रष्टाचार पर सख्त कदम
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार को इस तरह के भ्रष्टाचार पर सख्त कार्रवाई करने की जरूरत है। ठेकेदारों और अधिकारियों के इस गठजोड़ को तोड़ने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। इसके लिए जिला स्तर पर विशेष निगरानी तंत्र की स्थापना करनी होगी, जो टेंडर प्रक्रिया और निर्माण कार्यों की गुणवत्ता की निगरानी कर सके।
इसके अलावा, ठेकेदारों और अधिकारियों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए, ताकि अन्य जिलों में भी यह संदेश जाए कि सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त है और किसी भी कीमत पर इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
प्रभात भारत विशेष
गोंडा जिले में ठेकेदारों और अधिकारियों के गठजोड़ ने न केवल विधायकों और सांसदों की छवि को धूमिल किया है, बल्कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ईमानदार छवि पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। मुख्यमंत्री ने राज्य में ई-टेंडरिंग की प्रक्रिया लागू करके पारदर्शिता और निष्पक्षता लाने का प्रयास किया था, लेकिन जमीनी स्तर पर इसे लागू करने में असफलता ने उनकी नीतियों पर सवाल उठाए हैं।
अधिकारियों और ठेकेदारों के इस गठजोड़ को तोड़ने के लिए सरकार को सख्त कदम उठाने की जरूरत है।