भारत में नकली दवाओं का बढ़ता संकट: स्वास्थ्य पर मंडराता गंभीर खतरा
नई दिल्ली 7 अक्टूबर (विजय प्रताप पाण्डेय)। भारत में नकली और घटिया दवाओं का संकट दिन-ब-दिन गहराता जा रहा है, और यह सवाल उठता है कि क्या बाजार में उपलब्ध दवाएं सचमुच असरदार हैं। भारत का दवा बाजार लगभग 25 बिलियन डॉलर का है, और इस विशाल बाजार का एक बड़ा हिस्सा नकली या मिलावटी दवाओं से भरा हो सकता है। कुछ अनुमान बताते हैं कि 20% से ज्यादा दवाएं या तो नकली हो सकती हैं या उनमें आवश्यक सक्रिय तत्वों की कमी हो सकती है। हालांकि सरकारी एजेंसियों का दावा है कि यह संख्या 5% से कम है, लेकिन हालिया जांच और मामलों ने इस मुद्दे को गंभीरता से सोचने पर मजबूर कर दिया है।
नकली दवाओं की समस्या सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है; यह एक वैश्विक मुद्दा है। लेकिन भारत, जो 200 से अधिक देशों को दवाओं की आपूर्ति करता है, इस संकट से अधिक प्रभावित हो सकता है। भारत की सस्ती दवाओं का दुनिया भर में बहुत बड़ा बाजार है, खासकर विकासशील देशों में। इसलिए, जब इस तरह की दवाएं मानक गुणवत्ता से कम पाई जाती हैं, तो इसका असर केवल देश के भीतर तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी पड़ता है।
हालिया जाँच में यह पता चला है कि कई बड़ी और प्रतिष्ठित कंपनियों की दवाएं, जिन पर करोड़ों लोग भरोसा करते हैं, गुणवत्ताहीन साबित हो रही हैं। एक चौंकाने वाले खुलासे में, 50 से अधिक प्रमुख दवा ब्रांड्स केंद्र और राज्य सरकार की जांच के दायरे में आए, जहां यह पाया गया कि ये दवाएं विघटन परीक्षण या प्रयोगशाला परीक्षणों में विफल रहीं। इन परीक्षणों से यह पता चलता है कि दवाओं में सक्रिय अवयव पर्याप्त मात्रा में नहीं हैं, जिससे वे बेअसर हो सकती हैं। मरीज, जो इन दवाओं पर निर्भर रहते हैं, उनके लिए यह गंभीर खतरा है क्योंकि ये दवाएं उनका इलाज करने में असफल हो सकती हैं या उनकी स्थिति और खराब कर सकती हैं।
जिन दवाओं पर सवाल उठाए जा रहे हैं, उनमें टोरेंट फार्मा की कैल्शियम सप्लीमेंट शेल्कल, एल्केम की एंटीबायोटिक क्लैवम, सन फार्मा की हृदय रोग की दवा पैन-डी, और ग्लेनमार्क की एंटी-हाइपरटेंसिव दवा टेल्मा एच शामिल हैं। ये सभी दवाएं अपने-अपने क्षेत्रों में अग्रणी हैं और करोड़ों की बिक्री करती हैं। उदाहरण के तौर पर, टोरेंट के शेल्कल की बिक्री 352 करोड़ रुपये से अधिक की थी, जबकि पैन-डी और क्लैवम की बिक्री क्रमश: 400 करोड़ और 430 करोड़ रुपये से अधिक की रही।
यह केवल छोटे निर्माताओं की बात नहीं है; बड़े और प्रतिष्ठित ब्रांड्स भी इस संकट की चपेट में हैं। इसका अर्थ यह है कि नकली दवाओं का खतरा हर स्तर पर मौजूद है।
नकली और मिलावटी दवाओं की समस्या केवल कंपनियों की लापरवाही का परिणाम नहीं है, बल्कि सरकारी एजेंसियों और नियामकों की विफलता भी इसका एक बड़ा कारण है। केंद्र सरकार के अधीन काम करने वाला केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO) हर महीने मानक गुणवत्ता से कम (NSQ) दवाओं की सूची जारी करता है, लेकिन अक्सर यह सूची स्थानीय या छोटे निर्माताओं पर ही केंद्रित होती है। इस बार, जब बड़े ब्रांड्स की दवाएं इस सूची में शामिल हुईं, तो यह एक बड़ा हंगामा खड़ा कर गया।
नियामक एजेंसियों की विफलता का एक और उदाहरण नागपुर ग्रामीण पुलिस द्वारा पकड़ा गया नकली दवाओं का रैकेट है। इस रैकेट के तहत सरकारी अस्पतालों में एंटीबायोटिक दवाएं सप्लाई की जा रही थीं, जिनमें केवल टैल्कम पाउडर और स्टार्च पाया गया। यह रैकेट देश के कई राज्यों में फैला हुआ था और हवाला चैनलों के जरिए पैसे भेजे जाते थे। जाँच में आगे पता चला कि इस घोटाले का केंद्र हरिद्वार में स्थित पशु चिकित्सा दवाओं का एक निर्माता था। यह सब स्पष्ट रूप से दिखाता है कि नकली दवाओं की समस्या कितनी गहरी और व्यापक है।
