
नई दिल्ली 10 अक्टूबर। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की हाल ही में जारी ‘लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट’ ने वैश्विक खाद्य उपभोग पैटर्न पर प्रकाश डाला है और भारत को अपने टिकाऊ खाद्य उपभोग के लिए विशेष प्रशंसा दी है। रिपोर्ट के अनुसार, भारत का खाद्य उपभोग पैटर्न न केवल टिकाऊ है, बल्कि अन्य देशों के लिए एक अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करता है। रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि यदि वैश्विक स्तर पर भारत के खाद्य उपभोग पैटर्न को अपनाया जाता है, तो पृथ्वी की जलवायु को कम से कम नुकसान पहुँचेगा और 2050 तक दुनिया की खाद्य उत्पादन आवश्यकताओं को आसानी से पूरा किया जा सकेगा।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की रिपोर्ट का सारांश
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की ‘लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट’ के मुताबिक, भारत का खाद्य उपभोग पैटर्न G20 देशों में सबसे अधिक टिकाऊ है। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अगर सभी देश भारत के खाद्य उपभोग पैटर्न का पालन करते हैं, तो पृथ्वी पर जलवायु पर सबसे कम प्रभाव पड़ेगा। इसका तात्पर्य यह है कि खाद्य उत्पादन को समर्थन देने के लिए 2050 तक ‘एक पृथ्वी से भी कम’ की आवश्यकता होगी, जो जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों के अनुरूप है। इसके विपरीत, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देश सबसे खराब स्थिति में हैं, जिन्हें टिकाऊ बेंचमार्क के अनुसार कई पृथ्वियों की आवश्यकता होगी।
वैश्विक खाद्य उपभोग पैटर्न और उनके प्रभाव
इस रिपोर्ट में विस्तार से बताया गया है कि अगर विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं मौजूदा खाद्य उपभोग पैटर्न को जारी रखती हैं, तो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को सीमित करने के 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को 263 प्रतिशत तक पार कर लिया जाएगा। इसका अर्थ यह होगा कि मानवता को अपनी भोजन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक से अधिक पृथ्वियों की आवश्यकता होगी। अर्जेंटीना का खाद्य उपभोग पैटर्न सबसे अधिक अस्थिर पाया गया, जिसके तहत इस देश को 7.4 पृथ्वियों की आवश्यकता होगी। इसी प्रकार, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के लिए यह आंकड़ा क्रमशः 6.8 और 5.5 पृथ्वियों तक पहुंचता है। यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि वैश्विक स्तर पर खाद्य उपभोग पैटर्न में बदलाव की अत्यधिक आवश्यकता है।
भारत का बाजरा मिशन और उसकी सफलता
रिपोर्ट में भारत के बाजरा मिशन की विशेष रूप से सराहना की गई है। बाजरा, जिसे पोषक-अनाज भी कहा जाता है, न केवल पौष्टिक है बल्कि यह जलवायु परिवर्तन के खिलाफ भी अधिक लचीला है। भारत ने बाजरा की खपत को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अभियान चलाया है, जिससे इस प्राचीन अनाज का पुनरुत्थान हो रहा है। रिपोर्ट में यह कहा गया है कि बाजरा जैसे जलवायु-अनुकूल अनाज के उपयोग से न केवल खाद्य उत्पादन के लिए आवश्यक भूमि की मात्रा में कमी आएगी, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी लाभकारी होगा। चरागाह भूमि को अन्य उद्देश्यों जैसे प्रकृति बहाली और कार्बन पृथक्करण के लिए उपयोग किया जा सकेगा।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य में भारत का स्थान
भारत के टिकाऊ खाद्य उपभोग पैटर्न की सराहना करते हुए, रिपोर्ट में बताया गया है कि अगर सभी देश भारत के पैटर्न को अपनाते हैं, तो केवल 0.84 पृथ्वी की आवश्यकता होगी। अन्य देशों की तुलना में यह आंकड़ा सबसे बेहतर है। उदाहरण के लिए, अर्जेंटीना को 7.4 पृथ्वियों की आवश्यकता होगी, ऑस्ट्रेलिया को 6.8, अमेरिका को 5.5, और ब्राज़ील को 5.2 पृथ्वियों की आवश्यकता होगी। भारत के बाद इंडोनेशिया (0.9 पृथ्वियों की आवश्यकता) और चीन (1.7) बेहतर प्रदर्शन करने वाले देशों में शामिल हैं। इससे स्पष्ट है कि भारत ने अपने खाद्य उपभोग पैटर्न को एक ऐसा रूप दिया है, जो अन्य देशों की तुलना में कहीं अधिक स्थायी है।
जलवायु परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव
जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में खाद्य सुरक्षा एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अधिक टिकाऊ आहार अपनाने से खाद्य उत्पादन के लिए आवश्यक भूमि की मात्रा कम हो जाएगी। पौधे-आधारित मांस विकल्प और उच्च पोषण मूल्य वाली शैवाल प्रजातियों को बढ़ावा देने से न केवल पर्यावरणीय नुकसान कम होगा बल्कि यह स्वस्थ जीवनशैली को भी बढ़ावा देगा। भारत का बाजरा मिशन इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो न केवल लोगों को पौष्टिक आहार प्रदान कर रहा है, बल्कि पर्यावरण को भी सुरक्षित रख रहा है।
रिपोर्ट की मुख्य सिफारिशें
रिपोर्ट ने वैश्विक नेताओं और नीति निर्माताओं के लिए कुछ महत्वपूर्ण सिफारिशें भी प्रस्तुत की हैं। इसमें कहा गया है कि जलवायु-अनुकूल फसलों, पौधे-आधारित प्रोटीन स्रोतों और टिकाऊ कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। इसके साथ ही, सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनके खाद्य उत्पादन और उपभोग के तरीके 1.5 डिग्री सेल्सियस की वार्मिंग सीमा के अनुरूप हों। इसके लिए, नीतिगत परिवर्तन और जागरूकता अभियानों की आवश्यकता होगी ताकि लोग अपने आहार में टिकाऊ विकल्पों को प्राथमिकता दें।
डब्ल्यूडब्ल्यूएफ की लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत का खाद्य उपभोग पैटर्न न केवल टिकाऊ है, बल्कि यह अन्य देशों के लिए भी एक अनुकरणीय उदाहरण है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि वैश्विक स्तर पर टिकाऊ खाद्य प्रणालियों को अपनाने के लिए भारत के प्रयासों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। अगर बाकी दुनिया भारत के पैटर्न को अपनाती है, तो जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों को प्राप्त करना संभव होगा और पृथ्वी की संसाधनों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी। इस प्रकार, इस रिपोर्ट से यह भी स्पष्ट होता है कि जलवायु-अनुकूल आहार और टिकाऊ खाद्य उत्पादन पद्धतियों को बढ़ावा देने के लिए वैश्विक स्तर पर एकजुट प्रयासों की आवश्यकता है।