
बहराइच 20 अक्टूबर। जिले के महाराजगंज क्षेत्र में बुलडोजर कार्रवाई के मुद्दे पर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट ने उस बुलडोजर कार्रवाई पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है, जिसके तहत स्थानीय निवासियों के घरों और दुकानों को अतिक्रमण बताते हुए ध्वस्त करने की प्रक्रिया शुरू की गई थी। यह कार्रवाई पीडब्ल्यूडी (लोक निर्माण विभाग) की ओर से शुरू की गई थी, और इसके तहत कई घरों और दुकानों पर नोटिस चस्पा किए गए थे।
हाईकोर्ट ने इस मामले में पीड़ितों को राहत देते हुए उन्हें पीडब्ल्यूडी के नोटिस का जवाब देने के लिए 15 दिनों का समय दिया है। साथ ही, कोर्ट ने पीडब्ल्यूडी से यह भी स्पष्टीकरण मांगा है कि जिस सड़क के किनारे बसे घरों और दुकानों पर अतिक्रमण का आरोप लगाकर नोटिस जारी किया गया है, वह सड़क शहरी है, ग्रामीण है या राष्ट्रीय या राज्य राजमार्ग की श्रेणी में आती है।
कोर्ट की रोक और अगली सुनवाई
हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद फिलहाल बुलडोजर कार्रवाई पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है। अब पीड़ित परिवारों के पास 15 दिन का समय है जिसमें वे पीडब्ल्यूडी के नोटिस का जवाब दे सकते हैं और अपना पक्ष कोर्ट के समक्ष रख सकते हैं। कोर्ट ने यह भी कहा है कि इस मामले की अगली सुनवाई तय समय के बाद की जाएगी, जिसमें पीडब्ल्यूडी को अपना जवाब प्रस्तुत करना होगा।
यह मामला तब सामने आया जब पीडब्ल्यूडी ने बहराइच के महाराजगंज क्षेत्र में 23 घरों और दुकानों को अतिक्रमण बताकर उनके मालिकों को तीन दिन के भीतर अतिक्रमण हटाने का आदेश दिया। नोटिस में स्पष्ट किया गया था कि यदि तीन दिनों के भीतर अतिक्रमण नहीं हटाया गया, तो पीडब्ल्यूडी खुद कार्रवाई करेगा और अतिक्रमण को हटा देगा। इसके लिए बुलडोजर का उपयोग किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर
इस मुद्दे पर एक और बड़ा कदम तब उठाया गया जब पीडब्ल्यूडी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की गई। इस याचिका में पीड़ितों ने बुलडोजर कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग की है। सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया है कि पीडब्ल्यूडी की यह कार्रवाई अवैध और अनुचित है, और इससे स्थानीय निवासियों के मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से निवेदन किया है कि बुलडोजर कार्रवाई पर स्थायी रोक लगाई जाए और स्थानीय निवासियों को न्याय दिया जाए।
इस याचिका में बहराइच हिंसा से जुड़े तीन आरोपियों और उनके रिश्तेदारों ने हिस्सा लिया है। इनमें से एक याचिकाकर्ता मुख्य आरोपी अब्दुल हमीद की बेटी है। उनका दावा है कि यह कार्रवाई उनके खिलाफ राजनीतिक और प्रशासनिक दुश्मनी के तहत की जा रही है, और उनके परिवारों को बिना उचित प्रक्रिया के ही निशाना बनाया जा रहा है।
महाराजगंज के लोगों में डर और तनाव
इस बीच, महाराजगंज के लोगों में पीडब्ल्यूडी की इस कार्रवाई के चलते भय और तनाव का माहौल बन गया है। जैसे ही स्थानीय निवासियों को नोटिस प्राप्त हुआ, उन्होंने अपनी दुकानों और घरों को खाली करना शुरू कर दिया। कई लोगों ने खुद ही अपने घरों को आंशिक रूप से तोड़ना शुरू कर दिया, ताकि यदि बुलडोजर से कार्रवाई की जाए तो उनके मकानों की सामग्री, जैसे ईंट और सरिया, मलबे में न मिल जाए और वे इन सामग्रियों का पुनः उपयोग कर सकें।
कई दुकानदारों और घर मालिकों ने अपनी संपत्तियों से सामान निकाल लिया और अपने घरों को आंशिक रूप से गिरा दिया। उनका मानना है कि बुलडोजर की कार्रवाई में उनके मकानों को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया जाएगा और वे अपना घर और संपत्ति पूरी तरह से खो देंगे। लोगों के बीच यह भी डर है कि अगर कार्रवाई होती है, तो मकानों में लगे महंगे निर्माण सामग्री भी बर्बाद हो जाएंगे।
