लखनऊ 26 नवंबर। भारत जन ज्ञान विज्ञान समिति, लखनऊ द्वारा संविधान दिवस का दिनाँक 26/11/22 को आयोजन किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सोशल एक्टिविस्ट और लेखक प्रोफेसर रमेश दीक्षित ने संविधान सभा के ऐतिहासिक तथ्यों से अवगत कराते हुए कहा कि गांधी जी के कहने पर जवाहरलाल नेहरू और सरदार पटेल डॉक्टर अंबेडकर को संविधान सभा में लेकर आए। इसके बाद डॉक्टर अंबेडकर को प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनाया गया। बाबा साहब ने अपनी अस्वस्थता के बावजूद गहन अध्ययन और विचार विमर्श के बाद दुनिया में सवश्रेष्ट् भारत के संविधान का निर्माण किया।
दक्षिणपंथी डॉ आंबेडकर की आलोचना करते हुए कहते हैं कि डॉक्टर अंबेडकर ने संविधान नहीं लिखा था। लेकिन टी.टी. कृष्णमाचारी ने संविधान सभा में कहा था कि डॉक्टर अंबेडकर ने अकेले संविधान का ड्राफ्ट तैयार किया था।
आज संविधान को अस्वीकार करने वाले लोग सत्ता में हैं। वह मनुस्मृति को मानने वाले लोग हैं। जबकि देश में समानता, स्वतंत्रता और न्याय की गारंटी हमारा संविधान देता है
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए पूर्व आईएएस और केंद्र सरकार में सचिव रहे भारत जन ज्ञान विज्ञान समिति के अध्यक्ष हरिश्चंद्र जी ने कहा कि गांधी और अंबेडकर एक दूसरे के पूरक है।

पूना पैक्ट के बाद महात्मा गांधी ने उन्हे जीवन देने के लिए ड्रा अम्बेडकर की सहृदयता की प्रसंशा करते हुये सवर्णों को दलितों पर हज़ारों वर्षों के जुल्म और अत्याचार के लिए गले लगा कर पश्चाताप करना होगा लेकिन सवर्णो ने गाँधी जी को बहुत निराश किया l डॉक्टर अंबेडकर ने अनुसूचित जाति और जनजाति को चेतना और अधिकार संपन्न बनाया और उनके अधिकारों के लिए जीवन पर्यंत संघर्ष करते रहे।
डॉक्टर अंबेडकर ने अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्गो के अधिकारों के लिए नहीं बल्कि महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिलाने के लिए मंत्री मंडल से त्याग पत्र दे दिया l
मनुस्मृत को जलाने मे 2000 वर्ष लगे, जबकि देश के क्रांतिकारियो और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के लोकतांत्रिक धर्म निरपेक्ष, समाज वादी सपनो का संविधान सरकार के नाक के नीचे 72 वे वर्ष मे जलाया जा रहा है l संविधान सामाजिक क्रांति का दस्तावेज है।
संविधान सभा मे अपने अंतिम व्याख्यान में बाबा साहब ने कहा था कि एक व्यक्ति एक वोट के रूप में राजनीति में सभी को बराबरी का दर्जा प्राप्त है लेकिन सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र में बहुत अधिक गैर बराबरी है l यदि समय रहते इस गैर बराबरी को समाप्त नहीं किया गया, तो इसके भुक्त भोगी संबिधान के इस खुबसूरत महल को ध्वस्त कर देंगे l हमे राजनीतिक लोकतंत्र को सामाजिक लोकतंत्र मे बदलना होगा समानता, स्वतंत्रता और भात्रिभाव ।
आज संविधान और लोकतंत्र खतरे में है। हमें अपने रक्त की अंतिम बूंद तक संबिधान और लोकतंत्र की रक्षा करनी होगी l इसको बचाने की जिम्मेदारी हम सब की है।
कार्यक्रम का संचालन प्रसिद्ध कवि सुरेश उजाला ने किया इस अवसर पर लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो. रविकान्त चंदन, पीजीआई के डॉ. बसंत कुमार, श्री राम कुमार,जवाहरलाल, एच. आर. दोहरे , संत लालआदि तमाम गणमान्य लोग उपस्थित थे।

