
हरियाणा की पहचान: ‘जाटलैंड’ और ’36 बिरादरी’ की राजनीतिक और सामाजिक संरचना
नई दिल्ली 13 अक्टूबर। हरियाणा का नाम सुनते ही अक्सर एक ही छवि उभरती है “जाट समुदाय से भरे एक राज्य की“। यह पहचान इतनी गहराई तक बैठ चुकी है कि देश के बाकी हिस्सों में हरियाणा को ‘जाटलैंड’ के रूप में देखा जाता है। लेकिन यह केवल एक पक्षीय नजरिया है, क्योंकि हरियाणवी समाज केवल जाटों तक सीमित नहीं है। हरियाणवी समाज ’36 बिरादरी’ के तहत परिभाषित होता है, जो इसकी असली पहचान को दर्शाता है। ’36 बिरादरी’ शब्द आमतौर पर चुनावी मौसम में राजनीतिक दलों द्वारा जातिगत गणित और समीकरण को साधने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन इसका सांस्कृतिक महत्व इससे कहीं अधिक गहरा है।
हाल ही में संपन्न हरियाणा विधानसभा चुनाव भी इस सामाजिक ढांचे के चलते राजनीतिक चर्चाओं का केंद्र बने। सत्ता विरोधी लहर के बावजूद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की शानदार जीत और गैर-जाट गठबंधन ने राजनीतिक विश्लेषकों को हरियाणा के सामाजिक ताने-बाने को नए सिरे से समझने के लिए प्रेरित किया। इस जीत ने यह भी दिखाया कि हरियाणा के सामुदायिक गतिशीलता और ’36 बिरादरी’ की धारणा को राजनीतिक दल कितनी कुशलता से साधते हैं।
हरियाणा ही नहीं, बल्कि पड़ोसी राज्यों पंजाब और राजस्थान में भी ’36 बिरादरी’ की अवधारणा प्रचलित है। हरियाणा के संदर्भ में यह अवधारणा उन विभिन्न जातियों और समुदायों का प्रतिनिधित्व करती है जो इस राज्य में ऐतिहासिक रूप से निवास करते आए हैं। यह समाज की जटिल संरचना का प्रतीक है, जिसमें जाटों के साथ ब्राह्मण, बनिया, गुर्जर, अहीर, सैनी, राजपूत और अन्य पिछड़ी जातियां शामिल हैं।
’36 बिरादरी’ की संरचना: एक विविध सामाजिक ढांचा
हरियाणा के समाज में सैकड़ों जातियाँ और उपजातियाँ हैं, लेकिन ’36 बिरादरी’ की अवधारणा इन समुदायों को एक व्यापक सामाजिक ढांचे में पिरोने का काम करती है। दिलचस्प बात यह है कि इस शब्द के तहत शामिल जातियों और समुदायों की कोई निश्चित सूची नहीं है। ’36 बिरादरी’ एक ऐसा गोंद है जो हरियाणा के समाज को जातिगत विभाजन से अलग एकता में बांधता है। यह ब्राह्मण, जाट, बनिया, गुर्जर, सैनी, राजपूत, सुनार, पंजाबी और अन्य समुदायों को एक छत्र के नीचे लाने का प्रतीक है।
हालांकि, हरियाणा की राजनीति में अक्सर ’36 बिरादरी’ की तुलना ’35 बिरादरी’ से की जाती है, विशेष रूप से चुनावी संदर्भों में। ’35 बिरादरी’ का उल्लेख उस समय होता है जब जाट समुदाय को छोड़कर अन्य सभी जातियों और समुदायों को एकसाथ जोड़ने की बात होती है। इसका मुख्य उद्देश्य जाटों के वर्चस्व को संतुलित करना होता है। भाजपा ने हाल ही में संपन्न राज्य चुनावों में इसी रणनीति का कुशलतापूर्वक उपयोग किया। पार्टी ने जाटों को छोड़कर बाकी समुदायों का समर्थन हासिल किया, जिसे ’35 बिरादरी’ के गठबंधन के रूप में देखा गया।
यह रणनीति पूरी तरह से नई नहीं थी। 1979 में भजन लाल के मुख्यमंत्री बनने के समय से ही हरियाणा की राजनीति में जाट बनाम अन्य का विभाजन शुरू हो गया था। भाजपा ने इस विभाजन को एक नई दिशा दी और सत्ता विरोधी लहर का सफलतापूर्वक मुकाबला किया। इसने यह दिखाया कि पहचान की राजनीति जातिगत विभाजन और प्रति-ध्रुवीकरण को जन्म दे सकती है, जब एक जाति को सामाजिक पदानुक्रम में प्रमुख शक्ति के रूप में देखा जाता है।
जाट समुदाय का प्रभुत्व और गैर-जाट राजनीति का उदय
