
मुंबई 10 अक्टूबर। रतन नवल टाटा, जिनके दीर्घकालिक नेतृत्व में टाटा समूह ने वैश्विक शक्ति के रूप में अपनी पहचान बनाई, का बुधवार रात 11 बजे के करीब ब्रीच कैंडी अस्पताल में निधन हो गया। 86 वर्षीय रतन टाटा को सोमवार को निर्जलीकरण की समस्या के चलते अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनके निधन ने एक अद्वितीय कॉर्पोरेट यात्रा का अंत कर दिया है, जिसने न केवल टाटा समूह का पुनर्गठन किया बल्कि भारतीय उद्योग के लिए वैश्विक मंच पर नए मानक स्थापित किए।
रतन टाटा के नेतृत्व में, टाटा समूह का राजस्व 1991 में $4 बिलियन से बढ़कर 2012 में $100 बिलियन से अधिक हो गया, जब उन्होंने समूह से सेवानिवृत्ति ली। यह उपलब्धि किसी भारतीय समूह द्वारा हासिल किया गया पहला मील का पत्थर था, जिसने टाटा समूह को वैश्विक स्तर पर भारत के अग्रणी व्यापारिक समूहों में स्थापित कर दिया।
प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि
रतन टाटा का जन्म ब्रिटिश शासन के दौरान मुंबई (तब बॉम्बे) में हुआ था। वे सूनू और नेवल टाटा के पुत्र थे, और उनका पालन-पोषण मुंबई के फोर्ट इलाके में स्थित टाटा हाउस में हुआ, जो अब डॉइचे बैंक का भारतीय मुख्यालय है। उन्होंने अपना प्रारंभिक जीवन सादगी और अनुशासन के साथ बिताया। रतन टाटा शराब नहीं पीते थे और न ही धूम्रपान करते थे। उनकी निजी जिंदगी काफी शांत और अनुकरणीय रही। हालांकि, उन्होंने तीन बार विवाह के करीब पहुंचने के बावजूद अपने जीवनभर अविवाहित रहने का फैसला किया।
रतन टाटा की शिक्षा काफी प्रभावशाली रही। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई में प्राप्त की, जिसके बाद अमेरिका के कॉर्नेल विश्वविद्यालय से आर्किटेक्चर में स्नातक की डिग्री हासिल की। इसके बाद उन्होंने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एडवांस्ड मैनेजमेंट प्रोग्राम भी पूरा किया। इन उच्च शिक्षाओं ने न केवल उनके व्यावसायिक दृष्टिकोण को आकार दिया, बल्कि उन्हें एक कुशल और दूरदर्शी नेता के रूप में तैयार किया।
टाटा समूह का नेतृत्व और विकास
1991 में टाटा समूह के अध्यक्ष के रूप में रतन टाटा ने पदभार संभाला। उस समय, टाटा समूह विभिन्न क्षेत्रों में फैला हुआ था और हर व्यवसाय अपनी अलग पहचान के साथ काम कर रहा था। रतन टाटा ने इस चुनौती को स्वीकार किया और एकीकृत दृष्टिकोण अपनाते हुए समूह के विभिन्न व्यवसायों को एक मजबूत ब्रांड के तहत लाने का कार्य किया।
उनके नेतृत्व में, टाटा समूह ने वैश्विक व्यापार में अपनी पहचान बनाई। स्टील, ऑटोमोबाइल, आईटी, टेलीकॉम, और होस्पिटैलिटी जैसे क्षेत्रों में टाटा समूह का विस्तार हुआ। उन्होंने टाटा मोटर्स के माध्यम से भारत को दुनिया की सबसे सस्ती कार ‘टाटा नैनो’ दी। इसका उद्देश्य आम भारतीय परिवारों को वाहन का मालिकाना हक प्रदान करना था, हालांकि यह परियोजना व्यावसायिक रूप से अत्यधिक सफल नहीं रही, लेकिन रतन टाटा की सोच और उद्देश्य ने इस परियोजना को अनूठा बना दिया।
उनकी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक थी 2008 में जगुआर लैंड रोवर का अधिग्रहण। इस सौदे ने टाटा मोटर्स को वैश्विक ऑटोमोबाइल बाजार में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित किया। इसके अलावा, उन्होंने टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) को भी वैश्विक आईटी सेवाओं के क्षेत्र में शीर्ष स्थान पर पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