प्रशासन का पक्ष
लोक निर्माण विभाग के अधिकारियों का कहना है कि यह कार्रवाई पूरी तरह से कानूनी प्रक्रिया के तहत की जा रही है और जिन लोगों को नोटिस जारी किए गए हैं, उनके घर और दुकानें सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करके बनाए गए हैं। पीडब्ल्यूडी का दावा है कि यह सड़क एक मुख्य मार्ग है और इसे चौड़ा करने के लिए अतिक्रमण हटाना आवश्यक है। अधिकारियों ने यह भी कहा कि इस अतिक्रमण के कारण सड़क यातायात में बाधा उत्पन्न हो रही थी और दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ रहा था।
पीडब्ल्यूडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, “हमने तीन दिन का समय दिया है ताकि लोग अपने अतिक्रमण खुद हटा लें। अगर वे ऐसा नहीं करते, तो हम सरकारी आदेशों के तहत कार्रवाई करेंगे और अतिक्रमण को हटाएंगे।”
हालांकि, हाईकोर्ट द्वारा इस कार्रवाई पर रोक के बाद पीडब्ल्यूडी को अपने अगले कदम पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है। कोर्ट ने पीडब्ल्यूडी से यह भी पूछा है कि क्या यह सड़क शहरी क्षेत्र की है या फिर ग्रामीण इलाके की, क्योंकि इसके आधार पर कार्रवाई की वैधता तय की जाएगी।
पीड़ितों की अपील
नोटिस पाने वाले पीड़ित परिवारों का कहना है कि वे वर्षों से इस स्थान पर रह रहे हैं और उनके पास जमीन से जुड़े कानूनी दस्तावेज भी मौजूद हैं। कई परिवारों का दावा है कि उन्होंने अपने घर और दुकानें कानूनी रूप से खरीदी हैं और उनका अतिक्रमण से कोई संबंध नहीं है।
पीड़ितों ने यह भी आरोप लगाया है कि पीडब्ल्यूडी की यह कार्रवाई अचानक और बिना पूर्व सूचना के की जा रही है, जिससे उन्हें अपने मकानों और दुकानों को बचाने का कोई मौका नहीं मिल रहा है। उनका कहना है कि सरकार और प्रशासन को उनकी समस्या सुननी चाहिए और इस मामले का हल निकालना चाहिए।
एक स्थानीय निवासी ने कहा, “हम यहां कई सालों से रह रहे हैं और कभी किसी ने हमें यह नहीं बताया कि हमारा घर अतिक्रमण है। अब अचानक हमें यह नोटिस मिला और कहा जा रहा है कि हमारे मकान को गिरा दिया जाएगा। हम कहां जाएंगे? हमारे बच्चों का भविष्य क्या होगा?”
राजनीतिक प्रतिक्रिया
इस पूरे मामले ने राजनीतिक माहौल को भी गर्म कर दिया है। विपक्षी दलों ने इस मामले में सरकार और प्रशासन की आलोचना की है और इसे गरीब और कमजोर वर्ग के लोगों के खिलाफ अन्याय बताया है। कई विपक्षी नेताओं ने मांग की है कि सरकार इस कार्रवाई को तुरंत रोके और पीड़ितों को न्याय दिलाए।
विपक्षी दलों का आरोप है कि यह कार्रवाई राजनीतिक दुश्मनी के तहत की जा रही है और प्रशासन ने बिना उचित जांच-पड़ताल के ही बुलडोजर चलाने का फैसला किया है। उन्होंने कहा कि गरीबों और निम्न वर्ग के लोगों के घरों को इस तरह से गिराना अत्याचार है और सरकार को इस पर पुनर्विचार करना चाहिए।
निष्कर्ष
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के आदेश से फिलहाल बहराइच के महाराजगंज क्षेत्र में बुलडोजर कार्रवाई पर रोक लग गई है। कोर्ट ने पीड़ितों को राहत देते हुए 15 दिन का समय दिया है ताकि वे पीडब्ल्यूडी के नोटिस का जवाब दे सकें। साथ ही कोर्ट ने पीडब्ल्यूडी से जवाब मांगा है कि सड़क की स्थिति और श्रेणी स्पष्ट की जाए। सुप्रीम कोर्ट में भी इस मामले को लेकर याचिका दायर की गई है, जिससे मामला और जटिल हो गया है।
अब यह देखना बाकी है कि इस मामले का अंतिम फैसला क्या होता है और पीडब्ल्यूडी और पीड़ितों के बीच विवाद कैसे सुलझता है।