
(विजय प्रताप पांडेय) नरेंद्र मोदी जब 2014 में प्रधानमंत्री बने, तो भारत की विदेश नीति के सामने कई चुनौतियाँ थीं। एक तरफ चीन के साथ सीमा पर तनावपूर्ण स्थिति बनी हुई थी, वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान के साथ विवाद और अन्य वैश्विक मुद्दे भी मौजूद थे। लेकिन मोदी ने अपने नेतृत्व में एक नई दिशा दी, जिसमें राष्ट्रीय हितों की रक्षा और वैश्विक मंचों पर भारत की स्थिति को मजबूत करना प्रमुख था।
प्रधानमंत्री मोदी ने भारत को केवल एक क्षेत्रीय शक्ति से उठाकर एक वैश्विक नेता बनाने की दिशा में काम किया। उनका लक्ष्य था कि भारत न केवल एशिया में बल्कि वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाए।
नरेंद्र मोदी की विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश नीति को कई मोर्चों पर सफल माना जा सकता है। उनके कार्यकाल में भारत ने कई महत्वपूर्ण कूटनीतिक निर्णय लिए, जिनमें “नेबरहुड फर्स्ट” और “एक्ट ईस्ट” जैसी नीतियों को प्रमुखता दी गई। आइए उनकी विदेश नीति की कुछ प्रमुख विशेषताओं पर विस्तार से चर्चा करते हैं:
नेबरहुड फर्स्ट (पड़ोसी प्रथम) नीति
- मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही सबसे पहले अपने पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने पर जोर दिया। उनकी “नेबरहुड फर्स्ट” नीति के तहत भारत ने नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान, मालदीव, और अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के साथ कूटनीतिक और आर्थिक संबंधों को प्रगाढ़ किया। इस नीति का मुख्य उद्देश्य इन देशों के साथ व्यापार, सुरक्षा, और सांस्कृतिक सहयोग को बढ़ावा देना था।
एक्ट ईस्ट पॉलिसी
- भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत, मोदी सरकार ने दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने की दिशा में कदम उठाए। इसके तहत भारत ने आसियान देशों के साथ व्यापारिक, सांस्कृतिक, और कूटनीतिक संबंधों को गहरा किया। यह नीति भारत को चीन के खिलाफ एक मजबूत कूटनीतिक मोर्चा देने में सहायक रही है।
मल्टी-एलाइनमेंट और स्ट्रैटेजिक ऑटोनॉमी
- नरेंद्र मोदी की विदेश नीति की एक और महत्वपूर्ण विशेषता यह रही है कि उन्होंने भारत को किसी एक वैश्विक शक्ति के साथ पूरी तरह से संलग्न होने के बजाय, विभिन्न वैश्विक शक्तियों के साथ संतुलित संबंध बनाए रखे। चाहे वह अमेरिका हो, रूस हो, या यूरोपीय यूनियन—भारत ने सभी के साथ अपने हितों को ध्यान में रखते हुए कूटनीतिक संबंध बनाए रखे।
भारत और चीन के बीच तनावपूर्ण संबंध
चीन और भारत के बीच संबंध हमेशा से जटिल रहे हैं। लद्दाख के गलवान घाटी में 2020 में हुई झड़प ने दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा दिया। हालांकि भारत ने हमेशा शांतिपूर्ण समाधान की बात की, लेकिन चीन की आक्रामक नीतियों का सामना करने के लिए मोदी सरकार ने कुछ कठोर कदम उठाए।
गलवान घाटी और सीमा विवाद
- 2020 में गलवान घाटी की घटना भारत-चीन संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। इस झड़प में भारत ने अपने 20 जवान खोए, लेकिन इसके बावजूद भारतीय सेना ने चीन को कड़ा जवाब दिया। मोदी सरकार ने इस घटना के बाद चीन के साथ कई आर्थिक और कूटनीतिक फैसले लिए, जिनमें चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध और चीनी कंपनियों के खिलाफ आर्थिक कदम शामिल थे।
चीन के खिलाफ भारत की रणनीतिक प्रतिक्रिया
- भारत ने चीन के आक्रामक रवैये का जवाब केवल सैन्य रूप से ही नहीं दिया, बल्कि कूटनीतिक और आर्थिक स्तर पर भी कड़े कदम उठाए। “आत्मनिर्भर भारत” योजना के तहत भारत ने चीनी आयात को कम करने और घरेलू उत्पादकों को बढ़ावा देने का काम किया। इसके साथ ही, भारत ने अमेरिका, जापान, और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर “क्वाड” समूह को और मजबूत किया, जो कि चीन के खिलाफ एक कूटनीतिक मोर्चा है।
वैश्विक मंच पर चीन को घेरने की रणनीति
- मोदी सरकार ने चीन के खिलाफ वैश्विक मंचों पर भी अपनी स्थिति को मजबूत किया। चाहे वह संयुक्त राष्ट्र हो, जी-20, या अन्य वैश्विक संस्थान—भारत ने हर जगह चीन के आक्रामक रवैये का कड़ा विरोध किया। इसके अलावा, भारत ने अपने एशियाई पड़ोसियों के साथ भी चीन के प्रभाव को कम करने के लिए गहरे संबंध बनाए।
भारत-कनाडा संबंधों का उतार-चढ़ाव
कनाडा और भारत के संबंध भी नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में चर्चा का विषय रहे हैं। खालिस्तानी मुद्दे और जस्टिन ट्रूडो के भारत विरोधी रुख के कारण दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा है। 2023 में खालिस्तानी नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद ट्रूडो ने भारत पर गंभीर आरोप लगाए, जिससे संबंध और भी खराब हो गए।
खालिस्तानी आंदोलन और भारत-कनाडा संबंधों में तनाव
- कनाडा में सिख समुदाय का एक बड़ा हिस्सा खालिस्तान आंदोलन का समर्थन करता है। ट्रूडो सरकार ने इन तत्वों के खिलाफ कड़े कदम नहीं उठाए, जिससे भारत के साथ उनके संबंध तनावपूर्ण हो गए। नरेंद्र मोदी सरकार ने कनाडा के इस रुख की कड़ी आलोचना की और स्पष्ट किया कि भारत अपनी संप्रभुता और एकता के मुद्दे पर किसी भी तरह का समझौता नहीं करेगा।
ट्रूडो का भारत पर हमला और उसके कारण
- हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद ट्रूडो ने भारत पर गंभीर आरोप लगाए। हालाँकि, उनके आरोपों के पीछे कई आंतरिक राजनीतिक कारण भी हैं। कनाडा में चीन के हस्तक्षेप के कारण ट्रूडो सरकार पर काफी दबाव है, और ऐसा माना जा रहा है कि ट्रूडो भारत के खिलाफ कठोर रुख अपनाकर चीन के मामले से ध्यान हटाने की कोशिश कर रहे हैं।
भारत की प्रतिक्रिया और कूटनीतिक मोर्चा
- भारत ने ट्रूडो के आरोपों का स्पष्ट रूप से खंडन किया और कूटनीतिक तौर पर कनाडा को यह संदेश दिया कि भारत किसी भी तरह के झूठे आरोपों को बर्दाश्त नहीं करेगा। मोदी सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि कनाडा में खालिस्तानी गतिविधियों को बढ़ावा देना दोनों देशों के संबंधों को और खराब कर सकता है।
जस्टिन ट्रूडो का चीन से जुड़ाव और भारत पर हमले का कारण
जस्टिन ट्रूडो के भारत विरोधी रुख के पीछे एक और बड़ा कारण चीन से उनका जुड़ाव है। कनाडा में विदेशी हस्तक्षेप के मामलों में चीन का हाथ है, और ट्रूडो सरकार पर इस मुद्दे पर कड़े कदम नहीं उठाने के आरोप लगे हैं। ऐसे में ट्रूडो भारत पर हमला करके अपने आंतरिक मुद्दों से ध्यान हटाने की कोशिश कर रहे हैं।
चीन का कनाडा में विदेशी हस्तक्षेप
- कनाडा में चीन का हस्तक्षेप एक बड़ी समस्या बन गया है। ट्रूडो सरकार पर आरोप लगे हैं कि उन्होंने इस मुद्दे पर कड़े कदम नहीं उठाए, और चीन को कनाडा की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप करने दिया। इसके बाद ट्रूडो ने भारत को भी इसी श्रेणी में रखने की कोशिश की, लेकिन भारत ने इसके खिलाफ कड़ा रुख अपनाया।
भारत और चीन को समान स्तर पर रखने की कोशिश
- ट्रूडो ने चीन और भारत को कनाडा के खिलाफ समान स्तर पर रखने की कोशिश की, जबकि वास्तविकता में दोनों देशों की स्थिति बिल्कुल अलग है। चीन ने कनाडा की आंतरिक राजनीति में हस्तक्षेप किया, जबकि भारत पर लगाए गए आरोप केवल राजनीतिक कारणों से प्रेरित थे। ट्रूडो की यह रणनीति न केवल विफल रही, बल्कि इससे कनाडा की वैश्विक छवि भी खराब हुई।
अमेरिका का दृष्टिकोण और भारत की बदलती प्राथमिकताएं
अमेरिका और भारत के बीच संबंध नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में काफी मजबूत हुए हैं। दोनों देशों के बीच रक्षा, व्यापार, और कूटनीतिक मोर्चों पर गहरे संबंध बने हैं। अमेरिका ने खालिस्तानी मुद्दे पर भारत के साथ सहयोग किया, जबकि कनाडा को चीन के हस्तक्षेप के मामले में अकेला छोड़ दिया।