समाज सेवा और परोपकारी कार्य
रतन टाटा न केवल एक व्यवसायी थे, बल्कि वे एक परोपकारी व्यक्ति भी थे। उन्होंने समाज की बेहतरी के लिए कई पहल कीं। शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास के क्षेत्रों में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा। टाटा ट्रस्ट्स के माध्यम से, रतन टाटा ने सामाजिक कल्याण के विभिन्न कार्यक्रमों का संचालन किया, जिनका उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों को शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करना था।
उनका मानना था कि व्यापार का असली उद्देश्य केवल मुनाफा कमाना नहीं होना चाहिए, बल्कि समाज के प्रति जिम्मेदारी निभाना भी जरूरी है। उनकी इस सोच के कारण टाटा समूह ने अपने लाभ का एक बड़ा हिस्सा सामाजिक कार्यों में निवेश किया, जो आज भी समूह की प्रमुख पहचान बना हुआ है।
सादगी और अनुशासन का जीवन
रतन टाटा का जीवन सादगी और अनुशासन का प्रतीक था। वे अपने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में स्पष्ट और ईमानदार रहे। उन्होंने अपने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया। चाहे वह व्यवसाय हो या व्यक्तिगत जीवन, रतन टाटा हमेशा अपने मूल्यों और नैतिकता पर कायम रहे।
रतन टाटा ने हमेशा निजी जीवन को पेशेवर जीवन से अलग रखा। तीन बार विवाह के करीब पहुँचने के बावजूद, उन्होंने अविवाहित रहने का निर्णय लिया। उनके इस फैसले ने उन्हें एक रहस्यमय व्यक्तित्व के रूप में स्थापित किया। हालांकि, वे अपने परिवार से जुड़े रहे। उनके दो भाई हैं – जिमी और नूएल टाटा। इसके अलावा, उनकी सौतेली माँ सिमोन टाटा भी परिवार का हिस्सा थीं, जो खुद एक सफल व्यवसायी रही हैं।
रतन टाटा की विरासत
रतन टाटा के निधन से भारतीय उद्योग जगत को एक अपूरणीय क्षति हुई है। उन्होंने टाटा समूह को न केवल भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक समूह बनाया, बल्कि उसे वैश्विक स्तर पर भी स्थापित किया। उनके नेतृत्व में टाटा समूह ने नई ऊंचाइयों को छुआ और भारतीय उद्योग को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
रतन टाटा की सोच और नेतृत्व शैली ने भारतीय उद्योग को एक नई दिशा दी। उनका मानना था कि व्यापार का उद्देश्य केवल लाभ कमाना नहीं होना चाहिए, बल्कि समाज के प्रति उत्तरदायित्व निभाना भी आवश्यक है। उनकी इस सोच ने टाटा समूह को न केवल एक लाभकारी संगठन बनाया, बल्कि एक सामाजिक उत्तरदायित्व वाला समूह भी बनाया।
उनके निधन के साथ ही एक युग का अंत हो गया है, लेकिन उनकी विरासत और उनके द्वारा स्थापित मूल्यों की प्रेरणा आने वाली पीढ़ियों के लिए मार्गदर्शक रहेगी। रतन टाटा की सरलता, दयालुता और समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारी की भावना ने उन्हें भारतीय उद्योग जगत में एक विशेष स्थान दिया। उनकी विरासत न केवल टाटा समूह के रूप में जीवित रहेगी, बल्कि उन सामाजिक कार्यों में भी जो उन्होंने अपने जीवनकाल में शुरू किए थे।
रतन टाटा के निधन से भारत ने एक महानायक खो दिया है, लेकिन उनके द्वारा स्थापित मानदंड और मूल्य आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे।