
अत्यावश्यक दवाओं की कीमतों में 50% की वृद्धि: सरकार का निर्णय और इसके परिणाम
नई दिल्ली 15 अक्टूबर। अस्थमा, ग्लूकोमा, थैलेसीमिया, तपेदिक और मानसिक स्वास्थ्य विकारों जैसी गंभीर बीमारियों के इलाज में उपयोग की जाने वाली कई आवश्यक दवाओं की कीमतों में 50% तक की वृद्धि की गई है। यह कदम राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) द्वारा 8 अक्टूबर, 2024 को व्यापक विचार-विमर्श के बाद उठाया गया, जिसमें डीपीसीओ-2013 के तहत असाधारण शक्तियों का प्रयोग किया गया। इस निर्णय के कारण दवा निर्माताओं की कठिनाइयों और बढ़ती उत्पादन लागत को जिम्मेदार ठहराया गया है।
सरकार ने यह सुनिश्चित किया कि यह निर्णय व्यापक सार्वजनिक हित में लिया गया है, ताकि दवा उत्पादन की निरंतरता बनी रहे और आवश्यक दवाएं बाजार से गायब न हों। कई दवा कंपनियों ने सक्रिय औषधि सामग्री (एपीआई) की कीमतों में वृद्धि, उत्पादन लागत में वृद्धि, और अन्य आर्थिक दबावों के चलते कुछ दवाओं के उत्पादन को अव्यवहारिक बताते हुए एनपीपीए को आवेदन प्रस्तुत किए थे।
मूल्य वृद्धि के कारण
सरकार द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि एनपीपीए को दवा निर्माताओं से दवाओं की कीमतों में वृद्धि के लिए आवेदन प्राप्त हो रहे थे, जिनमें विभिन्न आर्थिक चुनौतियों का हवाला दिया गया। इन चुनौतियों के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
1. सक्रिय औषधि सामग्री (एपीआई) की बढ़ती कीमतें: अधिकांश दवाओं के निर्माण में उपयोग होने वाली एपीआई की कीमत में काफी वृद्धि हो चुकी है। एपीआई की आपूर्ति में वैश्विक स्तर पर आने वाले व्यवधानों और मांग में वृद्धि के कारण इनकी लागत में बढ़ोतरी हुई है।
2. उत्पादन लागत में वृद्धि: श्रम लागत, ऊर्जा लागत और उत्पादन में उपयोग होने वाले उपकरणों की बढ़ती कीमतों के कारण दवाओं के निर्माण की लागत में वृद्धि हो रही है। इसके चलते दवा निर्माण कंपनियों के लिए इन दवाओं को निर्धारित कीमतों पर बेचना अब मुश्किल हो गया है।
3. मुद्रा विनिमय दरों में उतार-चढ़ाव: रुपये की गिरावट और वैश्विक मुद्रा बाजार में अनिश्चितताओं के कारण भी उत्पादन लागत में वृद्धि हुई है। आयातित सामग्री पर निर्भरता बढ़ने से कंपनियों के लिए उत्पादन की कीमतों में वृद्धि अनिवार्य हो गई है।
4. उत्पादन अव्यवहारिक होना: कुछ दवा कंपनियों ने यह भी आवेदन किया था कि उत्पादन की बढ़ती लागत के चलते उन्हें कुछ फॉर्मूलेशन का निर्माण बंद करना पड़ सकता है। यदि इन दवाओं की कीमतें नहीं बढ़ाई जातीं, तो इनका निर्माण जारी रखना मुश्किल होता।
जिन दवाओं की कीमतें बढ़ाई गईं
एनपीपीए द्वारा जिन दवाओं की कीमतों में वृद्धि की गई है, वे अधिकांशतः गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए आवश्यक हैं और सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। जिन 8 दवाओं के 11 अनुसूचित फॉर्मूलेशन की कीमतें बढ़ाई गई हैं-
1. बेन्जाइल पेनिसिलिन 10 लाख आईयू इंजेक्शन: यह एंटीबायोटिक कई प्रकार के बैक्टीरियल संक्रमणों के इलाज में उपयोग की जाती है। इसका उपयोग गंभीर संक्रमणों के उपचार में किया जाता है, जिसमें पेनिसिलिन का प्रमुख योगदान होता है।
2. एट्रोपिन इंजेक्शन (0.6mg/ml): यह इंजेक्शन विभिन्न चिकित्सीय स्थितियों जैसे विषाक्तता के उपचार, हृदय गति को नियंत्रित करने और शल्य चिकित्सा के दौरान मस्करिनिक प्रभावों को कम करने के लिए उपयोग किया जाता है।
3. स्ट्रेप्टोमाइसिन इंजेक्शन (750mg और 1000mg): तपेदिक (टीबी) के इलाज के लिए यह एंटीबायोटिक बेहद महत्वपूर्ण है। स्ट्रेप्टोमाइसिन टीबी के खिलाफ उपयोग की जाने वाली प्रभावशाली दवाओं में से एक है।
4. साल्बुटामोल टैबलेट (2mg और 4mg) और रेस्पिरेटर सोल्यूशन (5mg/ml): अस्थमा और अन्य श्वसन संबंधी बीमारियों में इसका व्यापक उपयोग किया जाता है। साल्बुटामोल श्वसन तंत्र को खोलने में मदद करता है और सांस लेने की क्षमता में सुधार करता है।
5. पिलोकार्पाइन 2% ड्रॉप्स: ग्लूकोमा जैसी नेत्र रोगों के उपचार में पिलोकार्पाइन का उपयोग किया जाता है। यह आंखों के दबाव को नियंत्रित करने और दृष्टि को सुरक्षित रखने में सहायक है।