खालिस्तान मुद्दे पर भारत का समर्थन
- खालिस्तानी मुद्दे पर भारत को अमेरिकी सरकार का समर्थन भी प्राप्त हुआ, क्योंकि अमेरिका ने भारत के साथ साझा किए गए खुफिया जानकारी और निष्कर्षों के आधार पर जांच में सहयोग किया। इससे भारत के खिलाफ झूठे आरोपों को कमजोर करने में मदद मिली। मोदी सरकार ने अमेरिका को यह भरोसा दिलाने में सफलता पाई है कि भारत क्षेत्रीय स्थिरता के लिए एक महत्वपूर्ण साझेदार है, और इसी कारण से अमेरिका ने कनाडा के खालिस्तानी समर्थक गुटों के खिलाफ ठोस कार्रवाई की।
अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी
- भारत और अमेरिका के बीच हाल के वर्षों में रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में गहरा सहयोग हुआ है। खासकर, दोनों देशों ने इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए मिलकर काम किया। “क्वाड” समूह के माध्यम से अमेरिका, भारत, जापान, और ऑस्ट्रेलिया ने चीन के आक्रामक रुख का सामना करने के लिए एक कूटनीतिक और सैन्य मोर्चा तैयार किया है।अमेरिका ने भारत को सामरिक और आर्थिक स्तर पर सहयोग देने का भी वचन दिया है। इसके अलावा, अमेरिकी कंपनियों ने भी भारत में बड़े पैमाने पर निवेश किया है, जिससे दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंध भी प्रगाढ़ हुए हैं।
चीन और भारत की टकराहट में अमेरिकी हस्तक्षेप
गलवान घाटी की घटना के बाद, अमेरिका ने भारत का समर्थन किया और चीन की आलोचना की। चीन के विस्तारवादी रवैये के खिलाफ अमेरिका ने खुलकर भारत का पक्ष लिया, जिससे भारत को वैश्विक मंचों पर ताकत मिली। अमेरिका ने चीन के खिलाफ भारत के रुख का समर्थन करते हुए क्वाड जैसे मंचों पर भारत की भूमिका को और मजबूत किया। भारत और अमेरिका के बीच सहयोग ने चीन को घेरने के लिए एक व्यापक रणनीति बनाई है। अमेरिका ने दक्षिण एशिया में भारत के रणनीतिक महत्व को स्वीकार किया है, और इसी कारण से दोनों देशों के बीच सुरक्षा और सैन्य क्षेत्र में भी मजबूत साझेदारी बनी है।
जस्टिन ट्रूडो की समस्याएँ और कनाडा की राजनीतिक अस्थिरता
जस्टिन ट्रूडो के भारत विरोधी रुख के पीछे कई आंतरिक राजनीतिक कारण हैं। उनके नेतृत्व में कनाडा की आंतरिक राजनीति में अस्थिरता बनी हुई है। ट्रूडो को चीन के हस्तक्षेप के मामलों में आलोचना का सामना करना पड़ा है, और उनके खिलाफ भ्रष्टाचार और प्रशासनिक विफलताओं के आरोप भी लगे हैं। इन चुनौतियों के चलते ट्रूडो ने भारत के खिलाफ आक्रामक रुख अपनाया ताकि वह घरेलू मुद्दों से ध्यान भटका सकें।
चीन के हस्तक्षेप का मुद्दा
- ट्रूडो की सरकार पर आरोप है कि उन्होंने चीन के हस्तक्षेप के मामलों पर कड़ा रुख नहीं अपनाया। कनाडा की खुफिया रिपोर्टों में स्पष्ट रूप से चीन के विदेशी हस्तक्षेप की बात कही गई, लेकिन ट्रूडो सरकार ने इन मुद्दों को नजरअंदाज किया। कनाडा में चीन के हस्तक्षेप के मुद्दे ने वहां की राजनीति को अस्थिर कर दिया, और ट्रूडो पर दबाव बढ़ा।
भारत पर हमले का राजनीतिक लाभ
- अपने राजनीतिक दबाव को कम करने के लिए ट्रूडो ने भारत पर हमले का रास्ता अपनाया। खालिस्तान समर्थकों के बीच उनके राजनीतिक सहयोगी जगमीत सिंह का समर्थन हासिल करने के लिए ट्रूडो ने खालिस्तानी मुद्दे को हवा दी। उन्होंने भारत के खिलाफ झूठे आरोप लगाए ताकि उनके राजनीतिक गठजोड़ मजबूत बने रहें और चुनावों में उन्हें फायदा हो।
कनाडा में खालिस्तानी आंदोलन का उभार
- कनाडा में खालिस्तानी आंदोलन का समर्थन जस्टिन ट्रूडो के राजनीतिक सहयोगियों द्वारा किया जाता रहा है। इस आंदोलन को लेकर भारत ने बार-बार अपनी चिंताएँ जताई हैं, लेकिन ट्रूडो ने इसके खिलाफ कड़े कदम उठाने से बचा। भारत-कनाडा संबंधों में यह एक बड़ा विवादास्पद मुद्दा बन गया है, जिससे दोनों देशों के बीच तनाव और भी बढ़ गया।
नरेंद्र मोदी की कूटनीति और चीन-कनाडा पर भारत की जीत