हरियाणा की राजनीति में जाट समुदाय की प्रमुखता का इतिहास रहा है। राज्य की कुल आबादी का लगभग 25% हिस्सा जाटों का है, और वे पारंपरिक रूप से खेती-बाड़ी और राज्य के सामाजिक-राजनीतिक ढांचे में अहम भूमिका निभाते रहे हैं। लेकिन समय के साथ अन्य जातियों और समुदायों ने भी राजनीति में अपनी पहचान स्थापित करने की कोशिश की।
हाल के चुनावों में भाजपा ने इस सामाजिक विभाजन का फायदा उठाया। 2016 के जाट आरक्षण आंदोलन के बाद, राज्य में जाट और गैर-जाट समुदायों के बीच तनाव गहरा गया। इस आंदोलन ने हरियाणा की जातिगत राजनीति को और जटिल बना दिया, और भाजपा ने इस स्थिति का कुशलता से उपयोग किया। गैर-जाट समुदायों ने जाट वर्चस्व के खिलाफ भाजपा का समर्थन किया, जो 2019 और 2024 के विधानसभा चुनावों में पार्टी की जीत में परिलक्षित हुआ।
भाजपा की यह रणनीति गैर-जाट समुदायों को एक मजबूत राजनीतिक गठबंधन के रूप में संगठित करने पर आधारित थी। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, जो खुद एक गैर-जाट समुदाय से आते हैं, ने राज्य में गैर-जाट समुदायों को साथ लेकर एक मजबूत राजनीतिक आधार तैयार किया। भाजपा ने अपने चुनावी अभियान में विकास, सुशासन और जातिगत संतुलन के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया, जिससे उसे सफलता मिली।
’36 बिरादरी’ और ’35 बिरादरी’ की राजनीतिक भूमिका
हरियाणा की जातिगत संरचना में ’36 बिरादरी’ की अवधारणा का उपयोग राजनीतिक दलों द्वारा जातिगत समीकरण साधने के लिए किया जाता है। भाजपा ने हाल के चुनावों में ’36 बिरादरी’ के साथ-साथ ’35 बिरादरी’ के समीकरण का भी उपयोग किया। ’35 बिरादरी’ का जिक्र तब किया गया जब जाटों को छोड़कर बाकी सभी जातियों और समुदायों को एकसाथ लाकर भाजपा ने एक मजबूत गैर-जाट गठबंधन बनाया। इस रणनीति का मुख्य उद्देश्य जाट वर्चस्व को संतुलित करना और बाकी समुदायों का समर्थन हासिल करना था।
यह रणनीति सफल रही, और भाजपा ने सत्ता विरोधी लहर के बावजूद 2024 के चुनावों में जीत हासिल की। यह जीत हरियाणा की राजनीतिक संरचना में एक बड़ा बदलाव लेकर आई। ’35 बिरादरी’ और ’36 बिरादरी’ के गठबंधन ने दिखाया कि कैसे जातिगत समीकरण राजनीति के केंद्र में बने रहते हैं।
जाट आरक्षण आंदोलन: सामाजिक और राजनीतिक विभाजन
2016 का जाट आरक्षण आंदोलन हरियाणा की राजनीति और समाज में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। जाट समुदाय ने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की मांग की थी, जिससे राज्य में बड़े पैमाने पर हिंसा और सामाजिक विभाजन हुआ। इस आंदोलन ने गैर-जाट समुदायों में असंतोष फैलाया, और उन्होंने भाजपा का समर्थन किया।
यह आंदोलन हरियाणा की जातिगत राजनीति में एक नई धारा लेकर आया। जाटों और गैर-जाटों के बीच बढ़ते विभाजन ने भाजपा को एक नई रणनीति अपनाने के लिए मजबूर किया। भाजपा ने गैर-जाट समुदायों को अपने पक्ष में करने के लिए सामाजिक और जातिगत संतुलन की राजनीति का कुशलता से उपयोग किया, और इसका नतीजा यह हुआ कि पार्टी ने राज्य में सत्ता विरोधी लहर के बावजूद अपनी स्थिति मजबूत की।
हरियाणा की राजनीति: जातिगत समीकरणों का भविष्य
हरियाणा की राजनीति जातिगत समीकरणों पर आधारित रही है, और ’36 बिरादरी’ और ’35 बिरादरी’ की अवधारणाएँ इस ढांचे का महत्वपूर्ण हिस्सा रही हैं। भाजपा ने इन समीकरणों का कुशलता से उपयोग किया और गैर-जाट समुदायों को अपने पक्ष में कर लिया।
भाजपा की जीत ने यह दिखाया कि हरियाणा की राजनीति में जातिगत संतुलन कितना महत्वपूर्ण है। ’36 बिरादरी’ की अवधारणा जातिगत विविधता का प्रतीक है, और यह राज्य की राजनीतिक और सामाजिक संरचना में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।