6. सेफैड्रोक्सिल 500mg टैबलेट: यह एंटीबायोटिक कई प्रकार के बैक्टीरियल संक्रमणों के इलाज में प्रयोग की जाती है। इसका उपयोग त्वचा, मूत्र मार्ग, और श्वसन संक्रमणों के लिए किया जाता है।
7. डेसफेरियोक्सामाइन इंजेक्शन (500mg): यह दवा थैलेसीमिया और अन्य रक्त विकारों के उपचार में महत्वपूर्ण है। यह शरीर से अतिरिक्त आयरन को निकालने में मदद करती है।
8. लिथियम 300mg टैबलेट: मानसिक स्वास्थ्य विकारों, विशेष रूप से बाइपोलर डिसऑर्डर, के उपचार में लिथियम का उपयोग किया जाता है। यह मस्तिष्क के रासायनिक असंतुलन को ठीक करने में सहायक है।
मरीजों पर प्रभाव
इस मूल्य वृद्धि से मरीजों पर संभावित प्रभाव एक प्रमुख चिंता का विषय है, विशेष रूप से उन मरीजों के लिए जो नियमित रूप से इन दवाओं पर निर्भर हैं। हालांकि, सरकारी अधिकारियों ने कहा है कि इस मूल्य वृद्धि से मरीजों पर बहुत अधिक प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है।
1. सरकारी अस्पतालों में मुफ्त दवाएं: यह बात सुनिश्चित की गई है कि अधिकांश आवश्यक दवाएं सरकारी अस्पतालों में और सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों के तहत मुफ्त में उपलब्ध कराई जाएंगी। इससे गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के मरीजों को राहत मिलेगी।
2. निजी क्षेत्र में प्रभाव: हालांकि सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं में इलाज कराने वाले मरीज इस मूल्य वृद्धि से बच सकते हैं, लेकिन निजी अस्पतालों और फार्मेसियों से दवा खरीदने वाले मरीजों को इन दवाओं की कीमतों में बढ़ोतरी का सामना करना पड़ सकता है। खासकर अस्थमा, तपेदिक और मानसिक स्वास्थ्य विकारों से ग्रसित मरीजों के लिए यह अतिरिक्त वित्तीय बोझ साबित हो सकता है, क्योंकि इन बीमारियों का इलाज लंबी अवधि तक चलता है।
दवा उद्योग पर प्रभाव
दवा उद्योग के दृष्टिकोण से, यह मूल्य वृद्धि राहत के रूप में देखी जा रही है। कंपनियों के लिए इन दवाओं का उत्पादन अब अधिक लाभदायक हो सकता है, जो कि बढ़ती उत्पादन लागत के कारण अव्यवहारिक होता जा रहा था।
1. उत्पादन की निरंतरता: दवा निर्माताओं के लिए यह वृद्धि आवश्यक दवाओं के उत्पादन को जारी रखने के लिए प्रोत्साहन के रूप में काम करेगी। इससे दवाओं की आपूर्ति में निरंतरता बनी रहेगी और बाजार में उनकी उपलब्धता सुनिश्चित होगी।
2. नए उत्पादों का विकास: दवा कंपनियां इस अतिरिक्त राजस्व का उपयोग नए उत्पादों के विकास, अनुसंधान एवं विकास में निवेश और उत्पादन क्षमताओं को बढ़ाने के लिए कर सकती हैं।
सरकार की भूमिका
सरकार ने इस निर्णय को संतुलित दृष्टिकोण के रूप में प्रस्तुत किया है, जिसमें दवा उद्योग और मरीजों दोनों के हितों को ध्यान में रखा गया है। एक ओर, जहां कंपनियों को बढ़ती लागतों से निपटने के लिए समर्थन मिल रहा है, वहीं दूसरी ओर, मरीजों के लिए आवश्यक दवाओं की सुलभता बनाए रखने के लिए सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं के तहत मुफ्त दवाएं उपलब्ध कराई जा रही हैं।
सरकार ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह निर्णय केवल उन्हीं मामलों में लिया गया है जहां दवाओं का उत्पादन आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं रह गया था। इसका उद्देश्य दवा उद्योग को स्थिरता प्रदान करना और आवश्यक दवाओं की निरंतर उपलब्धता सुनिश्चित करना है।
एनपीपीए की पूर्व मूल्य वृद्धि
यह पहली बार नहीं है जब एनपीपीए ने आवश्यक दवाओं की कीमतों में वृद्धि की है। 2019 और 2021 में भी एनपीपीए ने क्रमशः 21 और 9 अनुसूचित दवाओं की कीमतों में 50% की वृद्धि की थी। यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया था कि इन दवाओं की आपूर्ति में कोई कमी न हो और दवा कंपनियों के लिए उनका उत्पादन लाभकारी बना रहे।
आवश्यक दवाओं की कीमतों में 50% की वृद्धि का यह निर्णय एक संतुलित और आवश्यक कदम प्रतीत होता है, जो दवा उद्योग और मरीजों के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास करता है। जहां एक ओर दवा कंपनियों को राहत मिलेगी और वे आवश्यक दवाओं का उत्पादन जारी रख सकेंगी।