नरेंद्र मोदी की कूटनीति का मुख्य उद्देश्य हमेशा से भारत के राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा करना और वैश्विक मंच पर भारत की स्थिति को मजबूत बनाना रहा है। उनकी कूटनीति ने चीन और कनाडा के खिलाफ भारत को मजबूती प्रदान की है, और दोनों देशों के खिलाफ किए गए आरोपों का सामना भारत ने कूटनीतिक सफलता के साथ किया है।
चीन के खिलाफ भारत की कूटनीति
- चीन के आक्रामक रवैये के खिलाफ भारत ने हमेशा कड़ा रुख अपनाया है। नरेंद्र मोदी की सरकार ने गलवान घाटी की घटना के बाद चीन के खिलाफ कड़े कदम उठाए। भारत ने न केवल सैन्य मोर्चे पर चीन को चुनौती दी, बल्कि आर्थिक और कूटनीतिक मोर्चे पर भी चीन के प्रभाव को सीमित किया।
- मोदी सरकार ने क्वाड जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों का उपयोग करके चीन के खिलाफ एक व्यापक रणनीति तैयार की। अमेरिका, जापान, और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर भारत ने चीन के खिलाफ सामरिक साझेदारी को मजबूत किया। इसके अलावा, भारत ने अपने घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देकर चीनी आयात पर निर्भरता को कम किया और आत्मनिर्भर भारत का संकल्प लिया।
कनाडा के खिलाफ भारत की प्रतिक्रिया
- कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो द्वारा भारत पर लगाए गए झूठे आरोपों का भारत ने कड़ा विरोध किया। नरेंद्र मोदी की सरकार ने ट्रूडो के आरोपों का खंडन करते हुए स्पष्ट किया कि कनाडा के आरोप पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित हैं और इनमें कोई साक्ष्य नहीं है। भारत ने कनाडा को यह स्पष्ट संदेश दिया कि खालिस्तानी गतिविधियों को बढ़ावा देना दोनों देशों के संबंधों को नुकसान पहुँचा सकता है। भारत ने कनाडा के इस रुख के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी स्थिति स्पष्ट की और वैश्विक समुदाय को ट्रूडो के आरोपों के पीछे के राजनीतिक एजेंडे के बारे में जागरूक किया। इसके अलावा, भारत ने अमेरिका जैसे देशों के साथ मिलकर खालिस्तानी गतिविधियों के खिलाफ भी कड़ा रुख अपनाया।
भारत की वैश्विक कूटनीतिक सफलता
नरेंद्र मोदी की कूटनीति ने भारत को वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण भूमिका में ला खड़ा किया है। उनकी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति को प्राथमिकता दी है, जिससे भारत ने चीन और कनाडा जैसे देशों के खिलाफ कूटनीतिक सफलताएँ प्राप्त की हैं। मोदी की कूटनीति का सबसे बड़ा परिणाम यह है कि भारत अब एक मजबूत वैश्विक शक्ति के रूप में उभर चुका है, जो अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।
नरेंद्र मोदी की विदेश नीति की सफलता और भविष्य की चुनौतियाँ
नरेंद्र मोदी की विदेश नीति ने भारत को एक नई दिशा दी है। उन्होंने चीन और कनाडा जैसे देशों के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए भारत की संप्रभुता की रक्षा की है। उनकी कूटनीति का मुख्य उद्देश्य भारत के राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा और वैश्विक मंचों पर भारत की स्थिति को मजबूत करना रहा है।
हालाँकि, भविष्य में भी भारत के सामने कई चुनौतियाँ होंगी, जिनसे निपटने के लिए कूटनीतिक और सामरिक रणनीतियों की आवश्यकता होगी। लेकिन यह स्पष्ट है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत अब पहले से कहीं अधिक सशक्त है और वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए पूरी तरह से तैयार है।
भारत-कनाडा और भारत-चीन संबंधों में उतार-चढ़ाव जारी रह सकते हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी की दूरदर्शी और साहसिक विदेश नीति ने यह साबित कर दिया है कि भारत अब किसी भी बाहरी दबाव के सामने झुकने वाला नहीं है। मोदी सरकार की कूटनीति का यही मुख्य संदेश है—भारत की संप्रभुता और राष्ट्रीय हित सर्वोपरि हैं, और इसके लिए भारत हर मोर्चे पर तैयार है।