यह समझना जरूरी है कि नकली और मानक गुणवत्ता से कम (NSQ) दवाओं के बीच अंतर होता है। नकली दवाएं जानबूझकर बनाई जाती हैं और बाजार में वितरित की जाती हैं। इन्हें सामान्यतः बिना लाइसेंस वाले निर्माता बनाते हैं, जो लोकप्रिय ब्रांड्स की पैकेजिंग की नकल करके उन्हें बेचते हैं। दूसरी तरफ, NSQ दवाएं वो होती हैं, जो किसी कारणवश मानक गुणवत्ता के परीक्षणों में विफल रहती हैं। यह संभव है कि ये दवाएं अनुचित भंडारण या निर्माण प्रक्रिया में गड़बड़ियों के कारण गुणवत्ताहीन हो जाती हैं।
फार्मा सप्लाई चेन के लिए डिजिटल समाधान प्रदान करने वाली हेजकी टेक के पार्टनर वरुण विसवाडिया कहते हैं कि अगर दवाओं को उनकी अनुशंसित सीमा से बाहर (बहुत गर्म या बहुत ठंडा) तापमान पर रखा जाता है, तो उनके सक्रिय तत्व नष्ट हो सकते हैं, जिससे उनकी प्रभावशीलता कम हो जाती है। इसका सीधा असर मरीजों पर पड़ता है, क्योंकि वे सही इलाज नहीं पा पाते।
भारत दुनिया भर में सस्ती और प्रभावी दवाओं के आपूर्तिकर्ता के रूप में जाना जाता है। भारत में निर्मित दवाएं अफ्रीका, एशिया, और यहां तक कि अमेरिका और यूरोप के कई हिस्सों में भी पहुंचती हैं। लेकिन नकली और घटिया दवाओं की समस्या इस छवि को धूमिल कर रही है। भारतीय फार्मास्युटिकल एलायंस (IPA) ने नकली और NSQ दवाओं को लेकर मीडिया में आई रिपोर्टों पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। उनका कहना है कि इन रिपोर्टों से भारतीय दवा उद्योग की छवि को गहरा नुकसान हुआ है और इसे ठीक करने के लिए बड़े कदम उठाने होंगे।
फर्मा से जुड़े लोगों का कहना है कि फार्मा उद्योग की सप्लाई चेन में सेंधमारी की समस्या है और नकली दवाओं का खतरा बढ़ रहा है। लेकिन साथ ही, उन्होंने मीडिया पर तथ्यों को गलत तरीके से प्रस्तुत करने का भी आरोप लगाया। उनका कहना है कि NSQ दवाओं को नकली दवाओं के साथ जोड़ने से जनता में गलत धारणा पैदा हो रही है।
डॉक्टरों और अस्पतालों की चुप्पी क्यों?
एक बड़ा सवाल यह है कि जब इन दवाओं से मरीजों को कोई फायदा नहीं हो रहा था, तो डॉक्टरों और अस्पतालों ने इसकी रिपोर्ट क्यों नहीं की? भारत में फार्माकोविजिलेंस प्रणाली, जिसका काम है दवाओं के प्रतिकूल प्रभावों को रिकॉर्ड करना, स्पष्ट रूप से विफल रही है। डॉक्टरों और अस्पतालों ने नकली या घटिया दवाओं से जुड़े मामलों की रिपोर्टिंग नहीं की, जबकि उन्हें इसका प्रभाव दिखाई देना चाहिए था।
सरकार और नियामकों को यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि दवाओं की गुणवत्ता पर सख्ती से नजर रखी जाए। अगस्त 2023 में भारत के औषधि महानियंत्रक ने आदेश जारी किया था कि शीर्ष 300 ब्रांड्स को नकली दवाओं की संभावना को कम करने के लिए अपने ब्रांड्स पर बारकोड या क्यूआर कोड छापने होंगे। इससे नकली दवाओं की पहचान और उन्हें बाजार में आने से रोकने में मदद मिलेगी।
इसके अलावा, तापमान की निगरानी के लिए फार्मेसियों और रिटेल स्टोर्स पर सख्त मानदंड लागू किए जाने चाहिए। भारत में केमिस्ट बहुत असंगठित हैं और तापमान की अनदेखी के कारण दवाएं अक्सर प्रभावहीन हो जाती हैं। इसलिए, दवाओं को सही तापमान पर रखने के लिए निगरानी और लाइसेंसिंग प्रक्रियाओं को सख्त करने की जरूरत है।
भारत में नकली दवाओं की समस्या गंभीर है, लेकिन यह सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है। अमेरिका में भी नकली दवाओं का एक बड़ा बाजार है। हाल ही में मोटापा घटाने वाली दवाओं के नकली संस्करण अमेरिकी बाजार में पाए गए, जिनका इस्तेमाल लाखों लोग कर रहे थे। नकली दवाओं की यह वैश्विक समस्या है और इससे निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग की जरूरत है।

